

एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में विशेषज्ञों ने कीटनाशक-मुक्त कृषि के दीर्घकालिक फायदों पर जोर दिया है।
पर्यावरण और सेहत के लिए यह बदलाव फायदेमंद होगा, हालांकि आर्थिक प्रभाव क्षेत्रीय रूप से भिन्न हो सकते हैं।
अध्ययन में 517 विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिनका मानना है कि यह बदलाव जल प्रदूषण घटाने और जैव विविधता को बढ़ाने में मदद करेगा।
गौरतलब है कि हर साल दुनिया में एक-तिहाई से ज्यादा कृषि पैदावार पर खरपतवार, कीटों और बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है। ऐसे में फसलों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर धड़ल्ले से रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन यह जहर अब इंसानी सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
हर साल दुनिया में एक-तिहाई से ज्यादा कृषि पैदावार पर खरपतवार, कीटों और बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है। ऐसे में फसलों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर धड़ल्ले से रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन यह जहर अब इंसानी सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर दुनिया भर के किसान रासायनिक कीटनाशकों की जगह पर्यावरण-अनुकूल और कीट प्रबंधन के प्राकृतिक तरीकों को अपनाएं, तो कृषि की तस्वीर कैसी होगी? इसी सवाल का जवाब खोजने के लिए जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी और स्विट्जरलैंड की ईटीएच ज्यूरिख से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन किया गया है।
इस अध्ययन में पर्यावरण, कृषि, अर्थशास्त्र और स्वास्थ्य जैसे अलग-अलग क्षेत्रों के 517 विशेषज्ञों की राय ली गई, जिसके नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं। इनमें से अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव के लंबे समय में सकारात्मक नतीजे होंगे, यहां तक कि यह पर्यावरण और सेहत के लिए ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप से भी फायदेमंद होगा। हालांकि, इसके प्रभाव हर क्षेत्र में अलग-अलग हो सकते हैं।
कीटनाशक: जरूरी भी, नुकसानदेह भी
अनुमानों के मुताबिक, अगर फसलों की सुरक्षा न की जाए तो हर साल दुनिया भर में एक-तिहाई से ज्यादा पैदावार खरपतवार, कीट और बीमारियों की भेंट चढ़ सकती है।
लेकिन अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर निक्लास मोहरिंग का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "रासायनिक कीटनाशकों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल इंसानी सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक है।“
यही वजह है कि वैज्ञानिक अब खेती के पर्यावरण अनुकूल विकल्पों पर जोर दे रहे हैं।
क्या है पर्यावरण-अनुकूल कीट प्रबंधन?
अध्ययन के मुताबिक पर्यावरण-अनुकूल कीट प्रबंधन में ऐसे तरीके शामिल हैं, जिनसे रसायनों पर निर्भरता कम से कम की जा सके। इनमें कीट-रोधी फसलों को अपनाना, फसल चक्र में विविधता और खेतों के किनारों पर झाड़ियां या पेड़ लगाना शामिल है, ताकि कीटों के प्राकृतिक दुश्मन पनप सकें।
हालांकि, प्रोफेसर मोहरिंग मानते हैं कि हर इलाके के लिए ऐसे विकल्प अभी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं और इसके लिए और शोध की जरूरत है। उनके मुताबिक खेती की परिस्थितियां हर जगह अलग होती हैं, इसलिए एक देश का समाधान दूसरे देश में भी काम करे, यह जरूरी नहीं। यही वजह है कि जर्मनी जैसे किसी एक देश में हुए अध्ययन के नतीजे सीधे दुनिया के दूसरे हिस्सों में लागू करना अक्सर संभव नहीं होता।
