कृषि में बढ़ता कीटनाशकों का प्रयोग भारत सहित दुनिया भर में किसानों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। एक तरफ फसलों में छिड़का जाने वाला यह जहर कीटों को खत्म करता है, साथ ही इसके संपर्क में आने वाले पौधों, जानवरों और दूसरे जीवों पर भी प्रतिकूल असर डालता है। यहां तक की इसके संपर्क में आने वाले किसानों के स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर पड़ता है।
अध्ययन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि कीटनाशकों के संपर्क में आने से तंत्रिका संबंधी रोगों के साथ-साथ प्रतिरक्षा प्रणाली में गिरावट और यहां तक की कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
कीटनाशकों के स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों को लेकर अमेरिका में की गई एक नई रिसर्च से पता चला है लम्बे समय तक कुछ कीटनाशकों के संपर्क में रहने से किसानों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। अपनी इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने 69 कीटनाशकों की पहचान की है जो कैंसर के बढ़ते मामलों से जुड़े हैं।
गौरतलब है कि इनमें से कई कीटनाशक ऐसे हैं जिनका भारत में भी धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है। इनमें 2,4-डी, एसीफेट, मेटोलाक्लोर और मेथोमाइल जैसे कीटनाशक शामिल हैं, जिनका आमतौर पर भारत में उपयोग फसलों को कीटों और खरपतवार से बचाने के लिए किया जाता है। अमेरिका के रॉकी विस्टा विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल फ्रंटियर्स इन कैंसर कंट्रोल एंड सोसाइटी में प्रकाशित हुए हैं।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने न केवल सक्रिय रूप से कीटनाशकों का उपयोग करने वाले किसानों बल्कि उन लोगों पर भी बढ़ते प्रभावों को उजागर किया है, जो कीटनाशकों के अत्यधिक संपर्क वाले वातावरण में रहने को मजबूर हैं। अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक कुछ कीटनाशकों के संपर्क में आने से किसानों और आम लोगों में कैंसर का खतरा धूम्रपान जितना ही बढ़ सकता है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ शोधकर्ता और रॉकी विस्टा विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ ओस्टियोपैथिक मेडिसिन में एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर इसैन जपाटा ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, “अध्ययन में सामने आया है कि खेतों में कुछ कीटनाशकों का उपयोग धूम्रपान जितना ही कैंसर कारक हो सकता है।“
उनका आगे कहना है कि, "जो लोग किसान नहीं हैं, लेकिन खेतों के आसपास रहते हैं, वे वहां इस्तेमाल होने वाले कई कीटनाशकों के संपर्क में आ सकते हैं। यह कीटनाशक उनके पर्यावरण का हिस्सा बन जाते हैं।"
स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कीटनाशकों से दूरी
रिसर्च से पता चला है कि कीटनाशकों के संपर्क में आने से नॉन-हॉजकिन लिंफोमा, ल्यूकेमिया और ब्लैडर कैंसर का खतरा धूम्रपान की तुलना में अधिक होता है।
उनका आगे कहना है कि, "हमने उन मुख्य कीटनाशकों की सूची बनाई है, जो कुछ कैंसरों के लिए जिम्मेवार हैं, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि केवल एक ही नहीं, बल्कि उन सभी का संयोजन मायने रखता है।"
शोधकर्ताओं का कहना है कि, सिर्फ एक कीटनाशक को दोषी ठहराना संभव नहीं है, क्योंकि अक्सर कई कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। हालांकि कुछ कीटनाशकों पर दूसरों की तुलना में अधिक चर्चा होती है, लेकिन इन सभी का संयोजन मायने रखता है। जापाटा के मुताबिक वास्तविक दुनिया में लोग सिर्फ एक नहीं बल्कि कई तरह के कीटनाशकों के संपर्क में आते हैं।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के आंकड़ों का उपयोग किया है। इसकी मदद से उन्होंने अमेरिका में 2015 से 2019 के बीच कैंसर की दरों का विश्लेषण किया है।
उन्होंने पाया है कि विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों के अनुसार कैंसर का जोखिम अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए पश्चिमी अमेरिका के कुछ हिस्सों में ब्लैडर कैंसर, ल्यूकेमिया और गैर-हॉजकिन लिंफोमा की दर विशेष रूप से ऊंची थी। देखा जाए तो ऐसा अलग-अलग कृषि पद्धतियों की वजह से है। ये क्षेत्र आमतौर पर मध्य-पश्चिमी क्षेत्रों की तुलना में कहीं ज्यादा फल और सब्जियां पैदा करते हैं।
उदाहरण के लिए, कैलिफोर्निया देश का सबसे बड़ा सब्जी उत्पादक राज्य है, जहां 2017 में 12 लाख एकड़ क्षेत्र में सब्जियां उगाई गई थी। फ्लोरिडा में भी ऐसा ही पैटर्न देखने को मिलता है।
वहीं दूसरी तरह जिन क्षेत्रों में अधिक फसलें उगाई जाती हैं, जैसे कि मध्य-पश्चिमी क्षेत्र, जो मक्का उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, वहां कीटनाशकों और कैंसर की घटनाओं के बीच संबंध कहीं अधिक स्पष्ट थे।
अध्ययन के मुताबिक कीटनाशकों का प्रभाव मध्य-पश्चिमी जैसे कृषि गतिविधियों वाले क्षेत्रों में अधिक ध्यान देने योग्य है। आयोवा, इलिनोइस, ओहियो, नेब्रास्का और मिसौरी जैसे राज्य, जो मक्का उत्पादन में अग्रणी हैं, कैंसर के उच्च जोखिम को दर्शाते हैं। इससे पता चलता है कि कैंसर का जोखिम प्रत्येक क्षेत्र में उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार से जुड़ा हुआ है।
हालांकि यह अध्ययन अमेरिका में किए गए हैं, लेकिन यह समझना होगा कि शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे कीटनाशकों को भी सवालों के घेरे में लिया है जिनका भारत में भी उपयोग किया जाता है। भारत में भी कीटनाशकों के उपयोग पर ध्यान देना जरूरी है। इसके प्रभावों को नजरअंदाज कर देना सही नही है क्योंकि यह सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा है। किसानों को भी अपनी फसलों में कीटनाशकों का उपयोग करते समय सावधान रहना चाहिए और जितना मुमकिन हो सके उसके उपयोग से बचना चाहिए।