मानसिक रूप से भी कमजोर कर रहा वायु प्रदूषण, ध्यान एकाग्रता में आती है दिक्कत

रिसर्च से पता चला है कि वायु प्रदूषण के चलते ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है, ऐसे में वो आसानी से दूसरी ओर भटक सकता है
भारत की शत-प्रतिशत आबादी प्रदूषण की गिरफ्त में है जो उन्हें शारीरिक के साथ-साथ मानसिक रूप से भी कमजोर बना रहा है; फोटो: आईस्टॉक
भारत की शत-प्रतिशत आबादी प्रदूषण की गिरफ्त में है जो उन्हें शारीरिक के साथ-साथ मानसिक रूप से भी कमजोर बना रहा है; फोटो: आईस्टॉक
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दुनिया भर के लिए वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर भी हमें बीमार बना रहा है। देखा जाए तो जितना ज्यादा हम इसके प्रभावों को समझ रहे हैं, इससे जुड़े उतने ज्यादा रहस्य हमारे सामने आते जा रहे हैं।

ऐसे ही एक अध्ययन में पता चला है कि वायु प्रदूषण से हमारा ध्यान भटका सकता है। यह कहीं न कहीं एक गंभीर समस्या को उजागर करता है, क्योंकि पढ़ाई-लिखाई से लेकर ड्राइविंग तक ऐसे बहुत से काम हैं जिनके लिए हमें एकाग्र होने की बेहद आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में प्रदूषित माहौल में इनपर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है

गौरतलब है कि नानजिंग विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया यह अध्ययन जर्नल फ्रंटियर्स ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंस एंड इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुआ है। इससे पहले के शोधों से भी पता चला है कि दूषित हवा में सांस लेने से सोचने-समझने में दिक्कतें आती हैं। इतना ही नहीं बढ़ता प्रदूषण हमारे व्यवहार के साथ-साथ काम करने के तरीकों को भी प्रभावित करता है। लेकिन, प्रदूषित वातावरण में हमारा दिमाग कैसे काम करता है, इसके बारे में हम अब तक बहुत ज्यादा नहीं जानते हैं।

अपने इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक विशेष विधि डॉट-प्रोब टास्क पैराडाइम और ईआरपी नामक तकनीक की मदद ली है, ताकि यह समझा जा सके कि प्रदूषित हवा में रहने से उनके ध्यान लगाने की क्षमता किस तरह प्रभावित होती है।

अपने इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने से पहले प्रतिभागियों को कुछ तस्वीरें दिखाई थी, जिनमें से कुछ तस्वीरें दूषित हवा की तो कुछ साफ हवा की थी। इन तस्वीरों में उस लक्ष्य के सुराग छिपे थे।

ऐसे में जिन प्रतिभागियों को प्रदूषण की तस्वीरें दिखाई गई और इसके बाद उन्हें अपना ध्यान लक्ष्य की ओर लगाना पड़ा, तो उन्होंने वास्तव में बेहतर प्रदर्शन किया। अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ?

ईआरपी विश्लेषण से पता चला कि जब प्रतिभागियों के सामने पहले प्रदूषण की तस्वीरें सामने लाइ गई, तो उनके दिमाग ने छोटी तरंगें (एन300 आयाम) उत्पन्न की थी, जिससे पता चलता है कि इन तस्वीरों ने उनका उतना ध्यान नहीं खींचा।

वहीं जब उनके सामने लक्ष्य को लाया गया तो उनके दिमागी में पी300 तरंगें उत्पन्न हुई थी, जो बड़ी होती है। यह तरंगे जब पैदा होती हैं जब दिमाग को ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है।

इससे पता चलता है कि जब लोग प्रदूषित हवा का सामना करते हैं तो उसके बाद उन्हें अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए दिमाग पर अधिक जोर देना पड़ता है। लेकिन इस प्रदूषित वातावरण को देखने के बाद उनका दूसरी ओर ध्यान लगाना आसान होता है। मतलब की प्रदूषित हवा में वो अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।

इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि दूषित हवा न केवल हमारे शरीर के लिए खराब है, बल्कि यह हमारे सोचने समझने की शक्ति को भी प्रभावित करती है। उनके मुताबिक यह पहला मौका है जब पता चला है कि वायु प्रदूषण हमारे लिए ध्यान लगाना कठिन बना सकता है।

प्रदूषण की गिरफ्त में है भारत की शत-प्रतिशत आबादी 

कुल मिलकर इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण के चलते ध्यान केंद्रित करना और उन्हें सही तरीके से करना कठिन हो जाता है। जब बात ज्यादा ध्यान देने की आती है तो प्रदूषण के चलते लोग उतने सटीक नहीं होते। वहीं दूसरी ओर स्वच्छ हवा ज्यादा ध्यान आकर्षित करती है। देखा जाए तो यह अध्ययन दिमाग को बेहतर ढंग से काम करने के लिए हवा को साफ रखने के प्रयासों के महत्व पर प्रकाश डालता है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा वायु प्रदूषण को लेकर जो गुणवत्ता मानक तय किए हैं उनके आधार पर देखें तो दुनिया की 99 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में रहने को मजबूर है। वहीं भारत की बात करें तो देश का हर इंसान आज ऐसी हवा में सांस ले रहा है जो उन्हें हर पल बीमार बना रही है। इसका सीधा असर न केवल उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बल्कि जीवन की गुणवत्ता पर भी पड़ रहा है।

भले ही हम विकास की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन विडंबना देखिए कि देश की 67.4 फीसदी आबादी आज ऐसे क्षेत्रों में रह रही है जहां प्रदषूण का स्तर देश के अपने स्वयं के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से भी ज्यादा है।

गौरतलब है कि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ भारत में बढ़ते प्रदूषण के खतरों को लेकर आगाह करता रहा है। हालांकि इसके बावजूद दिल्ली, फरीदाबाद ही नहीं देश के कई अन्य छोटे बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता जानलेवा बनी हुई है। देश में स्थिति किस कदर गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में पीएम 2.5 हर साल दो लाख से ज्यादा अजन्मों को गर्भ में मार रहा है।

भारत में वायु प्रदूषण से सम्बंधित ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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