भारत के महानगरों में ओजोन प्रदूषण में चिंताजनक वृद्धि, राजधानी दिल्ली सबसे अधिक प्रभावित: सीएसई रिपोर्ट

ग्राउंड-लेवल ओजोन एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है, जो स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। यह सांस संबंधी समस्याओं, अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज से जूझ रहे मरीजों को विशेष रूप से प्रभावित करती है
बढ़ते प्रदूषण में अपनी बच्ची की मास्क पहनने में मदद करती एक मां; फोटो: आईस्टॉक
बढ़ते प्रदूषण में अपनी बच्ची की मास्क पहनने में मदद करती एक मां; फोटो: आईस्टॉक
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दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारतीय शहरों में ओजोन प्रदूषण के स्तर में चिंताजनक वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के मुताबिक इस साल गर्मियों के दौरान भारत के दस प्रमुख शहरी क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर ओजोन का स्तर काफी बढ़ गया, जिससे इन क्षेत्रों में हवा कहीं ज्यादा जहरीली हो गई। इससे दिल्ली सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।

गौरतलब है कि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने “एयर क्वालिटी ट्रैकर: एन इनविजिबल थ्रेट” नामक यह रिपोर्ट छह अगस्त 2024 को जारी की है। इस रिपोर्ट में दिल्ली एनसीआर, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई और पुणे के साथ ग्रेटर अहमदाबाद, ग्रेटर हैदराबाद, ग्रेटर जयपुर और ग्रेटर लखनऊ में ओजोन के स्तर का विश्लेषण किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दिल्ली-एनसीआर में 176 दिन ग्राउंड-लेवल ओजोन का स्तर सामान्य से अधिक रहा। इसी तरह मुंबई और पुणे में 138 दिन ऐसी ही स्थिति थी। वहीं जयपुर में 126 दिन, हैदराबाद में 86, कोलकाता में 63, बेंगलुरु में 59, लखनऊ में 49 और अहमदाबाद में 41 दिन ओजोन का स्तर असामान्य था। वहीं चेन्नई में ऐसे दिनों की संख्या सबसे कम नौ दर्ज की गई।

शोधकर्ताओं के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ, अहमदाबाद और चेन्नई में गर्मियों के दौरान ग्राउंड-लेवल ओजोन का बढ़ना बेहद आम हो गया है। हालांकि, मुंबई, पुणे, हैदराबाद और बेंगलुरु में गर्मियों (अप्रैल-जुलाई) की तुलना में जनवरी से मार्च के बीच ओजोन में कहीं ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।

रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया है कि इस साल ओजोन प्रदूषण की बढ़ती समस्या 2020 में लॉकडाउन के दौरान गर्मियों में पैदा हुई समस्या से भी कहीं ज्यादा व्यापक है। इतना ही नहीं हवा में घुलते जहर की यह समस्या लम्बे समय तक बनी रही।

देखा जाए तो देश में वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती बन चुका है, स्थिति यह है कि बढ़ते प्रदूषण की समस्या अब केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं है। छोटे शहर भी बढ़ते प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसा ही कुछ ओजोन के मामले में भी देखने को मिला है जब छोटे महानगरों में भी यह समस्या नाटकीय रूप से पैर पसार रही है।

रिपोर्ट के अनुसार इस साल दस में से सात शहरों में पिछले साल की तुलना में कहीं अधिक दिन ओजोन का स्तर बेहद ज्यादा रहा। इस मामले में अहमदाबाद जैसे छोटे शहरों में सबसे ज्यादा उछाल आया है, जहां 4,000 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं पुणे में 500 फीसदी, जबकि जयपुर में 152 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसी तरह हैदराबाद में सीमा से अधिक दिनों की संख्या में 115 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।

