
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने अपने नए अध्ययन में चेताया है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते भविष्य में सतह के पास बनने वाली ओजोन को नियंत्रित करना और मुश्किल हो जाएगा।
गौरतलब है कि सतह के पास मौजूद यह ओजोन, ओजोन परत से अलग है जो हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है, बल्कि यह एक जहरीली गैस है जो धुंध और धूप के रासायनिक मिलन से बनती है।
वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन में जलवायु और वायुमंडलीय रसायन के मॉडलों का उपयोग किया है। इससे पता चला है कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण धरती गर्म होती जाएगी, पूर्वी उत्तर अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में ओजोन को नियंत्रित करना और मुश्किल हो जाएगा।
जलवायु परिवर्तन से बिगड़ रहा संतुलन
इसके साथ ही इन क्षेत्रों में ओजोन, नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में कटौती के प्रति कम संवेदनशील हो जाएगी। ऐसे में वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में पहले से कहीं ज्यादा कटौती करनी होगी।
हालांकि, अध्ययन में यह भी सामने आया है कि पूर्वोत्तर एशिया में इसका उल्टा असर होगा—यहां नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में कटौती से ग्राउंड-लेवल ओजोन को कम करने में ज्यादा असरदार नतीजे मिलेंगे। मतलब की इन क्षेत्रों में उत्सर्जन में की गई कटौती का असर ज्यादा साफ दिखेगा और ओजोन का स्तर अधिक घटेगा।
बता दें कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दो मॉडलों का उपयोग किया है, इसमें एक मौसम से जुड़े तत्वों जैसे तापमान और हवा की गति को समझने के लिए, और दूसरा वायुमंडल में रसायनों की गति और रचना का अनुमान लगाने के लिए था। भविष्य की कई संभावित स्थितियों को बनाकर, उन्होंने जलवायु में होने वाले प्राकृतिक उतार-चढ़ाव को बेहतर ढंग से समझा, जिससे उन्हें पहले के कई अध्ययनों की तुलना में एक अधिक स्पष्ट और बेहतर तस्वीर मिल सकी है।
इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता एमी ले रॉय ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "भविष्य में वायु गुणवत्ता की योजनाओं को बनाते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण की रसायन प्रक्रिया को कैसे प्रभावित कर रहा है।“
अध्ययन में पाया गया कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, मिट्टी से प्राकृतिक रूप से निकलने वाला नाइट्रोजन ऑक्साइड भी बढ़ेगा, जिससे जहरीली ओजोन को नियंत्रित करना और कठिन हो जाएगा।
कैसे बनती है जहरीली ओजोन?
वैज्ञानिकों के मुताबिक जमीन के पास बनने वाली यह ओजोन, ओजोन परत से अलग होती है जो पृथ्वी को सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। यह गैस जमीनी सतह के पास नाइट्रोजन ऑक्साइड और वॉलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (वीओसी) के धूप में रासायनिक प्रतिक्रिया करने से बनती है। ग्राउंड-लेवल ओजोन को नियंत्रित करना मुश्किल होता है, क्योंकि यह एक द्वितीयक प्रदूषक है। यानी यह सीधे नहीं निकलती बल्कि वातावरण में रासायनिक प्रतिक्रियाओं से बनती है।
यही कारण है कि जब मौसम गर्म और धूप अधिक होती है तो ओजोन का स्तर अधिक होता है।
इसकी मौजूदगी सांस लेने में परेशानी पैदा कर सकती है, जो इंसानों, जानवरों और पौधों के लिए नुकसानदायक है। गर्म धूप वाले दिनों में इसकी मात्रा अधिक होती है, जिसकी वजह से दमा, सांस लेने में दिक्कतें और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक सरकारें आमतौर पर जमीनी ओजोन को कम करने के लिए औद्योगिक गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड को कम करने की कोशिश करती हैं। लेकिन यह आसान नहीं होता, क्योंकि ओजोन नाइट्रोजन ऑक्साइड और वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स के साथ जटिल रासायनिक क्रियाओं से बनता है। कुछ रासायनिक परिस्थितियों में, नाइट्रोजन ऑक्साइड को कम करने से ओजोन का स्तर घटने के बजाय बढ़ सकता है।
क्यों खास है यह रिसर्च?
अध्ययन की खास बात यह है इसमें वैज्ञानिकों ने लंबे समय के लिए कई जलवायु संभावनाओं के साथ मॉडलिंग की है, जिससे यह बेहतर तरीके से समझा जा सके कि जलवायु में आते बदलावों के साथ हवा की गुणवत्ता में कैसे बदलाव आएगा। अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने जलवायु मॉडल की मदद से भविष्य के हर साल के लिए मौसम से जुड़े अनुमान तैयार किए, जैसे तापमान और हवा की गति, ताकि उस क्षेत्र की जलवायु में होने वाले प्राकृतिक बदलावों को समझा जा सके।
इसके बाद, उन्होंने ये आंकड़े वायुमंडलीय रासायनिक मॉडल में उपयोग किए हैं, जो दर्शाते हैं कि मौसम और प्रदूषण के कारण वायुमंडल की रासायनिक संरचना कैसे बदल सकती है।
शोधकर्ताओं ने 2080 से 2095 तक भविष्य की परिस्थितियों के दो मॉडल तैयार किए हैं। इनमें एक में तापमान के बहुत ज्यादा वृद्धि जबकि दूसरे में कम का अनुमान लगाया गया। वैज्ञानिकों ने इनकी तुलना 2000 से 2015 के बीच रही परिस्थितियों से की है, ताकि यह समझा जा सके कि अगर नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में 10 फीसदी की कमी की जाए तो उसका क्या असर होगा। इस दौरान उन्होंने 80 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।
विश्लेषण के नतीजे दर्शाते हैं कि पूर्वी उत्तर अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में मिट्टी से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड के बढ़ने का ज्यादा असर पड़ता है। यह गैस तापमान बढ़ने पर प्राकृतिक रूप से उत्सर्जित होती है। ऐसे में जैसे-जैसे धरती गर्म होगी और मिट्टी से ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड वातावरण में मुक्त होगी, उसके चलते इंसानी गतिविधियों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने का जमीनी स्तर पर ओजोन पर पड़ने वाला असर कम हो जाएगा।
वहीं पूर्वी एशिया, खासकर चीन के औद्योगिक इलाकों में, नाइट्रोजन ऑक्साइड में की गई कटौती का ओजोन पर ज्यादा असर दिखेगा। ऐसे में वैज्ञानिकों ने जोर दिया है कि यदि वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाना है तो प्रदूषण के साथ-साथ जलवायु में आते बदलावों पर भी ध्यान देना होगा।
ऐसे में जलवायु संकट से सिर्फ तापमान के बढ़ने का ही खतरा नहीं है, इससे हवा की गुणवत्ता भी खराब हो सकती है।