वातावरण में बढ़ता प्रदूषण हम इंसानों के साथ-साथ पेड़-पौधों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। इस बारे में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि जमीन के पास ओजोन गैस की मौजूदगी उष्णकटिबंधीय जंगलों को नुकसान पहुंचा रही है, नतीजन पेड़ों के बढ़ने की रफ्तार धीमी पड़ रही है।
इसका मतलब है कि पेड़ हवा से उतना कार्बन नहीं सोख पा रहे हैं, जो बढ़ते प्रदूषण को सीमित करने में मदद करता है। रिसर्च में पुष्टि हुई है कि इसकी वजह से करीब 29 करोड़ टन कार्बन का अवशोषण नहीं हो पा रहा है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान दे रहा है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुए हैं।
यह सही है कि ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत की मौजूदगी पृथ्वी को हानिकारक अल्ट्रा वायलेट (यूवी) किरणों से बचाती है। इसे बचाना पर्यावरण के लिए एक बड़ी सफलता रही है। हालांकि जमीन के पास ओजोन की मौजूदगी स्वास्थ्य के साथ-साथ पेड़-पौधों और दूसरे जीवों को भी प्रभावित करती है।
गौरतलब है कि ग्राउंड लेवल ओजोन का निर्माण तब होता है, जब इंसानी गतिविधियों की वजह से होने वाले प्रदूषक सूर्य की रोशनी से प्रतिक्रिया करते हैं। इसकी वजह से पेड़-पौधों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करना मुश्किल हो जाता है।
विकास या विनाश की राह पर मानवता
बता दें कि इसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। हमारी कारों, कारखानों और अन्य गतिविधियों से होने वाला प्रदूषण सूर्य के प्रकाश के साथ प्रतिक्रिया कर ओजोन का निर्माण करता है।
अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं, उनके मुताबिक जमीनी स्तर पर मौजूद इस ओजोन की वजह से उष्णकटिबंधीय जंगल सालाना 5.1 फीसदी धीमी रफ्तार से बढ़ रहे हैं। मतलब की इसकी वजह से इनके बढ़ने की दर में पांच फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है।
इतना ही नहीं कुछ क्षेत्रों में इसका प्रभाव कहीं अधिक है। एशिया में तो इस ओजोन की वजह से उष्णकटिबंधीय जंगलों के सालाना बढ़ने की गति में 10.9 फीसदी की कमी आई है।
देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन के लिहाज से यह उष्णकटिबंधीय जंगल बेहद महत्वपूर्ण है, जो वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के एक बड़े हिस्से को सोख लेते हैं और उन्हें अपने में संजोए रहते हैं। यदि वो ऐसा न करें तो वातावरण में हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा, जो जलवायु के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
वहीं ओजोन की वजह से पेड़-पौधों के बढ़ने की रफ्तार धीमी पड़ रही है। ऐसे में जब जंगल धीमी रफ्तार से बढ़ते हैं तो वो सामान्य से कम कार्बन अवशोषित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन की वजह से पड़ते दुष्प्रभावों को और बदतर बना रहा है।
इस बारे में अध्ययन के साथ-साथ जेम्स कुक और एक्सेटर विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता एलेक्जेंडर चीजमैन ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए लिखा है कि "कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में उष्णकटिबंधीय वन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।"
रिसर्च ने भी पुष्टि की है की वायु प्रदूषण वनों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी महत्वपूर्ण सेवा को खतरे में डाल रहा है।
उनका अनुमान है कि ओजोन ने 2000 से उष्णकटिबंधीय जंगलों को सालाना 29 करोड़ टन कार्बन को अवशोषित करने से रोक दिया है। ऐसे में इस सदी में इन जंगलों द्वारा सोखे जा सकने वाले कार्बन की मात्रा में 17 फीसदी की कमी आई है। मतलब की अब वो पहले जितना कार्बन अवशोषित नहीं कर पा रहे हैं और कहीं न कहीं ओजोन प्रदूषण ने उनकी इस क्षमता पर असर डाला है।
इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले शोधकर्ताओं ने कई प्रयोग किए हैं, ताकि यह समझा जा सके कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली वृक्षों की अलग-अलग प्रजातियां ओजोन पर कैसे प्रतिक्रिया करती हैं। इनके परिणामों को कंप्यूटर मॉडल से जुड़ा है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, जीवाश्म ईंधन के उपयोग के साथ आग की वजह से नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे प्रदूषक में वृद्धि करते हैं जो प्रकाश के साथ प्रतिक्रिया कर ग्राउंड लेवल ओजोन का निर्माण करते हैं। ऐसे में जैसे-जैसे शहरीकरण और अन्य प्रदूषकों का स्तर बढ़ रहा है, उसकी वजह से ओजोन का स्तर भी बढ़ रहा है।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर फ्लोसी ब्राउन के मुताबिक जैसे-जैसे दुनिया गर्म हो रही है, वैसे-वैसे बढ़ते उत्सर्जन के साथ वातावरण में आते बदलावों के चलते उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ओजोन का स्तर बढ़ सकता है।
उनके मुताबिक जिन क्षेत्रों में वनों को बहाल किया जा रहा है, वो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में बेहद महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन जंगलों को ओजोन के बढ़ते स्तर की वजह से नुकसान हो रहा है। यह स्पष्ट है कि वायु गुणवत्ता वनों द्वारा किए जा रहे कार्बन के अवशोषण और भंडारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
ऐसे में शोधकर्ताओं के मुताबिक पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने से जमीनी स्तर पर ओजोन में गिरावट आएगी, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार होगा। इतना ही नहीं इसकी वजह से उष्णकटिबंधीय जंगलों को कहीं अधिक कार्बन अवशोषित करने में मदद मिलेगी। जो जलवायु परिवर्तन के लिहाज से भी फायदेमंद होगा।