भारत में हवा का आपातकाल: बच्चों के लिए जीवन-मृत्यु का सवाल बनता वायु प्रदूषण

शोधों में वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध का पता चला है
गर्भावस्था और जीवन के शुरूआती वर्षों में प्रदूषण का संपर्क बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है; फोटो: आईस्टॉक
गर्भावस्था और जीवन के शुरूआती वर्षों में प्रदूषण का संपर्क बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है; फोटो: आईस्टॉक
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यदि आप भारत के व्यस्त शहरों में रहते हैं तो एक बात तो तय है कि वहां मौजूद वायु प्रदूषण आपके बच्चों के स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल सकता है। खास तौर पर सर्दियों के दौरान बच्चों को इसके गंभीर परिणामों से जूझना पड़ सकता है।

इससे न केवल बच्चों का विकास अवरुद्ध हो सकता है, जबकि बेहद खराब परिस्थितियों में यह जन्मे और अजन्मे बच्चों की असमय मृत्यु की वजह तक बन सकता है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली गर्भवती महिलाओं को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ सकता है। इसकी वजह से जहां जन्म के समय कम वजन और समय से पहले प्रसव जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। वहीं गर्भ में ही शिशु की मृत्यु तक हो सकती है।

डाउन टू अर्थ ने 2018 से अक्टूबर 2023 के बीच प्रकाशित 25 अध्ययनों की समीक्षा की है। इन शोधों में वायु प्रदूषण के चलते बच्चों के स्वास्थ्य पर मंडराते खतरे का पता चला है।  उदाहरण के लिए, अप्रैल 2022 में भारत में किए एक अध्ययन से पता चला है कि यदि गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों के दौरान उनकी मां हानिकारक पीएम 2.5 के संपर्क में आती हैं, तो शिशुओं की मृत्यु की संभावना अधिक होती है।

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण के चलते 2020 में 116,000 से अधिक नवजातों की मृत्यु उनके जन्म के पहले 27 दिनों में हो गई थी। इसका मतलब है कि भारत की हवा में घुला जहर हर पांच मिनट में एक नवजात की जान ले रहा है।

वायु प्रदूषण के चलते बच्चों की शारीरिक संरचना पर पड़ने वाले प्रभाव और भी अधिक हानिकारक हैं। इसे साबित करने के लिए भी कई अध्ययन उपलब्ध हैं। जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण बच्चों न केवल बच्चों के विकास पर नकारात्मक असर डालता है, साथ ही उनके विकास को भी अवरुद्ध कर देता है।

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रिसर्च से पता चला है कि गर्भावस्था और बचपन के दौरान प्रदूषण के महीन कणों जैसे पीएम 2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) के संपर्क में आने से मस्तिष्क के श्वेत पदार्थ की संरचना में बदलाव आ सकता है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि जीवन के शुरूआती वर्षों में प्रदूषकों के संपर्क में आने से दिमाग के भीतर मौजूद श्वेत पदार्थ पर स्थाई प्रभाव पड़ सकता है। रिसर्च से पता चला है कि इनमें से कुछ प्रभाव तो किशोरावस्था में भी जारी रहते हैं।

अजन्मों पर भी भारी पड़ रहा बढ़ता प्रदूषण

गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण का संपर्क नवजातों में आगे चलकर कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है। इससे पहले भी कई शोधों में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि बढ़ता प्रदूषण नवजातों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है। ऐसा ही कुछ हाल ही में जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में सामने आया था, जिसमें पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के सूक्ष्म कणों के संपर्क में आने से नवजातों का वजन सामान्य से कम रह सकता है, जो जन्म के तुरंत बाद उनकी मृत्यु का कारण बन सकता है।

रिसर्च के मुताबिक प्रदूषण के यह महीन कण सांस के जरिए गर्भवती महिलाओं के फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा होता है। इसके साथ-साथ यह हार्मोन के स्तर को भी प्रभावित करता है, जिसका सीधा असर भ्रूण के विकास पर पड़ता है। इसकी वजह से जन्म के समय नवजातों का वजन सामान्य से कम रह जाता है।

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एक रिसर्च के मुताबिक भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण हर साल दो लाख से ज्यादा अजन्मों को गर्भ में मार रहा है। अध्ययन से पता चला है कि वातावरण में पीएम 2.5 का हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से स्टिलबर्थ का खतरा 11 फीसदी तक बढ़ सकता है।

इसी तरह 2018 के दौरान तमिलनाडु में किए एक अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम से अधिक की वृद्धि से बच्चे के वजन में चार ग्राम की गिरावट आ सकती है। साथ ही यह वृद्धि कम वजन वाले नवजातों के जन्म में दो फीसदी की वृद्धि से जुड़ी है।

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देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर बढ़ता प्रदूषण दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। आज दुनिया की 99 फीसदी से ज्यादा आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो उन्हें हर दिन मौत की ओर ले जा रही है।

जर्नल प्लोस मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य शोध में सामने आया है कि वायु प्रदूषण के चलते हर साल दुनिया भर में करीब 59 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले हो जाता है। इतना ही नहीं इसके चलते करीब 28 लाख शिशुओं का वजन जन्म के समय सामान्य से कम था।

वहीं जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक शोध के हवाले से पता चला है कि वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भपात का खतरा करीब 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा किए ऐसी ही एक शोध से पता चला है कि बढ़ता वायु प्रदूषण दिमाग के शुरूआती विकास पर असर डाल सकता है।

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31 अक्टूबर, 2023 को जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया है कि पीएम2.5 के संपर्क में हर दस माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में सामने आने वाले एनीमिया के मामले में दस फीसदी का इजाफा हो सकता है। इसी तरह पीएम 2.5 की इस वृद्धि के साथ सांस सम्बन्धी संक्रमण में 11 फीसदी और कम वजन वाले जन्मों की दर में पांच फीसदी की वृद्धि हो सकती है। 

रिपोर्ट के मुताबिक 130 करोड़ भारतीय आज ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं, जहां प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी दिशानिर्देशों से कहीं ज्यादा है। ऐसे में यदि हर भारतीय साफ हवा में सांस ले तो उससे जीवन के औसतन 5.3 साल बढ़ सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा दिल्ली-एनसीआर में देखने को मिलेगा जहां रहने वाले हर इंसान की आयु में औसतन 11.9 वर्षों का इजाफा हो सकता है।

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मई 2022 में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि यदि प्रदूषण के स्तर को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों तक कम कर दिया जाए, तो भारत में स्टंटिंग से जूझ रहे बच्चों की संख्या में 10.4 फीसदी की गिरावट कमी आ सकती है।

देखा जाए तो भारत में वायु गुणवत्ता संबंधी कानून तो हैं, लेकिन वो साफ हवा की गारंटी नहीं देते। इसकी सबसे बड़ी वजहों में से एक जनता में जागरूकता और इच्छाशक्ति की कमी है। भारत में साफ हवा को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत एक संवैधानिक अधिकार बनाया गया है। हालांकि इसके बावजूद देश में कितने लोग साफ हवा में सांस ले रहे हैं, यह एक गंभीर चिंतन का विषय है।

भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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