"हम लोग छठी सामूहिक विलुप्त की ओर बढ़ रहे हैं। लगभग 10 लाख प्रजातियां अगले दशक में विलुप्त हो जाएंगे। डायनासोर युग के अंत के बाद होने वाला यह सामूहिक अंत सबसे बड़ा होगा।"
सेंटर फॉर साइंस एवं एनवायरमेंट के मीडिया कांक्लेव अनिल अग्रवाल डायलॉग के तीसरे दिन के अंतिम सत्र जिसका विषय "जंगल एवं जैव विविधिता: साल के सुलगते सवाल" को संबोधित करते हुए डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने कहा कि वैश्विक औसत के मुकाबले भारत में प्रजातियों की विलुप्ति अधिक तेजी से हो रही है। भारत ने पिछले 50 वर्षों में अपने 12 प्रतिशत जंगली स्तनधारी जीव, 19 प्रतिशत उभयचर और 3 प्रतिशत पक्षियों को खो दिया है।
उन्होंने कहा कि यह छठी सामूहिक विलुप्ति पिछली विलुप्तियों से अलग है। क्योंकि पिछली पांच विलुप्तियों के कारण प्राकृतिक थे, लेकिन अब जो विलुप्ति या अंत होने वाला है, वो आधुनिक मानव यानी होमो सेपियन्स के कारण होगा।
उन्होंने बताया कि सभी जंगली स्तनधारियों में से 83 प्रतिशत और सभी पौधों में से 50 प्रतिशत की गिरावट के लिए मनुष्य जिम्मेवार है।
इसी तरह 75 प्रतिशत मैदानी और 66 प्रतिशत समुद्री पर्यावरण को बदलने के लिए भी इंसान ही जिम्मेवार है। जैव विविधता में बहुत तेजी से कमी आ रही है। जानवरों की लगभग 50 प्रतिशत पशु आबादी विलुप्त होने की राह पर है।
उन्होंने बताया कि बड़े पैमाने पर विलुप्ति तब होती है, जब 75 प्रतिशत प्रजातियां 28 लाख वर्षों से कम समय में समाप्त हो जाती हैं। औसतन 10 लाख वर्षों के अंतराल पर 50 हजार से 27.6 लाख वर्षों तक विलुप्त होने का चरण चलता है। इस समय तक, पृथ्वी पर अब तक रहे सभी जीवों में से 99 प्रतिशत विलुप्त हो चुके हैं और नई प्रजातियां विकसित हो रही हैं।
रिचर्ड ने कहा कि मनुष्य न केवल प्रजातियों के विलुप्त होने का कारण है, बल्कि वह यह भी तय करता है कि कौन जीवित रहेगा और फलेगा-फूलेगा।
कुल स्तनधारी जीवों में से 60 प्रतिशत पशुधन हैं, जबकि 36 प्रतिशत सूअर हैं और केवल 4 प्रतिशत जंगली हैं। कुल पक्षियों में से 70 प्रतिशत पोल्ट्री मुर्गियां व बाड़ों में पाले जाने वाले पक्षी हैं।