जंगलों की बहाली से जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता में हो सकता है 80 फीसदी तक सुधार: शोध

शोध के मुताबिक, भारत के बड़े इलाकों में अपनाए गए प्राकृतिक जंगलों के फिर से बहाली के फायदों की जांच पड़ताल की गई।
शोध के मुताबिक, स्थानीय योजनाओं से प्रभावित 38 से 41 फीसदी लोग सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों से हैं, जो भारत की अधिकतम आबादी का हिस्सा हैं।
शोध के मुताबिक, स्थानीय योजनाओं से प्रभावित 38 से 41 फीसदी लोग सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों से हैं, जो भारत की अधिकतम आबादी का हिस्सा हैं।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स,फ़ोरु
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एक नए शोध से पता चलता है कि जंगलों को दोबारा लगाने उनका संरक्षण करने से लोगों को फायदा हो सकता है, जैव विविधता में बढ़ोतरी हो सकती है और साथ ही जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मदद मिल सकती है।

जंगलों को दोबारा बहाल करने को एक अक्सर समझौते के रूप में देखा जाता है, जो किसी न किसी लक्ष्य पर आधारित होता है, जैसे कार्बन को रोकना, प्रकृति का पोषण करना या लोगों की आजीविका को सहारा देना आदि।

एक्सेटर और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों द्वारा किए गए इस नए अध्ययन में पाया गया कि एक ही लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाई गई दोबारा बहाल करने की योजनाएं अन्य लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाते हैं।

हालांकि ये योजनाएं एक ही बार में तीनों क्षेत्रों में 80 फीसदी से अधिक फायदे पहुचाएंगी। इसमें यह भी पाया गया कि सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों को इस नजरिए से असमान रूप से फायदा हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने नेचर्स कंट्रीब्यूशन टू पीपल (एनसीपी) नामक एक ढांचे का उपयोग किया, जो समानता सहित मानवता के लिए बहाली और फायदों के बीच एक व्यापक संबंध पर जोर देता है।

शोध के मुताबिक, इसे भारत के बड़े इलाकों में लागू किया गया तथा उपयुक्त हिस्सों पर प्राकृतिक जंगलों के प्राकृतिक तौर से फिर से बहाली के फायदों की जांच पड़ताल की गई।

एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, दोबारा बहाली परियोजनाओं का कभी-कभी सीमित लक्ष्य होता है, जिसके कारण समझौता करना पड़ सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि कार्बन भंडारण पर ध्यान केंद्रित किया जाता हैं, तो पेड़ की विशेष प्रजातियों को लगा सकते हैं और उन्हें बचाने के लिए जंगलों को बाड़ से घेर सकते हैं।

यदि जैव विविधता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो विशेष प्रजातियों के लिए जंगलों का प्रबंधन कर सकते हैं, जैसे बंगाल टाइगर या एशियाई हाथी

यदि लोगों की आजीविका पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो ऐसी प्रजातियां लगाई जा सकती हैं जो आवास संबंधित सामग्री और खाना पकाने के लिए ईंधन प्रदान करती हैं।

अध्ययन से पता चलता है कि नेचर्स कंट्रीब्यूशन टू पीपल (एनसीपी) को ध्यान में रखकर बनाई गई योजनाएं अन्य लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाती हैं।

हालांकि एक 'एकीकृत' योजना तीनों को उल्लेखनीय रूप से कुशलतापूर्वक पूरा कर सकती है। शोधकर्ताओं ने घास के मैदानों और खेती की जमीन जैसे क्षेत्रों को छोड़कर, संभावित जंगलों की बहाली वाले क्षेत्र के 38.8 लाख हेक्टेयर के मानचित्र बनाने के लिए एक अनुकूलन एल्गोरिदम का उपयोग किया।

परिणामों से पता चला कि कई लक्ष्यों पर आधारित जंगलों की बहाली करने की योजनाएं जलवायु परिवर्तन को कम करने से एनसीपी का औसतन 83.3 फीसदी, जैव विविधता मूल्य एनसीपी का 89.9 फीसदी और मात्र एक उद्देश्य वाली योजनाओं द्वारा वितरित सामाजिक एनसीपी का 93.9 फीसदी प्रदान करती हैं।

जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि स्थानीय योजनाओं से प्रभावित 38 से 41 फीसदी लोग सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों से हैं, जो भारत की अधिकतम आबादी का हिस्सा हैं।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि हमने जो खाका तैयार किया है, वह संरक्षण नीतियों, विशेष रूप से पारिस्थितिक तंत्र की बहाली की गतिविधियों को डिजाइन करने के लिए एक नया नजरिया प्रदान करता है।

यह जानना उपयोगी होगा कि क्या शोध के निष्कर्ष अन्य देशों पर भी लागू किए जा सकते हैं या उनके लिए भी सही हो सकते हैं, जो विभिन्न प्रकार की पारिस्थितिकी तंत्र बहाली योजनाओं का उपयोग करते हैं और विभिन्न फायदों पर गौर करते हैं।

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