जिस तरह से फसलों के लिए कीटनाशकों का उपयोग बढ़ता जा रहा है उससे सिस्टोसोमियासिस नामक बीमारी के फैलने का खतरा भी बढ़ रहा है| साथ ही इससे वाटर इकोसिस्टम का इकोलॉजिकल बैलेंस भी बिगड़ रहा है| यह बीमारी लीवर और किडनी को नुकसान पहुंचा सकती है| दुनिया भर में यह हर साल लाखों लोगों को बीमार बना रही है| यदि इंसानी स्वास्थ्य पर इसके पड़ने वाले असर को देखें तो यह मलेरिया के बाद परजीवियों से होने वाली दूसरी सबसे हानिकारक बीमारी है|
यह जानकारी हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले द्वारा किये शोध में सामने आई है जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल लांसेट में प्रकाशित हुआ है| गौरतलब है कि सिस्टोसोमियासिस नामक इस बीमारी को स्नेल फीवर और बिलरज़िया के नाम से भी जाना जाता है|
यह बीमारी सिस्टोसोमा नामक परजीवी फ्लैटवर्म के कारण होती है। जिससे किडनी और लीवर तक ख़राब हो सकते हैं। यह परजीवी आमतौर पर उप-सहारा अफ्रीका, मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और कैरेबियन देशों में पाया जाता है। जहां ताजा पानी संक्रमित जानवर या मानव मल-मूत्र से दूषित हो जाता है। जिसमें यह परजीवी आसानी से पनप सकता है| यह परजीवी त्वचा से होता हुआ रक्त में पहुंच जाता है| जहां से यह यकृत, आंतों और अन्य अंगों में पहुंच जाता है। इस बीमारी में शरीर पर दाने निकल आते हैं साथ ही खुजली होती है| इसके साथ ही बुखार, ठंड लगना, खांसी, सिरदर्द, पेट दर्द, जोड़ों में दर्द और मांसपेशियों में दर्द इसके सामान्य लक्षण हैं।
यूसी बर्कले के क्रिस्टोफर हूवर जोकि इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता भी हैं ने बताया कि दुनिया भर में बढ़ते बांध और सिंचाई परियोजनाएं मीठे पानी के इकोसिस्टम को प्रभावित कर रहे हैं| जिससे यह बीमारी 'सिस्टोसोमियासिस' लोगों में फैल जाती है| पर इस बात से हमें सबसे ज्यादा हैरानी हुई कि एग्रोकेमिकलस का बढ़ता प्रदूषण भी इस बीमारी को बढ़ा रहा है| विशेषकर निम्न आय वाले देशों में यह एक बड़ी समस्या है|
यह इस बात का एक स्पष्ट उदाहरण है कि पर्यावरण पर बढ़ता दबाव इंसानों के लिए भी खतरा है| यूसी बर्कले के डिवीजन ऑफ एनवायरनमेंटल हेल्थ साइंसेज के अध्यक्ष और इस शोध से जुड़े जस्टिन रेमिस के अनुसार पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण इंसानों में संक्रामक रोगों के फैलने के खतरे को और बढ़ा रहा है| जैसे डाइऑक्सिन से इन्फ्लूएंजा वायरस के प्रतिरोध में कमी आ रही है| वायु प्रदूषण कोविड-19 से हो रही मौतों में इजाफा कर रहा है| जबकि बढ़ते आर्सेनिक से श्वसन तंत्र और आंत से जुड़े रोगों का खतरा बढ़ रहा है| ऐसे में प्रदूषण में कमी संक्रामक रोगों से बचने का एक कारगर उपाय है|
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 1,000 से भी ज्यादा शोधों का अध्ययन किया है| जिसमें से 144 शोध सीधे तौर पर बढ़ते एग्रोकेमिकल और सिस्टोसोमा के लाइफ साइकिल से जुड़े थे| जब उससे जुड़े डेटा को एक मैथमैटिकल मॉडल में डाला गया जो इस परजीवी के फैलने को जानने में सक्षम था| तो इस मॉडल से कीटनाशकों के प्रयोग और आसपास के इलाके में इस परजीवी के फैलने की जानकारी सामने आई|
शोधकर्ताओं को पता चला कि कम मात्रा में सामान्य कीटनाशक जैसे एट्राज़ीन, ग्लाइफोसेट और क्लोरपाइरीफ़ोस आदि भी इस बीमारी के संक्रमण को बढ़ा सकते हैं| साथ ही इससे सिस्टोसोमियासिस को नियंत्रित करने के प्रयासों पर भी असर पड़ता है| इससे पता चल कि इस परजीवी के फैलने में कीटनाशकों का भी हाथ है|
यह शोध पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल के रिवर बेसिन में किया गया है| जहां कीटनाशकों के प्रदूषण से होने वाली बीमारियों का बोझ लीड एक्सपोजर, आहार में अधिक सोडियम और शारीरिक गतिविधियों की कमी से होने वाली बीमारियों से भी ज्यादा है|
शोधकर्ताओं के अनुसार दुनिया भर में सिस्टोसोमियासिस के 90 फीसदी से भी ज्यादा मामले उप-सहारा अफ्रीका में सामने आए हैं| जहां कीटनाशकों का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है| ऐसे में इनसे निपटने के लिए ऐसी नीतियों की जरुरत है, जो इन क्षेत्रों में एग्रोकेमिकल से हो रहे प्रदूषण में कमी करने के साथ-साथ इस रोग को फैलने से भी रोक सकें| यदि हम कीटनाशकों का सही ढंग से इस्तेमाल करें तो हम कृषि से फायदा कमाने के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य को हो रहे नुकसान को भी सीमित कर सकते हैं|