भवनों के मलबे के प्रबंधन से घट सकता है वायु प्रदूषण का कहर, सीएसई का नया विश्लेषण

निर्माण व तोड़फोड़ से निकलने वाले मलबे यानी सीएंडडी वेस्ट के रीसाइकिल प्लांटों की पड़ताल के बाद सीएसई ने रिपोर्ट जारी की
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अगर दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित पूरे देश में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकना है तो हमें भवनों व निर्माण परियोजनाओं से निकलने वाला मलबे (सीएंडडी वेस्ट) का बेहतर प्रबंधन करना होगा। हालांकि सरकार सीएंडडी वेस्ट के प्रबंधन की दिशा में काम कर रही है, लेकिन अभी तक के इंतजाम बेहद नाकाफी हैं।

नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने आज यानी 11 नवंबर 2024 को एक रिपोर्ट जारी कर इस पर बड़ी चिंता जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तेजी से देश में भवन या कंक्रीट से तैयार होने वाली परियोजनाएं बन रही हैं, उससे जल्द ही देश में निकलने वाला सीएंड वेस्ट लगभग दोगुणा हो जाएगा।

क्या है सीएंडडी वेस्ट

भवन, पुल, सड़क जैसी परियोजनाओं के निर्माण या तोड़फोड़ की वजह से जो कचरा या मलबा निकलता है। उसे सीएंडडी वेस्ट कहा जाता है। इसमें कंक्रीट, सीमेंट, ईंटें, मलबा, पत्थर, लकड़ी स्टील, कांच, पाइप, नाली, चमकदार टाइलें या पैनल, पेंट, चिपकने वाले पदार्थ, फास्टनरों, दीवार के प्लास्टर या इन्सुलेशन जैसी चीजें शामिल हैं।

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सीएसई की ताजा रिपोर्ट एक राष्ट्रीय सम्मेलन में जारी की गई। रिपोर्ट में भारत में सीएंडडी वेस्ट के प्रबंधन को लेकर नया खुलासा किया है। सीएसई ने भारत में स्थापित किए जा रहे 35 से अधिक नए सीएंडडी वेस्ट रिसाइकिल प्लांटों में से 16 प्लांटों की जांच और मूल्यांकन किया। ताकि मौजूदा कमियों और उन्हें प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक नीतिगत मार्गों को समझा जा सके।

सीएसई ने पाया कि सभी 16 प्लांटों में से लगभग सभी अपनी क्षमता से काफी कम काम कर रहे हैं और ये प्लांट आर्थिक रूप से व्यावहारिक भी नहीं हैं।

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यह रिपोर्ट जारी करते हुए सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनमिता रॉयचौधरी ने कहा, सीएंडडी का प्रबंधन और धूल को नियंत्रित किया जा सकता है, जो वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए देश में शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इस कार्यक्रम के तहत शहरों को कचरा प्रसंस्करण के लिए रीसायक्लिंग संयंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया गया है ताकि ऐसे मलबे को रीसायकल करके एग्रीगेट्स, पेवर ब्लॉक आदि तैयार किए जा सकें, जिन्हें निर्माण उद्योग के लिए एक संसाधन के रूप में दोबारा उपयोग किया जा सके।”

रॉयचौधरी ने आगे कहा कि सीएंडडी वेस्ट को रीसायकल करने से संसाधनों की पूरी वसूली संभव होती है। इससे आर्थिक बचत होती है और आजीविका व रोजगार का भी सृजन होता है। लेकिन ऐसा हो नहीं हो रहा है।

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सही से काम नहीं कर रहे प्लांट

सीएसई ने अपनी पड़ताल में पाया कि सीएंडडी वेस्ट के प्रबंधन व रीसाइकिल के लिए लगाए गए प्लांटों पर निवेश तो खूब किया गया है, लेकिन यह प्लांट सही से काम नहीं कर रहे हैं। सीएसई के सस्टेनेबल बिल्डिंग्स एंड हैबिटेट डिवीजन के निदेशक रजनीश सरीन कहते हैं कि हमने पाया कि भारी निवेश करने के बावजूद अधिकांश रीसाइकिल प्लांट आर्थिक रूप से व्यावहारिक साबित नहीं हो रहे हैं। ये प्लांट नगर पालिकाओं के सहयोग पर बहुत अधिक निर्भर हैं। एक व्यवहारिक वित्तीय मॉडल और बाजार के एकीकरण के बिना इस तरह के प्लांट चलाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं।

बढ़ रहा है मलबा

सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि भारत में भवनाें की संख्या अगले 20 वर्षों में दोगुना से अधिक होने का अनुमान है। रेत और बजरी की बहुत ज़्यादा मांग होगी, जिससे खनन बढ़ेगा। इस बढ़ती मांग के कारण पिछले 20 वर्षों में रेत के व्यापार में छह गुना वृद्धि हुई है, और कटाव, जैव विविधता की हानि और जल लवणीकरण जैसे पर्यावरणीय मुद्दे भी सामने आए हैं।

सरीन कहते हैं कि सीएंडडी वेस्ट को रीसायकल करने से शुद्ध सामग्री की मांग को घटाया जा सकता है, क्योंकि लगभग 80-90 प्रतिशत वेस्ट का दोबारा उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि लैंडस्केपिंग, अर्थवर्क और सिविल इंजीनियरिंग परियोजनाओं में। इतना ही नहीं, रीसायकल किए गए एग्रीगेट्स का उपयोग करके लगभग 40 प्रतिशत सीओ₂ उत्सर्जन कम किया जा सकता है।

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क्या करना चाहिए

सीएसई ने सीएंडडी वेस्ट से निपटने के लिए कुछ रास्ते सुझाए हैं। जैसे कि-

बिल्डिंग व प्रोजेक्टों का निर्माण करने कंपनियों, नगर पालिकाओं और रीसाइक्लिंग प्लांट संचालकों को मलबे को अच्छे से इकट्ठा कर उसे अलग-अलग करना और रीसाइक्लिंग प्लांटों तक पहुंचाने के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना होगा।

नगर पालिकाओं को इस काम में बेहतर भूमिका निभानी होगी। इससे जहां मलबे का उचित निस्तारण होगा, वहीं निर्माण कार्यों के दौरान होने वाले खर्च में भी कमी आएगी।

मलबे को रीसाइकिल कर बनने वाले उत्पादों के अधिक से अधिक इस्तेमाल के लिए नीतिगत फैसले लेने होंगे और इसे आर्थिक रूप से व्यवहारिक भी बनाना होगा।

नगर पालिकाओं में कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ता है, जो अवैध डंपिंग को रोकने में दिक्कतें पैदा करता है।

निपटान या प्रबंधन महंगा होने के कारण अवैध डंपिंग होती है। खासकर छोटे भवन मालिकों के लिए यह काफी खर्चीला होता है, इसलिए तर्कसंगत शुल्क, दिल्ली मॉडल जैसी क्रॉस-सब्सिडी आदि इसे व्यवहारिक बना सकती है।

मलबे या कचरे के संग्रहण की प्रक्रिया को आसान बनाना होगा।

यदि रीसाइकिल उत्पादों की बिक्री और बाजार में मांग है, तो रीसाइकिल प्लांट एक सफल व्यवसाय मॉडल हो सकता है। इससे प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिल सकता है और शहरों में अधिक प्लांटों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

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