मलबे के ढेर में दबता देश-2: दलदली भूमि पर किया जा रहा है डंप

देशभर में नई इमारतों के निर्माण और तोड़फोड़ से निकले मलबे का ढेर बढ़ता जा रहा है। इससे निपटने के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। पड़ताल करती डाउन टू अर्थ की सीरिज-
Photo credit: Creative commons
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पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील वसई और ठाणे की खाड़ी मलबा ठिकाने लगाने की जगह बनकर रह गई हैं। यह सब वर्ष 2008 के आसपास शुरू हुआ जब मुंबई के उपनगरीय इलाके में मौजूद देवनार डंपिंग ग्राउंड में बार-बार आग लगने लगी। पर्यावरणविद राजकुमार शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका पर कार्रवाई करते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय ने शहर में किसी भी नए निर्माण पर रोक लगा दी क्योंकि बृहन्मुंबई नगर पालिका (बीएमसी) मलबे के निपटान में नियमों का पालन नहीं कर रही थी। परिणामस्वरूप लोगों ने मलबा वसई और ठाणे की खाड़ी की गीली जमीन पर डालना शुरु कर दिया।

मई 2008 में उच्चतम न्यायालय ने इस संशोधन के साथ यह रोक हटा दी कि मलबे का उचित निपटान सुनिश्चित करने के बाद ही निर्माण की अनुमति दी जाए। इसका अर्थ है कि निपटान के लिए जगह की पहचान करना आवश्यक है। नगर प्रशासन ने सार्वजनिक और निजी कंपनियों से कचरे के निपटान के लिए स्वेच्छा से अपनी भूमि देने का अनुरोध किया। इसका एक बड़ा फायदा था क्योंकि इस जमीन के लिए पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन करने या पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत नहीं होती है। शहर में सीएंडडी अपशिष्ट प्रबंधन की निगरानी के लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति के सदस्य शर्मा कहते हैं, “जो कंपनियां लंबे समय से दलदली जमीन को रियल एस्टेट के रूप में विकास करने की अनुमति पाने के लिए संघर्ष कर रही थीं, वे अपनी जमीन को सीएंडडी अपशिष्ट निपटान स्थल के घोषित करने के लिए कतार में खड़ी हैं।” उनका कहना है, “वास्तव में, सरकार ने दलदली जमीन को बर्बाद करने को कानूनी रूप दे दिया है।” अब शहर में 10 डंपिंग क्षेत्र हैं और ये सभी दलदली भूमि पर हैं। निजी भूमि मालिकों का दावा है कि ऐसी जमीन पर मलबा डालने से इस जमीन के पुन: इस्तेमाल में आसानी होती है। लेकिन जमीन की ठीक से भराई न होने से इस पर बनी इमारतों के बारिश में गिरने की आशंका बनी रहती है क्योंकि इससे कमजोर कण बह जाते हैं जिससे जमीन धंस जाती है। ठाणे हर साल ऐसी इमारतों के ढहने के लिए बदनाम है।

बैंगलुरु के शानदार कैंपेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण के दौरान बैंगलुरु को मलबे के अनुचित निपटान की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। वर्ष 2013 में पूरे हुए पहले चरण में ठेकेदार ने बड़े परियोजना क्षेत्र का पूरा फायदा उठाया और सारा मलबा परियोजना के दूसरे चरण के लिए तय की गई जमीन पर फेंक दिया। अब दूसरे चरण के ठेकेदार को यह मलबा हटाने के लिए जूझना पड़ रहा है और इसके हटाने में पैसा और समय दोनों बर्बाद हो रहे हैं।