देखा जाए तो ओजोन की यह समस्या गर्मियों में कहीं ज्यादा विकट होती है, लेकिन दक्षिणी और पश्चिमी तटीय महानगरीय क्षेत्रों में यह समस्या सिर्फ गर्मियों तक ही सीमित नहीं रह गई है। इसका प्रभाव उससे कहीं आगे भी महसूस किया जा रहा है।

हैरानी की बात है कि यह गैस रात के समय भी मौजद थी। हालांकि सामान्य तौर पर रात के समय ओजोन का स्तर आदर्श रूप से नगण्य हो जाना चाहिए, लेकिन सभी दसों महानगरों में दुर्लभ घटना देखी गई जब सूर्यास्त के बाद भी इसका स्तर उच्च बना हुआ था। गौरतलब है कि रात के समय ओजोन का स्तर तब देखा जाता है जब किसी भी निगरानी स्टेशन पर रात 10 बजे से सुबह दो बजे के बीच प्रति घंटे ओजोन का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक होता है।

रिपोर्ट से पता चला है कि जहां मुंबई में सबसे अधिक रातें जमीनी स्तर पर उच्च ओजोन वाली रहीं, जहां 171 रातें ऐसी थी जब ओजोन का स्तर सामान्य से ज्यादा था। वहीं दिल्ली-एनसीआर में 161 रातें और पुणे में 131 रातें दर्ज की गई। हैदराबाद में 94 रातें, अहमदाबाद में 68, लखनऊ में 26, चेन्नई में 24, बेंगलुरु में 22 रातें और कोलकाता में सबसे कम 17 रातें ऐसी थी जब ग्राउंड लेवल ओजोन का स्तर चिंताजनक था।

ओजोन प्रदूषण में मामले में भारत में विकट है स्थिति

सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है कि, "ग्राउंड-लेवल ओजोन एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है, जो स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। यह सांस संबंधी समस्याओं, अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज से जूझ रहे मरीजों को विशेष रूप से प्रभावित करती है।

इसके साथ ही बुजुर्ग और मासूम बच्चे, जिनके फेफड़ों का विकास पूरी तरह नहीं हुआ है, उनपर गहरा असर डालती है।" उनके मुताबिक इसकी वजह से श्वसन पथ में सूजन और अन्य तरह से नुकसान हो सकता है। इतना ही नहीं ओजोन की वजह से फेफड़े संक्रमण के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं, और अस्थमा और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याएं बढ़ सकती है। अस्थमा की बढ़ती समस्या के साथ अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ सकती है।

2020 स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट से भी पता चला है कि भारत में ग्राउंड-लेवल ओजोन से जुड़ी मृत्यु दर सबसे अधिक है। 2010 से 2017 के बीच भारत में ओजोन के मौसमी आठ घंटे के दैनिक अधिकतम स्तर में सबसे अधिक करीब 17 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

सीएसई की अर्बन लैब में प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी ने बताया कि, "2024 में, यह समस्या 2020 के दौरान गर्मियों की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक है। 2020 का यह वो समय था जब महामारी की वजह से लॉकडाउन था। इस साल प्रभावित क्षेत्रों में जहरीली ओजोन लंबे समय तक बनी रही। यहां तक ​​कि छोटे शहरों में भी इसमें तेजी से वृद्धि देखी गई है। दक्षिणी और पश्चिमी तटीय शहरों में, यह समस्या गर्मियों के महीनों तक ही सीमित नहीं रह गई है।"

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि ग्राउंड लेवल ओजोन पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि यह किसी भी स्रोत से सीधे तौर पर उत्सर्जित नहीं होता। यह वाहनों, बिजली संयंत्रों, कारखानों और अन्य स्रोतों द्वारा उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के बीच एक जटिल प्रतिक्रिया से बनती है, जो सूर्य के प्रकाश के साथ प्रतिक्रिया करती है। यह वाष्पशील कार्बनिक यौगिक पौधों जैसे प्राकृतिक स्रोतों से भी आ सकते हैं।

