
कीट हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के कामकाज में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि वे दुनिया भर में कम होते जा रहे हैं। जबकि इस मुद्दे पर अधिकतर जानकारी यूरोप में किए गए अध्ययनों से है। कीटों की अधिकांश प्रजातियां उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में रहती हैं, वहां की जानकारी बहुत सीमित है।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, कीटों को कई खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें शहरीकरण, आवास का नुकसान, कृषि और शहरी क्षेत्रों से होने वाला प्रदूषण शामिल है।
शोध पत्र में कहा गया है कि उष्णकटिबंधीय द्वीपों में कीट विशेष रूप से आक्रामक प्रजातियों की वजह से असुरक्षित हैं, इस खतरे के कारण कई अनोखी प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं।
जलवायु परिवर्तन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कीटों की आबादी के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है, न केवल बढ़ते तापमान के कारण, बल्कि एल नीनो और ला नीना जैसे मौसमी चक्रों का भी इन पर बुरा असर पड़ता है।
शोध पत्र में वैज्ञानिकों के हवाले से कहा गया है कि कैसे कीटों की घटती जैव विविधता का कार्बन चक्रण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र प्रक्रियाओं पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जिसका असर पूरी दुनिया में पर पड़ता है।
पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में बदलाव से मनुष्यों में कीटों और कीटों से होने वाली बीमारियों जैसे डेंगू और मलेरिया के प्रकोप में वृद्धि हो सकती है, साथ ही पशुओं में भी इसी तरह की बीमारियां फैल सकती हैं।
जिससे दुनिया भर में स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा और खाद्य सुरक्षा कम होगी। शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि उष्णकटिबंधीय जंगलों से अपर्याप्त आंकड़ों के कारण जानकारी में अभी भी बहुत कमी है। हालांकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और आनुवंशिक विधियों में हाल ही में हुई प्रगति इन चुनौतियों को दूर करने लगी है।
शोध के मुताबिक, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आंकड़ों की कमी के बावजूद, समीक्षा में उष्णकटिबंधीय कीटों की स्थिति के बारे में चिंता के कई कारण बताए गए हैं। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि और अधिक शोध करने की जरूरत है, यह समीक्षा इस दिशा में दिशा-निर्देशों की ओर इशारा करती है, अब आवासों को संरक्षित करने और उष्णकटिबंधीय जैव विविधता को बनाए रखने के लिए अन्य संरक्षण कार्यों को लागू करने की भी जरूरत है।
नेचर रिव्यु बायोडायवर्सिटी पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने तीन सालों में, उष्णकटिबंधीय ऑस्ट्रेलिया और एशिया में शोध किया, उन जंगलों का फिर से दौरा किया जहां पहले कीटों पर अध्ययन किए गए थे। ऑस्ट्रेलिया के लैमिंगटन नेशनल पार्क और बोर्नियो के डैनम वैली कंजर्वेशन इलाके में चल रहे शोध में विशेष जाल का उपयोग करके चींटियों, पतंगों, भृंगों और तितलियों को इकट्ठा करना शामिल है।
ताकि यह आकलन किया जा सके कि पिछले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन ने इनकी आबादी को कैसे फिर से संगठित किया है। युन्नान, चीन और डेनट्री, ऑस्ट्रेलिया में भी इसी तरह के अध्ययन किए जा रहे हैं, जिसमें वर्षावन के कीटों को इकट्ठा करने के लिए टावर क्रेन का उपयोग करना शामिल है।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि व कीटों की प्रजातियों की पारिस्थितिक भूमिकाओं और कार्यों का अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं, ताकि यह समझा जा सके कि बदलती आबादी उष्णकटिबंधीय वन पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे प्रभावित करेगी।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं ने संदेह जताया है कि फायदा पहुंचाने वाले कीटों द्वारा प्रदान की जाने वाली अहम प्रक्रियाएं, जिसमें शाकाहारी भोजन और पोषक चक्रण के माध्यम से जंगलों के विकास को विनियमित करना शामिल है, समय के साथ कम होती जा रही हैं। इतने सारे उष्णकटिबंधीय जंगलों से और इतने लंबे समय तक इतने बड़े पैमाने पर आंकड़ों का उपयोग करके इस तरह के विश्लेषण पहले कभी नहीं किए गए हैं।
कीटों की संख्या में कमी के अधिकांश अध्ययन यूरोप और उत्तरी अमेरिका से हैं। हालांकि अधिकांश कीट जैव विविधता उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में है। लंबे समय की निगरानी आंकड़ों की कमी के कारण, पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता है कि समय के साथ कीट विविधता कैसे बदलती है।
यह शोध उष्णकटिबंधीय कीटों में आ रही गिरावट और पारिस्थितिक कार्यप्रणाली के लिए उनके परिणामों को समझने में मदद करने के लिए नए लंबी अवधि तक के कीटों के आंकड़ों को एक साथ लाती हैं।