यहां काम कर रहे एक इंजीनियर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “खुदाई करते वक्त हमें पता नहीं होता था कि जमीन के नीचे कोई चट्टान है या मलबे का ढेर है। चट्टान न होने से आधारशिला आसानी से गिर सकती है। यह बहुत जोखिम का काम है।” रॉक क्रिस्टल के राजेश कहते हैं, “ठेकेदारों ने मलबे को हटाने के काम में लगाई जाने वाली गाड़ियों की लागत तो बचा ली, लेकिन अब उन्हें मलबा हटाने के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है।” उनकी कंपनी को शहर के बाहर कुन्नूर गांव में बैंगलुरु का पहला सीएंडडी अपशिष्ट संयंत्र बनाने और चलाने का ठेका दिया गया है।

मलबे की चोरी

पुनर्चक्रण संयंत्र में जाने के दौरान मलबा रहस्यमयी रूप से गायब हो जाता है। संगठित क्षेत्र मलबे के इस्तेमाल और पुनर्चक्रण के बारे में अभी जानकारी जुटाने की अवस्था से गुजर रहा है, कुछ ठेकेदारों ने इसे फायदे का सौदा बना लिया है। अहमदाबाद की अपशिष्ट पुनर्चक्रण सुविधा चलाने वाली अमदाबाद एन्वायरो प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड के डिजाइनर धुन ठाकर कहते हैं, “अहमदाबाद में मलबा इकट्ठा करने के लिए तय जगह पर आया अधिकांश मलबा हमारे पुनर्चक्रण संयंत्र तक नहीं पहुंचता।” उनका मानना है कि दलाल इसे चुरा कर बिल्डरों को बेच देते हैं जो इसका इस्तेमाल गीली जमीन को भर के इसका इस्तेमाल करने के लिए करते हैं।

नई दिल्ली में प्रगति मैदान की बड़े पैमाने की पुनर्विकास परियोजना, जिसमें प्रसिद्ध हॉल ऑफ इंडिया को विवादास्पद रूप से तोड़ना भी शामिल है, से निश्चित रूप से बड़ी मात्रा में मलबा निकला होगा। लेकिन इसे गिनती में लिया ही नहीं गया। इस तरह की चूक को दूर करने के लिए पुणे ने जन स्वास्थ्य और सफाई से संबंधित उप-कानून 2017 को अनुमोदित किया है। वर्तमान में यह महाराष्ट्र सरकार के पास लंबित है। इस शहर का लक्ष्य कचरा इकट्ठा करने की अपनी व्यवस्था से निजी परिवहन कंपनियों को दूर रखना है। मलबे का पता लगाने के लिए यह शहर प्रस्तावित तोड़-फोड़ और निर्माण की मात्रा तथा परियोजना स्थल से निपटान स्थल की दूरी के अनुसार गणना कर लेता है।

पुणे नगर निगम (पीएमसी) के जूनियर इंजीनियर साकेत जाधव कहते हैं, “हमारी योजना ऐसी प्रणाली बनाने की है जिसमें कोई डेवलपर कचरे में उल्लेखनीय कमी, इसके पुन: इस्तेमाल और पुनर्चक्रण के सबूत देकर इसके शुल्क के रिफंड का दावा कर सके।” उन्होंने आगे बताया कि कचरे का बेहतर प्रबंधन करने वालों को पुरस्कृत किया जाएगा और मूल अनुमान तथा निपटान के अंतर की राशि लौटा दी जाएगी। पीएमसी की योजना कचरे के निपटान का सबूत देने को अनिवार्य बनाने और इसे निर्माण पूरा होने के प्रमाण-पत्र के साथ जोड़ने की है। वर्तमान में, पुणे में कम मात्रा में कचरा उत्पन्न करने वाली जगहों से कचरा इकट्ठा करने की व्यवस्था नहीं है। जाधव कहते हैं कि सभी 15 नगर निगम क्षेत्रों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने ठोस अपशिष्ट संसाधन केंद्रों के लिए जगह का चुनाव कर लें। कचरे के पुनर्चक्रण के लिए एक संयंत्र की शुरुआत भी हो चुकी है लेकिन भूमि के मालिकाना हक के कारण इसमें विलंब हो रहा है।

... जारी 

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