भारत के पश्चिमी घाट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भूवैज्ञानिक, सांस्कृतिक और सौंदर्य वाले क्षेत्रों में शामिल किया गया है। इसके अलावा, इसे जैविक विविधता संरक्षण को लेकर दुनिया भर में अत्यधिक महत्व के क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।
भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलने वाली पहाड़ों की एक श्रृंखला, लगभग 30-50 किमी में फैली हुई है। जहां केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों की सीमाएं होकर गुजरती है। ये पर्वत 1,600 किमी लंबे विस्तार में लगभग 140,000 वर्ग किमी क्षेत्र को कवर करते हैं। यहां अनेक प्रकार के जीवों की खोज हुई है तथा कई ऐसे जीव हैं जिनके बारे में अभी पता लगाना बाकी है।
इसी क्रम में शोधकर्ताओं को, दक्षिण-पश्चिमी भारत के एक जंगल में, खून के समान रंग वाला प्राणी रहता पाया गया है। उन्होंने बताया कि, रात में, इस जीव ने एक पेड़ के छेद के अंदर शरण ली। वैज्ञानिकों ने इस जीवंत जीव को देख कर कहा कि, उन्होंने एक नई प्रजाति को देखा है, यानी एक नई खोज हुई है।
जर्नल जूटेक्सा में 11 अक्टूबर को प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, शोधकर्ताओं को कर्नाटक के मध्य पश्चिमी घाट क्षेत्र में इनमें से चार रंगीन क्रस्टेशियंस का सामना करना पड़ा। करीब से देखने पर, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि जानवर एक नई प्रजाति के थे, जिसे घाटियाना सेंगुइनोलेंटा, या रक्त-लाल घाट केकड़ा कहा जाता है।
अध्ययन में कहा गया है कि रक्त के समान लाल रंग का घाट में रहने वाला केकड़ा लगभग 1.1 इंच चौड़ा और लगभग 0.7 इंच लंबा होता है। इसका शरीर चौड़ा, मजबूती से धनुषाकार और छोटी आंखें हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि केकड़ा एक अनोखा रंग, गहरा रक्त-लाल है।
तस्वीरों से पता चलता है कि, रक्त-लाल घाट केकड़े काफी चटक रंग के होते हैं। इसके शरीर का रंग गहरा और अपेक्षाकृत एक समान बरगंडी लाल है जबकि इसके पंजों के सिरे हल्के चेरी लाल रंग के हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया कि रक्त-लाल घाट के केकड़े मीठे पानी के केकड़े हैं। वे जंगलों में रहते हैं और रात में पेड़ों की खोहों में छिप जाते हैं, लेकिन वे खुले इलाकों में भी भोजन की तलाश करते हैं।
शोधकर्ताओं ने नई प्रजाति की पहचान उसके रंग, शरीर के आकार और नर के अनोखे जननांगों से की। अध्ययन में कहा गया है कि नर रक्त-लाल घाट केकड़ों का जननांग सिरे पर बाहर की ओर घुमावदार होता है।
अध्ययन के अनुसार, नई प्रजाति अब तक देश की राजधानी से लगभग 1,100 मील दक्षिण-पश्चिम में कर्नाटक के देवीमाने के पास एक जंगल में पाई गई है। शोध के हवाले से कहा गया है कि, शोधकर्ताओं ने नई प्रजाति का डीएनए विश्लेषण उपलब्ध नहीं कराया। तथा इस बात की भी जानकारी दी गई है कि, शोध टीम में समीर कुमार पति, तेजस ठाकरे और स्वप्निल पवार शामिल थे।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अनुसार भारत के पश्चिमी घाटों में जीवों की विविधता भी असाधारण है, यहां उभयचर की 179 प्रजातियां पाई गई जिनमें से 65 फीसदी स्थानीय हैं। वहीं सरीसृप की 157 प्रजातियां पाई गई, जिनमें से 62 फीसदी स्थानीय हैं, मछलियों की 219 प्रजातियां पाई गई जिनमें से 53 फीसदी स्थानीय हैं। अकशेरुकी जैव विविधता, के बारे में बेहतर जानकारी है, फिर भी इनके बहुत अधिक होने की संभावना है, लगभग 80 फीसदी बाघ बीटल स्थानीय हैं।