प्रजातियों के अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी हैं बुजुर्ग बुद्धिमान जीव, लेकिन बढ़ती महत्वाकांक्षा की चढ़ रहे हैं भेंट

इंसान अपनी बढ़ती महत्वाकांक्षा के चलते तेजी से बुजुर्ग बुद्धिमान जीवों को निशाना बना रहा है, जो न केवल प्रजातियों के अस्तित्व बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी बेहद मायने रखते हैं
कुछ प्रजातियों में यह बुजुर्ग जीव महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिकाएं निभाते हैं। यह अपने ज्ञान और अनुभव की मदद से आपदाओं और प्रवास आदि के समय में अपने समूहों का नेतृत्व करते हैं; फोटो: आईस्टॉक
कुछ प्रजातियों में यह बुजुर्ग जीव महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिकाएं निभाते हैं। यह अपने ज्ञान और अनुभव की मदद से आपदाओं और प्रवास आदि के समय में अपने समूहों का नेतृत्व करते हैं; फोटो: आईस्टॉक
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इंसानों और दूसरे जीवों में उम्र बढ़ने का अर्थ है उनके जैविक कार्यों में गिरावट आना। लेकिन इस गिरावट से उलट हम इंसानों की तरह ही दूसरे जीव भी उम्र बढ़ने के साथ बुद्धि, ज्ञान और अनुभव अर्जित करते हैं।

शोधों से भी पता चला है कि हम इंसानों की तरह ही दूसरे जीव उम्र बढ़ने के साथ कहीं ज्यादा समझदार हो जाते हैं।

पृथ्वी पर बहुत से जीव ऐसे हैं जो लम्बा जीवन काल व्यतीत करते हैं, उदाहरण के लिए ग्रीनलैंड शार्क करीब चार सदियों तक जीवित रह सकती है। बिगमाउथ बफेलो मछली 127 साल, गैलापागोस के विशाल कछुए 100 से 150 साल, हाथी 70 से 80 वर्ष, खारे पानी के मगरमच्छ 100 से अधिक वर्ष, लाल समुद्री अर्चिन करीब 200 साल, बोहेड व्हेल 200 वर्षों तक जीवित रह सकती है।

इसी तरह रफआई रॉकफिश की उम्र 200 से ज्यादा वर्ष हो सकती है। मीठे पानी की सीप भी 200 वर्षों तक अस्तित्व में रह सकती है। ट्यूबवर्म 300 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।

आपको जानकार हैरानी होगी की ब्लैक कोरल की उम्र 5,000 वर्षों की हो सकती है, जबकि ग्लास स्पंज 10,000 वर्षों से अधिक समय तक बने रह सकते हैं। प्रकृति ऐसे अनेकों जीवों से भरी है जो अपने लम्बे जीवन काल के लिए जाने जाते हैं।

महज आंकड़ा नहीं उम्र

देखा जाए तो उनके यह उम्र महज एक आंकड़ा नहीं है, जैसे-जैसे यह जीव बढ़ती उम्र के साथ परिपक्व होते हैं वे अपनी जीवन में अर्जित ज्ञान और अनुभवों के आधार पर अलग-अलग व्यवहार करते हैं, वे अपने पर्यावरण के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करते हैं और अक्सर उस ज्ञान को आने वाली पीढ़ियों के लिए संजोए रहते हैं और उन तक पहुंचाते हैं।

ऐसे में उनका यह ज्ञान और अनुभव आने वाली नस्लों को धरोहर के तौर पर सौंप दिया जाता है।

यह प्रकृति है, जो सदियों से इसी तरह चल रही है, हालांकि समस्या तब शुरू होती है जब हम इंसान इन बुजुर्ग बुद्धिमान जीवों का अपने फायदे के लिए शिकार करते हैं, या उनके आवास को नुकसान पहुंचाते हैं।

इसे समझने के लिए चार्ल्स डार्विन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक नया अध्ययन किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन इस बात को समझने पर केंद्रित था कि बुजुर्ग जीव पारिस्थितिकी और संरक्षण को कैसे प्रभावित करते हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 9,000 से अधिक शोधों का विश्लेषण किया है। साथ ही इसमें मशीन लर्निंग मॉडल की भी मदद ली गई है। शोधकर्ताओं ने चेताया है कि पृथ्वी पर इन बुजुर्ग जीवों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है।

देखा जाए तो अधिकांश अध्ययन उम्र बढ़ने के नुकसानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन उभरते हुए साक्ष्य दर्शाते हैं कि कैसे यह बुजुर्ग, बुद्धिमान जीव आबादी और पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान करते हैं। कहीं न कहीं इसका फायदा हम इंसानों को भी मिलता है, लेकिन दुःख की बात है कि उनका यह योगदान घट रहा है, क्योंकि धीरे-धीरे यह बुजुर्ग जीव अपने प्राकृतिक आवास से गायब होते जा रहे हैं।

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अब बहुत कम जीव बुढ़ापे तक जीवित रहते हैं और जो जीवित रहते हैं उनपर भी इंसानों का शिकार बन जाने का खतरा मंडराता रहता है, क्योंकि हम इंसान जिस चीज के लिए इन प्रजातियों का शिकार करते हैं यह उसके धनी होते हैं। उदाहरण के लिए कुछ जीवों को उनके सींग, कुछ को दांत के लिए निशाना बनाया जाता है, जो इन बुजुर्ग जीवों में सबसे बड़े होते हैं।

