जलवायु परिवर्तन: 13 से 16 फीसदी हिमालयी औषधीय पौधों की प्रजातियों के आवास हो जाएंगे गायब

अध्ययन में 2050 और 2070 में वर्तमान और भविष्य दोनों जलवायु परिदृश्यों में 163 औषधीय पौधों की प्रजातियों के आवासों के वितरण का विश्लेषण किया गया है।
फोटो: वन अर्थ फाउंडेशन
फोटो: वन अर्थ फाउंडेशन
Published on

जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के पारिस्थितिक तंत्र में कई ऐसे बदलाव हो रहे हैं जिन्हें फिर से बहाल नहीं किया जा सकता है। इस अध्ययन में पूर्वी हिमालयी जैव विविधता हॉटस्पॉट के एक हिस्से को शामिल किया गया है। यह हिस्सा सिक्किम का हिमालयी इलाका है जहां बदलती जलवायु परिस्थितियों में औषधीय पौधों की प्रजातियों में किस तरह का बदलाव आ रहा है तथा इनकी प्रतिक्रिया को समझने का प्रयास किया गया है।

साइंस डायरेक्ट पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि हिमालय के औषधीय पौधे जलवायु में हो रहे बदलाव के कारण खतरे में हैं। जो वर्तमान संरक्षण रणनीतियों की समीक्षा करने के बारे में आगाह करते हैं। जिसमें पहाड़ों तथा हिमालयी इलाकों में संरक्षित पार्क शामिल हैं।

अब दिल्ली विश्वविद्यालय के भीम राव अम्बेडकर कॉलेज द्वारा सिक्किम में किए गए एक अध्ययन ने इन औषधीय पौधों पर प्रकाश डाला है। अध्ययन में 2050 और 2070 में वर्तमान और भविष्य दोनों जलवायु परिदृश्यों में 163 औषधीय पौधों की प्रजातियों के आवासों के वितरण का विश्लेषण किया गया है। इसमें 'अधिकतम प्रजाति वितरण मॉडलिंग' नामक तकनीक का उपयोग किया गया है। जो प्रजातियों के भविष्य के वितरण का पता लगाने के लिए आकलनों को जोड़ती है।

सिक्किम जो कि पूर्वी हिमालय जैव विविधता हॉटस्पॉट का हिस्सा है यहां का विश्लेषण किया गया है। जिसमें कहा गया है कि अधिकांश औषधीय पौधों की प्रजातियां सिक्किम हिमालय में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 300 मीटर से 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती हैं। इनमें से अधिकांश के भविष्य के जलवायु परिदृश्यों को देखते हुए ऊपर और उत्तर की ओर शिफ्ट होने के आसार हैं।

एक अन्य अध्ययन बताता है कि वर्तमान प्रजाति-समृद्ध क्षेत्रों में 2050 में 200 मीटर और 2070 में  400 मीटर तक बदलाव होने के आसार हैं। अधिक चिंता की बात यह है कि इस क्षेत्र में लगभग 13 से 16 फीसदी औषधीय पौधों की प्रजातियों के 2050 और 2070 तक अपने आवासों को खोने की आशंका है। अध्ययन के परिणाम इस बात पर जोर डालते हैं कि विशिष्ट क्षेत्रों तक सीमित और संकीर्ण ऊंचाई वितरण वाली प्रजातियां सबसे कमजोर प्रजातियां हैं। हिमालय में जलवायु परिवर्तन के कारण इन प्रजातियों के विलुप्त होने के अधिक आसार हैं

भीम राव अम्बेडकर कॉलेज के शोधकर्ता मनीष कुमार ने कहा कि उन्होंने संरक्षण के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान की हैं। साथ ही वर्तमान और भविष्य के जलवायु परिदृश्यों में औषधीय पौधों की प्रजातियों के संरक्षण में मौजूदा संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क की प्रभावशीलता का परीक्षण करने का भी प्रयास किया गया है ।

जिससे पता चलता है कि सिक्किम हिमालय के आठ संरक्षित क्षेत्रों में से केवल पांच ही वर्तमान और भविष्य की जलवायु में औषधीय पौधों की प्रजातियों के संरक्षण में प्रभावी हैं। अध्ययन में सिफारिश की गई है, मौजूदा संरक्षित क्षेत्र की सीमाओं को प्रजातियों के स्थानीय वितरण में ऊपर की ओर बदलाव को समायोजित करने के लिए आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, खासकर उन संरक्षित क्षेत्रों के मामले में जो कम ऊंचाई या उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थित हैं।

कुमार ने कहा ये संरक्षित क्षेत्र सिक्किम में औषधीय पौधों के सबसे उपयुक्त आवासों में से एक हैं। मौजूदा संरक्षित क्षेत्र के डिजाइन के साथ मुख्य समस्या यह है कि वे प्रकृति में 'स्थिर' हैं और एक बार जब उनकी सीमाएं आधिकारिक अधिसूचना में परिभाषित हो जाती हैं, तो वे वैसे ही रहती हैं।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि समय के आधार पर उन्हें व्यवस्थित और समय-समय पर उनका आकलन किया जाए और जरूरत पड़ने पर उनकी सीमाओं को फिर से संगठित किया जाए। शोध से यह भी पता चलता है कि सबसे उपयुक्त आवास 860 मीटर से 2937 मीटर ऊंचाई में हैं, जो सिक्किम हिमालय में औषधीय पौधों की प्रजातियों के लिए अत्यधिक उपयुक्त आवास के रूप में काम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए संरक्षण कार्य इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

कुमार कहते हैं कि शायद यह सबसे उपयुक्त होगा यदि संरक्षण कार्यों और संरक्षित क्षेत्रों को हिमालय में और मध्य ऊंचाई के आसपास डिजाइन किया जाता है तो, क्योंकि ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां भविष्य में अधिकतम औषधीय पौधे उभर सकते हैं।

इस बीच, 2041-2060 और 2061-2080 की अवधि के लिए एक दूसरा मॉडलिंग अध्ययन, हिमालय के उत्तराखंड हिस्से में एक लुप्तप्राय औषधीय पौधे पिकोरिज़ा कुरोआ (रॉयल एक्स बेंथ) पर गौर करता है। यह पौधा, जिसे स्थानीय रूप से कुटकी या कडू के नाम से जाना जाता है।

हिमालय में कई विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण औषधीय पौधों में से एक है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं और अपनी संकीर्ण वितरण सीमा और छोटी आबादी के कारण खतरे में हैं। देहरादून स्थित संस्थानों के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किए गए अध्ययन का उद्देश्य पी. कुरोआ वितरण को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय बदलावों की पहचान करना और विभिन्न जलवायु परिदृश्यों के तहत पी. कुरोआ के लिए वर्तमान और भविष्य के उपयुक्त आवासों का अनुमान लगाना है।

उन्होंने पाया कि कुल मिलाकर, जलवायु परिवर्तन के परिदृश्यों के तहत पी. कुरोआ के आवास में कमी आई है। उत्तराखंड में पी. कुरोआ के लिए अत्यधिक उपयुक्त क्षेत्र मुख्य रूप से चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों में पाए गए। रुद्रप्रयाग और टिहरी जिलों के कुछ स्थान भी पी. कुरोआ के लिए अत्यधिक उपयुक्त थे। उत्तरकाशी जिले में इसके विकास की अच्छी संभावना है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in