यमुना में विदेशी मछलियों की बढ़ती संख्या पर अदालत ने मंत्रालय से मांगा जवाब

यमुना नदी में पाई जाने वाली विदेशी मछलियां मुख्य तौर पर कॉमन कार्प, नील तिलापिया और थाई कैटफिश प्रजातियों की हैं
फोटो: प्रभात कुमार
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यमुना को पुनर्जीवित करने के लिए क्या कुछ उठाए जा रहे हैं कदम, एनजीटी ने मांगी ताजा रिपोर्टनेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सात नवंबर, 2024 को मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के साथ-साथ जल शक्ति मंत्रालय को यमुना नदी में विदेशी मछलियों की बढ़ती संख्या के बारे में अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। मंत्रालयों को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब प्रस्तुत करना होगा।

गौरतलब है कि अदालत यमुना में मछलियों की स्थानीय प्रजातियों में आती कमी और विदेशी प्रजातियों में होती वृद्धि के मामले में सुनवाई कर रहा था।

गौरतलब है कि प्रयागराज स्थित केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान केंद्र (सीआईएफआरआई) ने स्थानीय मछलियों की घटती संख्या और विदेशी मछलियों की बढ़ती आबादी के बारे में चिंता से सहमति जताते हुए 19 सितंबर, 2024 को अपना जवाब दाखिल किया है।

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सीआईएफआरआई ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि उन्होंने 'मत्स्य पालन पर ध्यान केंद्रित करते हुए गंगा नदी पर यमुना के पारिस्थितिकी-परिवर्तनशीलता और प्रभाव अध्ययन' परियोजना के तहत 2020 से 2024 तक एक अध्ययन किया है।

नदी में नौ स्थानों से लिए नमूनों से 34 प्रकार की मछलियों की 126 प्रजातियां मिली दर्ज की गई हैं। इसमें से सबसे कम प्रजातियां दिल्ली के आईटीओ के पास देखी गई हैं, जो सबसे प्रदूषित क्षेत्र भी है। यहां पानी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर और पानी का प्रवाह लगभग न के बराबर था।

महसीर मछली, जो मुख्यतः टोर पुटिटोरा प्रजाति की है, यमुना नगर के पास यमुना के इलाकों में पाई जाती है। हालांकि 1999 में हथिनीकुंड बैराज के निर्माण के बाद से महासीर के आकार और आबादी में तेजी से गिरावट आई है।

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गाद और बांध के चलते प्रजातियों में आई कमी

1997 से 1999 के बीच देखें तो पकड़ी गई मछलियों में महासीर की हिस्सेदारी करीब नौ फीसदी थी, जो 2023-24 में घटकर महज 1.7 फीसदी रह गई है। रिपोर्ट के अनुसार, यह गिरावट संभवतः गाद और बांध के कारण आई है, जिससे इसके प्रजनन और भोजन क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा है। इनकी वजह से इन मछलियों का प्रवास अवरुद्ध हो गया है।

इसी तरह हिल्सा (तेनुलोसा इलिशा) जो आगरा के पास सालाना महज 0.03 टन और प्रयागराज के पास प्रति वर्ष 20.16 टन पकड़ी जाती थी। वहीं फरक्का बैराज के कारण 2010 से यह मछली इस नदी से पूरी तरह से गायब हो गई है।

यमुना नदी में पाई जाने वाली विदेशी मछलियां मुख्य तौर पर कॉमन कार्प (साइप्रिनस कार्पियो), नील तिलापिया (ओरियोक्रोमिस निलोटिकस) और थाई कैटफिश प्रजातियों की हैं। अन्य महत्वपूर्ण प्रजातियों में चिल्ला और यमुना नगर में पाई जाने वाली सिल्वर कार्प, यमुना नगर में बिगहेड कार्प और दिल्ली के वजीराबाद में पाई जाने वाली थाई मांगुर शामिल हैं।

आंकड़ों के मुताबिक 1958 से 1966 के बीच पकड़ी गई मछलियों में विदेशी मछलियां नहीं पाई गई थी, लेकिन 1990 के आसपास वे दिखाई देने लगी। 1997 से 1999 के बीच यमुना नगर में पकड़ी गई मछलियों में कॉमन कार्प की हिस्सेदारी करीब 6.5 फीसदी थी, जो मथुरा में बढ़कर करीब 40 फीसदी हो गई। आगरा में यह महज 0.1 फीसदी थी, लेकिन मथुरा में बढ़कर 84 फीसदी हो गई।

प्रयागराज में, 2002 से 2015 के बीच कॉमन कार्प की वार्षिक पकड़ 20.81 से 60.29 टन के बीच थी।

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हाल के अध्ययनों से पता चला है कि नील तिलापिया प्रजाति की पकड़ी गई मछलियों की संख्या में भारी गिरावट आई है, जबकि दिल्ली के वजीराबाद क्षेत्र में बैराज के ऊपरी इलाकों को छोड़कर कॉमन कार्प की पकड़ में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, इससे पता चलता है कि मछलियों की विदेशी प्रजातियां अब यमुना नदी पर हावी हो रही हैं।

ऐसे में केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान केंद्र ने स्थिति में सुधार लाने के लिए कई कदम सुझाए हैं। इनमें अवैध मछली पकड़ने के उपकरणों पर प्रतिबंध लगाना या उन्हें विनियमित करना, मछली पकड़ने पर प्रतिबंध की अवधि के दौरान नियंत्रण और निगरानी बढ़ाना शामिल है। साथ ही अनुष्ठानों के दौरान नदी में विदेशी मछलियों को छोड़े जाने से रोकना, पानी के निरंतर बहाव को सुनिश्चित करना तथा विशिष्ट स्रोतों से प्रदूषण को कम करना जैसे उपाय शामिल हैं।

गौरतलब है कि 19 सितंबर, 2024 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यमुना के किनारे विभिन्न स्थानों पर पानी की खराब गुणवत्ता का भी खुलासा किया है।

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