एक नई रिसर्च से पता चला है कि गर्भावस्था और बचपन के दौरान कुछ प्रदूषण के महीन कणों जैसे पीएम 2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) के संपर्क में आने से मस्तिष्क के श्वेत पदार्थ की संरचना में बदलाव आ सकता है।
अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जीवन के शुरूआती वर्षों में प्रदूषकों के संपर्क में आने से दिमाग के भीतर मौजूद श्वेत पदार्थ पर स्थाई प्रभाव पड़ सकता है। रिसर्च से पता चला है कि इनमें से कुछ प्रभाव तो किशोरावस्था में भी जारी रहते हैं।
बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (आईएसग्लोबल) से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जिसमें वायु प्रदूषण और श्वेत पदार्थ की संरचना के बीच संबंधों की गहराई से पड़ताल की गई है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुए हैं।
इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि वायु प्रदूषण से निपटना कितना जरूरी है, क्योंकि यह गर्भवती महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।
इस बात के प्रमाण दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण, बच्चों के दिमागी विकास को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इमेजिंग तकनीकों की मदद से किए हालिया अध्ययनों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि वायु प्रदूषक मस्तिष्क के श्वेत पदार्थ को कैसे प्रभावित करते हैं। बता दें कि यह वो पदार्थ है जो मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को जोड़ता है। हालांकि यह अध्ययन सीमित थे, इनमें केवल एक ही समय पर अध्ययन किया गया था, लेकिन बच्चों के बड़े होने पर प्रभावों का अध्ययन नहीं किया गया।
आईएसग्लोबल और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता मोनिका गुक्सेंस का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है कि बचपन के दौरान बच्चों पर नजर रखने और हर बच्चे के दो न्यूरोइमेजिंग आकलन करने से यह समझने में मदद मिलेगी कि क्या वायु प्रदूषण का श्वेत पदार्थ पर स्थाई तौर पर प्रभाव बना रहता है। साथ ही क्या वो समय के साथ बेहतर होता है या स्थिति और बिगड़ जाती है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 4,000 से अधिक बच्चों को शामिल किया था। इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने इस बात का अनुमान लगाया है कि गर्भावस्था और बचपन के दौरान बच्चों ने 14 अलग-अलग वायु प्रदूषकों के किस स्तर का सामना किया था। यह उनके आवास के स्थान पर आधारित था।
इनमें से 1,314 बच्चों के मस्तिष्क में सफेद पदार्थ की संरचना में हुए बदलावों का अध्ययन करने के लिए दो स्कैन किए गए थे। इनमें से पहला स्कैन करीब दस वर्ष की उम्र में जबकि दूसरा 14 वर्ष की उम्र में किया गया था।
विश्लेषण से पता चला है कि कुछ प्रदूषकों, जैसे कि पीएम 2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) के संपर्क में आने से मस्तिष्क में सफेद पदार्थ का विकास प्रभावित होता है।
किस हद तक मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करता है वायु प्रदूषण
इसी तरह गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 के अधिक संपर्क में रहने और बचपन में पीएम 2.5, पीएम 10 और नाइट्रोजन ऑक्साइड के अधिक संपर्क में रहने से "फ्रैक्शनल अनिसोट्रॉपी" के निम्न स्तर से जुड़ा पाया गया है। बता दें कि यह इस बात का माप है कि मस्तिष्क के अंदर पानी किस तरह से प्रवाहित होता है।
गौरतलब है कि अधिक परिपक्व मस्तिष्क में पानी अधिकतर एक ही दिशा में बहता है, जिससे इस माप का मान अधिक होता है। यह प्रभाव किशोरावस्था के दौरान (दूसरे मस्तिष्क स्कैन में भी) देखा गया। इससे पता चला है कि वायु प्रदूषण का मस्तिष्क के विकास पर लम्बे समय में प्रभाव पड़ सकता है। इस दौरान प्रदूषण के संपर्क में प्रत्येक वृद्धि मस्तिष्क के विकास में पांच महीने से अधिक की देरी से जुड़ी थी।
इस बारे में आईएसग्लोबल और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता मिशेल कुस्टर्स ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि कम आंशिक अनिसोट्रॉपी संभवतः तंत्रिका तंतुओं की संरचना में परिवर्तन के बजाय, तंत्रिकाओं के चारों ओर बनने वाले सुरक्षात्मक आवरण, ‘माइलिन’ में परिवर्तन के कारण है।"
हालांकि यह पूरी तरह समझा नहीं गया है कि वायु प्रदूषण माइलिन को किस प्रकार प्रभावित करता है, लेकिन ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि सूक्ष्म कण सीधे मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं या जब ये कण फेफड़ों में प्रवेश करते हैं तो शरीर सूजन पैदा करने वाले रसायन बनाता है। इसकी वजह से मस्तिष्क में सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव और अंततः मस्तिष्क कोशिकाओं की मृत्यु हो सकती है, जैसा कि पशुओं पर किए अध्ययनों में भी देखा गया है।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि कुछ प्रदूषक श्वेत पदार्थ के एक अन्य माप में परिवर्तन से जुड़े थे। यह माप श्वेत पदार्थ के स्वास्थ्य को दर्शाता है और आमतौर पर मस्तिष्क के परिपक्व होने के साथ घटता जाता है।
रिसर्च के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 के संपर्क में आने से पहले औसत प्रसार क्षमता अधिक होती है, जो बच्चों के बड़े होने के साथ-साथ तेजी से कम होती जाती है। इससे पता चलता है कि वायु प्रदूषण के कुछ प्रभाव समय के साथ कम हो सकते हैं।
कुल मिलाकर, अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था और बचपन के शुरूआती दिनों में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से मस्तिष्क के श्वेत पदार्थ पर लम्बे समय तक प्रभाव पड़ सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक भले ही यह प्रभाव कम हों, लेकिन वे आबादी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।
गौरतलब है कि यह जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो यूरोप में बच्चों पर किए अध्ययन में सामने आए हैं, जहां प्रदूषण का स्तर भारतीय शहरों की तुलना में काफी कम होता है। ऐसे में प्रदूषण के यह कण भारतीय बच्चों के दिमाग को किस कदर प्रभावित कर रहे हैं, इसका अंदाजा आप स्वयं ही लगा सकते हैं।
भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।