इसी वजह से यह स्पष्ट नहीं होता कि किसी खास इलाके में सतत कीट प्रबंधन को सफलतापूर्वक अपनाया जा पाएगा या नहीं। यह भी अनिश्चित रहता है कि इससे पर्यावरण संरक्षण, फसल उत्पादन और किसानों की आमदनी के बीच किस तरह के समझौते करने पड़ सकते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस असमंजस को समझने के लिए उन्होंने स्थानीय विशेषज्ञों से बात की, ताकि यह जाना जा सके कि इस बदलाव में क्या अवसर हैं और क्या जोखिम।
इसके लिए शोधकर्ताओं ने एक विस्तृत सर्वे तैयार किया। इसमें प्रभाव को पांच हिस्सों में बांटा गया, जिनमें पर्यावरण, इंसानी सेहत, खाद्य सुरक्षा, किसानों की आर्थिक स्थिति और सामाजिक समानता व सुरक्षा शामिल थे। इसमें किसानों और कृषि मजदूरों की कामकाजी परिस्थितियों को भी शामिल किया गया।
इस सर्वे में कुल 517 विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में कृषि की गहरी समझ थी। इनमें पर्यावरण, अर्थशास्त्र और जैसे अलग-अलग विषयों के जानकार शामिल थे, ताकि इस मुद्दे पर विविध और संतुलित राय मिल सके।
पर्यावरण और सेहत को सबसे ज्यादा फायदा
हालांकि विशेषज्ञों की उम्मीदें उनके क्षेत्र और विशेषज्ञता के अनुसार अलग-अलग रहीं हो, लेकिन एक बात पर लगभग सभी सहमत थे कि पर्यावरण अनुकूल कीट प्रबंधन की ओर बदलाव का असर लम्बे समय में सकारात्मक होगा। खासकर पर्यावरण और सेहत को इससे बड़ा फायदा होगा।
उदाहरण के लिए इस बदलाव से जल प्रदूषण घटेगा, जैव विविधता बढ़ेगी और कीटनाशकों से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम कम होंगे। यह राय लगभग हर महाद्वीप और हर क्षेत्र के विशेषज्ञों में समान रही।
किसानों की आमदनी पर अलग-अलग असर
वहीं दूसरी ओर आर्थिक असर को लेकर विशेषज्ञों की राय में बड़ा अंतर देखा गया। उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में विशेषज्ञों की राय मिली जुली रही, उनका मानना है कि शुरुआत में यह बदलाव किसानों की आमदनी पर अच्छा या बुरा, दोनों तरह से असर डाल सकते हैं।
इसके उलट एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव किसानों के लिए आर्थिक अवसर भी पैदा कर सकता है। इन महाद्वीपों के विशेषज्ञों को यह भी लगता है कि इससे स्थानीय लोगों को सुरक्षित भोजन तक बेहतर पहुंच मिलेगी, जो यूरोप और उत्तरी अमेरिका के विशेषज्ञों की तुलना में अधिक सकारात्मक आकलन है।
प्रोफेसर मोहरिंग कहते हैं, “इन तमाम मतभेदों के बावजूद विशेषज्ञ कुल मिलाकर उम्मीद से ज्यादा आशावादी हैं।“ हालांकि उनका यह भी कहना है, "यह बदलाव बिना लागत के नहीं होगा। इसकी वजह से शुरुआत में लागत बढ़ सकती है, लेकिन लंबे समय में ज्यादा फायदा होगा।“
उनका मानना है कि इस बदलाव में किसानों को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता। उन्हें स्थानीय परिस्थितियों के मुताबिक असरदार विकल्प, वैज्ञानिक सहायता और जरूरी सरकारी समर्थन देना बेहद अहम होगा।
यह अध्ययन विशेषज्ञों की राय पर आधारित है। इसलिए अब जरूरी है कि अलग-अलग क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर प्रयोग किए जाएं, ताकि यह समझा जा सके कि पर्यावरण अनुकूल कीट प्रबंधन वास्तव में कितना कारगर है। हालांकि अध्ययन से एक बात तो साफ है कि अगर खेती को जहर से मुक्त किया गया, तो उसका फायदा सिर्फ खेतों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को होगा।