दिल्ली में डॉक्टर करणी सिंह शूटिंग रेंज और लोदी कॉलोनी, मुंबई में नेवी नगर, कोलकाता में फोर्ट विलियम, हैदराबाद में कपरा, बेंगलुरु में बीएमटी लेआउट, चेन्नई में वेलाचेरी, पुणे में सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय, जयपुर में पुलिस कमिश्नरेट, लखनऊ में गोमती नगर और अहमदाबाद में मणिनगर सभी ग्राउंड लेवल ओजोन प्रदूषण के हॉटस्पॉट रहे।

रॉयचौधरी ने इस बारे में समझाया , "यह विज्ञान के अनुसार सही है ओजोन उन क्षेत्रों में विचरण करता और इकट्ठा होता है जहां अन्य प्रदूषक कम होते हैं। इसलिए, अपेक्षाकृत स्वच्छ क्षेत्रों, जैसे शहर के बाहरी इलाकों में ओजोन का स्तर अधिक हो सकता है।"

बता दें कि इससे पहले भी सीएसई ग्राउंड-लेवल ओजोन की बढ़ती समस्या को लेकर समय-समय पर आगाह करता रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में बढ़ते प्रदूषण से निपटने को लेकर अधिकांश नीतियां और आम लोगों का ध्यान विशेष तौर पर पीएम 2.5 जैसे अन्य प्रदूषकों पर रहा है।

यही वजह है कि इस जहरीली गैस से निपटने के लिए नीतियों में भी उतना ध्यान नहीं दिया गया। अपर्याप्त निगरानी, सीमित आंकड़े और पर्याप्त विश्लेषण की कमी ने स्वास्थ्य पर मंडराते इस खतरे को समझने में बाधा उत्पन्न की है।

सीएसई ने सुझाई राह, कैसे होगा प्रदूषण कम

इस विश्लेषण से जुड़े शोधकर्ता अविकल सोमवंशी के मुताबिक जमीनी स्तर पर ओजोन की जटिल रासायनिक संरचना के कारण इसे ट्रैक और नियंत्रित करना मुश्किल है। चूंकि यह जहरीली होती है, इसलिए वायु गुणवत्ता मानक अल्पकालिक जोखिम (एक घंटे और आठ घंटे के औसत) के लिए निर्धारित किए गए हैं, और अनुपालन इन सीमाओं से अधिक दिनों की संख्या पर आधारित है। ऐसे में सीएसई से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि इस मुद्दे पर जल्द से जल्द कार्रवाई की आवश्यकता है।

रॉयचौधरी का कहना है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। ऐसे में इसके सुधार एजेंडे को पीएम 2.5, ओजोन, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य गैसों से होने वाले संयुक्त खतरों से निपटना होगा।

वैश्विक अनुभवों से पता चला है कि आमतौर पर जैसे-जैसे प्रदूषण के कणों का स्तर गिरता है उसके साथ ही  नाइट्रोजन ऑक्साइड और ग्राउंड-लेवल ओजोन का स्तर बढ़ जाता है। ऐसे में ओजोन को नियंत्रित करने के लिए उद्योगों, वाहनों, घरों और खुले में जलने से होने वाले जहरीले उत्सर्जन को रोकने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है।

वह आगे कहती हैं, "ओजोन न केवल शहरों में जमा होता है, बल्कि लंबी दूरी तक फैलकर क्षेत्रीय रूप से भी प्रदूषण में इजाफा करता है। यही वजह है कि स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों स्तर पर कार्रवाई आवश्यक हो जाती है।"

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में इससे निपटने के लिए ओजोन के स्तर पर अधिक बारीकी से नजर रखने की बात कही है साथ ही इसे ट्रैक करने के लिए बेहतर तरीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है। इसकी प्रवृत्ति का विश्लेषण करने की विधियों में भी सुधार की आवश्यकता जताई है। इसका मतलब है कि हमें अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा ताकि कारों, कारखानों और बिजली संयंत्रों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसों और अन्य प्रदूषकों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा सके।

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