पश्चिमी घाट के दुर्लभ पेड़ों पर जानलेवा फफूंद का हमला: शोध

डिप्टेरोकार्पस बौर्डिलोनी की मजबूत लकड़ी निर्माण कार्य और फर्नीचर बनाने के काम आती है, जबकि इसका तेल पारंपरिक औषधीय और औद्योगिक तौर पर उपयोग किया जाता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पेड़-पौधों में रोग फैलाने वाला या फाइटोपैथोजेन, कोरीनेस्पोरा कैसिइकोला, एक अत्यधिक आक्रामक फफूंद है, जो 530 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पेड़-पौधों में रोग फैलाने वाला या फाइटोपैथोजेन, कोरीनेस्पोरा कैसिइकोला, एक अत्यधिक आक्रामक फफूंद है, जो 530 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है।फोटो साभार: माइकोस्फीयर पत्रिका
Published on

वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले एक गंभीर रूप से संकटग्रस्त पेड़, डिप्टेरोकार्पस बौर्डिलोनी पर हमला करने वाले एक नए प्रकार के फफूंद (कवक) रोग के बारे में चेतावनी जारी की है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, पेड़-पौधों में रोग फैलाने वाला या फाइटोपैथोजेन, कोरीनेस्पोरा कैसिइकोला, एक अत्यधिक आक्रामक फफूंद है, जो 530 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है।

यह भी पढ़ें
विनाशकारी फंगस की चपेट में आई ब्लूबेरी, अन्य फसलों को भी नुकसान के आसार
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पेड़-पौधों में रोग फैलाने वाला या फाइटोपैथोजेन, कोरीनेस्पोरा कैसिइकोला, एक अत्यधिक आक्रामक फफूंद है, जो 530 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है।

शोध में कहा गया है कि यह डिप्टेरोकार्पस बौर्डिलोनी वृक्ष को प्रभावित करने वाले रोगजनक का पहला दर्ज किया गया मामला है, जिससे संरक्षण संबंधी गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं। कवक की पहचान मॉर्फो-कल्चरल विशेषताओं और आणविक फायलोजेनेटिक साक्ष्य के आधार पर की गई थी।

डिप्टरोकार्पस बौर्डिलोनी वृक्ष को प्रभावित करने वाले उभरते हुए पत्तियों में धब्बे (लीफ स्पॉट) और झुलसा (ब्लाइट) रोग का पता लगाना। पश्चिमी घाट के वर्षावन में सबसे कमजोर पेड़ों में से एक की रक्षा के लिए रोग निगरानी और संरक्षण रणनीतियों की तत्काल जरूरत को सामने लाना है।

यह भी पढ़ें
पश्चिमी घाट में 60 प्रतिशत ऐसी जैव विविधता है, जो केवल यहीं पाई जाती है: अध्ययन
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पेड़-पौधों में रोग फैलाने वाला या फाइटोपैथोजेन, कोरीनेस्पोरा कैसिइकोला, एक अत्यधिक आक्रामक फफूंद है, जो 530 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है।

शोध के मुताबिक, डिप्टरोकार्पस बौर्डिलोनी जो डिप्टरोकार्पेसी परिवार से संबंधित है। यह एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय पेड़ की प्रजाति है जिसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के द्वारा रेड लिस्ट में सूचीबद्ध किया गया है। यह भारत के पश्चिमी घाटों के लिए स्थानीय है, जो वर्षावन संरचना को बनाए रखने और जैव विविधता में एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक भूमिका निभाता है।

इसकी मजबूत लकड़ी निर्माण कार्य और फर्नीचर बनाने के काम आती है, जबकि इसका तेल पारंपरिक औषधीय और औद्योगिक तौर पर उपयोग किया जाता है। अत्यधिक दोहन और आवास के नुकसान के कारण, प्रजाति पहले से ही गंभीर खतरों का सामना कर रही है। इस अतिरिक्त जैविक खतरे का उभरना इसकी घटती आबादी की रक्षा और उसे बहाल करने के लिए संरक्षण उपायों की तत्काल जरूरत को सामने लाती है।

यह भी पढ़ें
भारत के पश्चिमी घाट में अनोखे जननांग वाले केकड़े की लाल रंग की नई प्रजाति की हुई खोज
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पेड़-पौधों में रोग फैलाने वाला या फाइटोपैथोजेन, कोरीनेस्पोरा कैसिइकोला, एक अत्यधिक आक्रामक फफूंद है, जो 530 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है।

माइकोस्फीयर पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि केरल में डिप्टेरोकार्पस बौर्डिलोनी को संक्रमित करने वाले कोरिनेस्पोरा कैसिइकोला की जांच मॉर्फो-मॉलिक्यूलर उपकरणों का उपयोग करके की गई है। आणविक पहचान रोगजनक की सटीक पहचान सुनिश्चित करती है, जो आकृति विज्ञान-आधारित विधियों की सीमाओं को पार करती है और शुरुआती जांच और निगरानी की सुविधा प्रदान करती है।

यह शोध रोग की महामारी विज्ञान को समझने, रोग प्रबंधन की प्रभावी रणनीतियों को आगे बढ़ाने और इस खतरे वाली प्रजाति की सुरक्षा के लिए जरूरी है। इसके अलावा यह पेड़ों के स्वास्थ्य की निगरानी में अहम भूमिका निभाता है।

यह भी पढ़ें
जलवायु परिवर्तन: 13 से 16 फीसदी हिमालयी औषधीय पौधों की प्रजातियों के आवास हो जाएंगे गायब
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पेड़-पौधों में रोग फैलाने वाला या फाइटोपैथोजेन, कोरीनेस्पोरा कैसिइकोला, एक अत्यधिक आक्रामक फफूंद है, जो 530 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है।

कोरीनेस्पोरा कैसियोकोला पेड़-पौधों में रोग फैलाने वाला या फाइटोपैथोजेन है जो कई प्रकार की वनस्पति प्रजातियों में पत्ती में धब्बे और झुलसा रोग पैदा करता है। जिसमें रबर, सोयाबीन, टमाटर, खीरा, कपास जैसी आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण फसलें, साथ ही औषधीय और सजावटी पौधे भी शामिल हैं।

यह गर्म, नमी वाली जलवायु में पनपता है और हवा, पानी और मानवजनित गतिविधियों, कोनिडिया (कवक द्वारा उत्पादित बीजाणु) के माध्यम से फैलता है। यह रोगाणु प्रकाश संश्लेषण में रुकावट डालता है, जिससे पत्ते झड़ जाते हैं, उपज कम हो जाती है और गंभीर मामलों में पौधे की मृत्यु हो जाती है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in