सावधान! चेहरे की हंसी छीन रहा प्रदूषण, बढ़ते अवसाद की बन रहा वजह

रिसर्च से पता चला है कि लम्बे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से अवसाद में वृद्धि हो सकती है
भारत में भी बच्चों और किशोरों में बढ़ती बैचेनी, डिप्रेशन और मानसिक तनाव जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं। फोटो: आईस्टॉक
भारत में भी बच्चों और किशोरों में बढ़ती बैचेनी, डिप्रेशन और मानसिक तनाव जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं। फोटो: आईस्टॉक
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वायु प्रदूषण फेफड़ों और दूसरे अंगों के साथ-साथ हमारी भावनाओं पर भी गहरा असर डाल रहा है। रिसर्च से पता चला है कि लम्बे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से अवसाद में वृद्धि हो सकती है।

इसका मतलब है कि लम्बे समय तक दूषित हवा वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के दुखी या निराश महसूस करने की आशंका अधिक होती है।

जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड इकोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से अवसाद का खतरा बढ़ सकता है। यह अध्ययन हार्बिन मेडिकल यूनिवर्सिटी और क्रैनफील्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

गौरतलब है कि अवसाद दुनिया के सामने एक गंभीर चुनौती बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि दुनिया में दस से 19 वर्ष का हर सातवां बच्चा मानसिक समस्याओं से जूझ रहा है। इन समस्याओं में अवसाद, बेचैनी और व्यवहार से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं।

भारतीय बच्चों और किशोरों में भी बढ़ता डिप्रेशन एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) और स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि स्कूल जाने वाले 13 से 18 वर्ष के अधिकांश किशोर अवसाद (डिप्रेशन) का शिकार बन रहे हैं।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस द्वारा 2016 में भारत के 12 राज्यों पर किए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि देश में करीब 2.7 फीसदी लोग डिप्रेशन जैसे कॉमन मेंटल डिस्ऑर्डर से पीड़ित है।

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भारत में भी बच्चों और किशोरों में बढ़ती बैचेनी, डिप्रेशन और मानसिक तनाव जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं। फोटो: आईस्टॉक

वहीं करीब 5.2 फीसदी आबादी जीवन के किसी न किसी मोड़ पर इस समस्या का शिकार हुई है। सर्वेक्षण में यह भी सामने आया है कि देश के 15 करोड़ लोगों को किसी न किसी मानसिक समस्या की वजह से तत्काल डॉक्टरी मदद की जरूरत है।

अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चाइना हेल्थ एंड रिटायरमेंट लॉन्गिट्यूडिनल स्टडी के हिस्से के रूप में एकत्र किए गए चीन के 12,000 से अधिक लोगों के आंकड़ों का अध्ययन किया है।

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खतरनाक साबित हो रहा कई प्रदूषकों का मेल

अध्ययन से पता चला है कि जांचे गए वायु प्रदूषकों में सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) अवसाद के बढ़ते जोखिम का सबसे प्रमुख कारण है। इसके साथ ही पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे प्रदूषण के कण भी बढ़ते अवसाद से जुड़े हैं।

शोध के मुताबिक आपस में मिलकर यह प्रदूषक कहीं ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं। इससे पता चलता है कि कई प्रदूषकों में सांस लेना कितना खतरनाक हो सकता है।

अध्ययन में इस बात की जांच की गई है कि प्रदूषण किस तरह अवसाद का कारण बनता है। इससे पता चला है कि यह आंशिक रूप से शरीर और दिमाग दोनों को नुकसान पहुंचाता है, जो अवसाद का कारण बनता है। इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो प्रदूषण की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर मंडराते खतरों को उजागर करते हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं ने इससे निपटने के लिए त्वरित कार्रवाई का आग्रह किया है।

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प्रेस विज्ञप्ति में शोधकर्ताओं ने इस बारे में जानकारी दी है कि, "निष्कर्ष शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को बेहतर बनाने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन की आवश्यकता को दर्शाते हैं।" उनके मुताबिक सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य प्रदूषकों पर नियंत्रण से अवसाद की दर को कम करने में मदद मिल सकती है।

यह खासतौर पर बुजुर्गों और मध्यम आय अर्जित करने वाले समुदाय जैसे कमजोर तबके के लिए वरदान साबित हो सकता है।

देखा जाए तो दुनिया में करोड़ों लोगों ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। ऐसे में इस नए अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पर्यावरण और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं किस तरह आपस में जुड़ी हुई हैं।

बता दें कि भारत में भी बढ़ता प्रदूषण के बड़ी चुनौती बन चुका है। यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 31 अक्टूबर 2024 को दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर 603 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मानकों से कई गुणा अधिक है।

एक अन्य अध्ययन के हवाले से पता चला है कि दुनिया में अस्थमा के करीब एक तिहाई मामले लम्बे समय तक प्रदूषण के महीन कणों के सम्पर्क में रहने से जुड़े हैं। इसी तरह जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था और बचपन के शुरूआती दिनों में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से मस्तिष्क के श्वेत पदार्थ की संरचना में बदलाव आ सकता है, जो मानसिक विकास को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।

दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारतीय शहरों में ओजोन प्रदूषण के स्तर में चिंताजनक वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के मुताबिक इस साल गर्मियों के दौरान भारत के दस प्रमुख शहरी क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर ओजोन का स्तर काफी बढ़ गया, जिससे इन क्षेत्रों में हवा कहीं ज्यादा जहरीली हो गई। इससे दिल्ली सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।

भारत में वायु प्रदूषण की ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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