किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि जिस तरह से कीटनाशकों का अनियंत्रित तरीके से उपयोग बढ़ रहा है उसकी वजह से सी-सेक्शन यानी सिजेरियन डिलीवरी का खतरा बढ़ सकता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने कोशिकाओं को होने वाली क्षति के कारण जन्म के समय जटिलताओं में होने वाली वृद्धि को जिम्मेवार माना है।
यही नहीं इन कीटनाशकों के कारण बच्चे का जन्म समय से पहले हो सकता है साथ ही जन्म के समय बच्चे का वजन सामान्य से कम हो सकता है। जो आगे चलकर बच्चे को स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। यह शोध जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
इस अध्ययन में कीटनाशकों के गर्भावस्था पर पड़ने वाले प्रभावों को प्रकट किया गया है। यह शोध उत्तर भारत में गैर कामकाजी महिलाओं पर किया गया था, जिसमें कीटनाशकों के कारण गर्भवती महिलाओं में आने वाले जैव रासायनिक परिवर्तन के साथ जीनोटॉक्सिसिटी और ऑक्सीडेटिव तनाव को उजागर किया गया था।
इसके लिए शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था के समय 221 स्वस्थ मां और शिशु के गर्भनाल से रक्त के नमूने एकत्र किए थे, जिसे उन्होंने गर्भस्थ शिशु की उम्र और उसके वजन के अनुसार विभाजित किया था।
सभी नमूनों में जिनमें बच्चे का जन्म समय से पहले हुए था उन सभी में ऑर्गेनो-क्लोरीन कीटनाशकों के उच्च स्तर का पता चला था। जहां मां से लिए रक्त के नमूनों में एल्ड्रिन की मात्रा 3.26 मिलीग्राम प्रति लीटर और गर्भनाल से लिए रक्त के नमूनों में डाइल्ड्रिन की मात्रा 2.69 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई थी।
इस शोध के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में जन्म के समय कम वजन और सी-सेक्शन डिलीवरी की स्पष्ट रूप से प्रवृत्ति देखी गई थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि नवजात शिशुओं में जन्म के समय वजन में कमी, कीटनाशकों के कारण बढ़े हुए ऑक्सीडेटिव क्षति और जीनो टॉक्सिसिटी का परिणाम हो सकता है।
कीटनाशकों के उपयोग के लिए जरुरी हैं कड़े दिशा-निर्देश
इसमें कोई शक नहीं कि खाद्य उत्पादकता को बढ़ाने में कीटनाशकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है पर यह भी सच है कि आज जिस अनियंत्रित तरीके से कृषि में इन कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है वो अपने आप में एक बड़ी समस्या बन चुका है।
यह कीटनाशक न केवल खाद्य उत्पादों को जहरीला बना रहे हैं साथ ही भूमि और जल प्रदूषण का भी कारण बन रहे हैं, जो बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह कीटनाशक मानव अंगों के साथ ही हार्मोन और शारीरिक विकास पर भी असर डाल रहे हैं।
इसी तरह पंजाब के अमृतसर में स्थित गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी द्वारा किए शोध से पता चला है कि खेतों में काम करने वाले कृषि मजदूरों को जीनोटॉक्सिसिटी यानी कीटनाशकों के कारण उनकी कोशिकाओं के भीतर ऐसे स्थायी परिवर्तन हो सकते हैं, जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं। ऐसे में यह जरुरी है कि देश में बढ़ते कीटनाशकों के उपयोग को सीमित किया जाए, साथ ही उनके उपयोग के सम्बन्ध में कड़े दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।