बेतहाशा मछली पकड़ने से समुद्र में बुजुर्ग मछलियां बेहद कम हो गई हैं, जबकि हाथी जैसे जानवरों का अवैध शिकार किया जा रहा है। आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं, जांची गई समुद्री आबादी में से 79 से 97 फीसदी में इन बुजुर्ग मछलियों की संख्या में गिरावट आई है।

अनियंत्रित मछली पकड़ने और जलवायु परिवर्तन से लंबे समय तक जीवित रहने वाले कोरल और स्पंज को भी नुकसान हो रहा है, यह नुकसान इतना बड़ा है कि इसकी भरपाई हमारे जीवनकाल में तो नहीं हो सकती।

रिसर्च के मुताबिक ठंडे खून वाले जीव, जैसे कि मछली और सरीसृप, उम्र बढ़ने के जीवन भर बढ़ते रहते हैं। इसका मतलब है कि यह जीव, युवाओं से कहीं ज्यादा बड़े हो सकते हैं। बड़े होने के अपने फायदे हैं, खासकर जब बात भोजन खोजने या प्रजनन की आती है।

यह व्यापक रूप से ज्ञात है कि मछलियों और कई अन्य एक्टोथर्म जीवों में उम्र के साथ संतानों की संख्या बढ़ती है। लेकिन हाल ही में यह भी सामने आया है कि कुछ मछलियों और समुद्री मादा कछुए बढ़ती उम्र के साथ-साथ तेजी से ज्यादा संताने पैदा करती हैं। इनके बच्चों के जीवित रहने की संभावना भी अधिक होती है।

इसी तरह कुछ अन्य प्रजातियों में भी बड़ी उम्र की मादाओं से पैदा होने वाली संतानों के जीवित रहने की दर अधिक हो सकती है। उदाहरण के लिए पक्षियों में बड़ी उम्र के माता-पिता अक्सर अपने बच्चों के लिए अधिक भोजन और आवास देते हैं, जिससे नवजातों के जीवित रहने की दर में सुधार होता है।

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अस्तित्व को बनाए रखता है उम्र के साथ संजोया ज्ञान

इसी तरह कुछ प्रजातियों में यह बुजुर्ग जीव महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिकाएं निभाते हैं। यह अपने ज्ञान की मदद से प्रवास आदि के समय में अपने समूहों का नेतृत्व करते हैं। इसी तरह यह झुण्ड को खतरों से बचाए रखने और आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं। उनके निर्णय और व्यवहार सीधे तौर पर अगली पीढ़ियों के अस्तित्व को प्रभावित करते हैं। 

उदाहरण के लिए हाथियों में बुजुर्ग मादाएं और दादी-नानी की तरह ज्ञान का भंडार होती हैं। ऐसा ही कुछ व्यवहार व्हेल में भी होता है। इनमे समझदार बुजुर्ग मादाएं जो प्रजनन नहीं करती है वो अपने झुण्ड की भोजन खोजने में मदद करती हैं, जब भोजन दुर्लभ होता है तो वो उनके अस्तित्व के लिए बेहद मायने रखता है।

ऐसा ही कुछ व्यवहार दूसरे जीवों में भी देखने को मिला है जो अपने ज्ञान को अपनी अगली पीढ़ियों तक पहुंचाते हैं। पक्षी, स्तनधारी और मछलियां तक अपने ज्ञान को आने वाली पीढ़ियों को देती हैं। यह जीव अपने जीवन भर में संजोए ज्ञान और अनुभवों का उपयोग बेहतर निर्णय लेने में करते हैं।

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देखा जाए तो जो प्रजातियां लम्बे समय तक जीवित रहती हैं वो धीमी गति से बढ़ती और परिपक्व होती हैं, इनके प्रजनन की दर भी धीमी होती है। जो इन्हें विलुप्त होने के लिए कहीं ज्यादा संवेदनशील बना देता है। इनकी बुजुर्ग आबादी जो पर्यावरण में आने वाले बदलावों का सामना करने के काबिल होती हैं और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता को बनाए रखने में मददगार होती है।

इसी तरह यह जलवायु में आते बदलावों का कहीं बेहतर तरीके से सामना कर सकती हैं। यह बाढ़, सूखा, जैसी चरम मौसमी घटनाओं और खराब पर्यावरणीय स्थितियों से अपनी प्रजाति को बचाए रखने के काबिल होती हैं। हालांकि इनके खत्म होने साथ-साथ प्रजाति पर खतरा बढ़ जाता है।

रिसर्च से पता चला है कि यह बुजुर्ग, बुद्धिमान जीव न केवल अपनी आबादी, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन जिस तरह से पृथ्वी पर मौजूद यह बुजुर्ग और बुद्धिमान जीव इंसानी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ रहे हैं, उससे प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो सकता है।

हालांकि जीवों और जैव विविधता के संरक्षण के लिए किए जा रहे उपायों में इन बुजुर्ग और बुद्धिमान जानवरों पर विचार नहीं किया जाता। ऐसे में शोधकर्ताओं ने इन जीवों के संरक्षण पर जोर दिया है।

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