मानव जिस तरह विकास की राह पर चल रहा है वो उसे विनाश की रह पर ले जा रहा है। विकास की यह अंधी दौड़ इंसानों के साथ-साथ दूसरे जीवों के अस्तित्व को भी खतरे में डाल रही है।
ऐसा ही कुछ यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के साथ शेफील्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आया है। इस अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में तेल, गैस, और खनिजों के लिए किए जा रहे खनन और ड्रिलिंग के चलते कशेरुकी जीवों के 4,642 प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इनमें पक्षी और मछलियों की हजारों प्रजातियां शामिल हैं।
दुनिया में यह खनन गतिविधियां उन क्षेत्रों के साथ ओवरलैप होती हैं, जो जैव विविधता के प्रमुख हॉटस्पॉट भी हैं। यह क्षेत्र ऐसी कई अनोखी प्रजातियों का घर हैं, जो कहीं और नहीं पाई जाती। रिसर्च से पता चला है कि इन प्रजातियों को सबसे बड़ा खतरा उन खनिजों से भी है जो स्वच्छ ऊर्जा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इनमें लिथियम और कोबाल्ट जैसे खनिज शामिल हैं जो सौर पैनल, पवन टर्बाइन और इलेक्ट्रिक कारों के लिए जरूरी हैं।
सीमेंट के लिए बड़ी मात्रा में आवश्यक चूना पत्थर के खनन ने भी कई प्रजातियों को खतरे में डाल दिया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह दुनिया में बढ़ते शहरीकरण की वजह से सीमेंट की मांग बढ़ रही है यह खतरा और बढ़ सकता है।
जिस तरह से दुनिया भर में खनिजों और निर्माण सामग्री की मांग बढ़ रही है। खनन गतिविधियां भी तेजी से पैर पसार रही हैं। 2022 में 40 प्रमुख खनन कंपनियों ने 94,300 करोड़ डॉलर का मुनाफा कमाया था। रिसर्च में सामने आया है कि खनन गतिविधियों ने 2000 और 2018 के बीच खनन गतिविधियों ने 78 फीसदी संरक्षित क्षेत्रों को प्रभावित किए हैं।
देखा जाए तो प्रकृति पर मंडराता यह खतरा केवल खदानों तक ही सीमित नहीं है। इन खदानों से बहुत दूर रहने वाली प्रजातियां भी खनन गतिविधियों से प्रभावित हो सकती हैं। उदाहरण के लिए दूषित पानी, सड़कों और बुनियादी ढांचे के लिए वनों का किया जा रहा विनाश भी प्रजातियों को प्रभावित कर सकता है।
महज खदानों तक सीमित नहीं खनन का प्रभाव
वैश्विक स्तर पर यह खदानें प्रत्यक्ष रूप से 101,583 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को प्रभावित कर रही हैं, लेकिन इनका प्रभाव कहीं दूर तक पड़ता है। उदाहरण के लिए अमेजन में खदानें 70 किलोमीटर दूर भी वन विनाश की वजह बन सकती हैं। इसी तरह खनन की वजह से होने वाला प्रदूषण 479,200 किलोमीटर लंबी नदियों और 164,000 वर्ग किलोमीटर में बाढ़ के मैदानों को प्रभावित कर रहा है।
इसी तरह यदि अंटार्कटिक को छोड़ दें तो धरती का 37 फीसदी हिस्सा खदानों के 50 किलोमीटर के दायरे में है। यह क्षेत्र आकार में पांच करोड़ वर्ग किलोमीटर में हैं जो खनन क्षेत्र की तुलना में करीब 500 गुणा है।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर डेविड एडवर्ड्स के मुताबिक, हमें स्वच्छ ऊर्जा के लिए सामग्री का खनन करने की आवश्यकता है, लेकिन अक्सर इन खनिजों का खनन उन क्षेत्रों में किया जा रहा है जो जैवविविधता के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में यह खनन समस्या पैदा कर रहा है।
उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि खनन के कारण होने वाला प्रदूषण बहुत सी प्रजातियों के लिए खतरा बन रहा है, इनमें विशेष रूप से मछलियां शामिल हैं। ऐसे में यदि इस समस्या से निपटना है तो साफ पानी में बढ़ते प्रदूषण को कम करना इससे निपटने का एक आसान उपाय है।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के आंकड़ों का उपयोग किया है, ताकि यह जाना जा सकते की खनन गतिविधियों से किन प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल करंट बायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
इस अध्ययन में भी सामने आया है कि खनन की वजह से विशेष रूप से मछलियों पर खतरा मंडरा रहा है। इसकी वजह मछलियों की 2,053 प्रजातियों पर खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इसके साथ ही खनन की वजह से खतरे में पड़ी प्रजातियों में सरीसृप, उभयचर, पक्षी और स्तनधारी जीव शामिल हैं।
किस प्रजाति पर कितना खतरा मंडरा रहा है ये इस बात पर निर्भर करता है कि कोई विशेष प्रजाति कहां रहती है, उसकी जीवनशैली कैसी है। पता चला है कि साफ पानी में पाए जाने वाले जीव और ऐसी प्रजातियां विशेष रूप से जोखिम में हैं जो बेहद सीमित दायरे में रहती हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक निर्माण गतिविधियों के चूना पत्थर की जरूरत वन्यजीवों के लिए जोखिम पैदा कर रही हैं। कई प्रजातियां ऐसी हैं जो सिर्फ चूना पत्थर पर ही रहती हैं और उनके आवास का दायरा बहुत सीमित है। ऐसे में सीमेंट के लिए होता खनन पूरी पहाड़ी के साथ-साथ इन प्रजातियों के आवास को भी नष्ट कर सकता है।
उदाहरण के लिए, मलेशिया में बेंट-टोड गेको को चूना पत्थर की खदानों से खतरा है। यह केवल एक पर्वत श्रृंखला पर पाई जाती हैं। ऐसे में उसपर किया जा रहा खनन इन्हें पूरी तरह खत्म कर देगा।
रिसर्च से पता चला है कि असुरक्षित, संकटग्रस्त या गंभीर रूप से खतरे में पड़ी प्रजातियां, कम संकटग्रस्त प्रजातियों की तुलना में खनन की वजह से कहीं ज्यादा खतरे में हैं।
यह खनन नदियों और जलमार्गों को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। उदाहरण के लिए, निर्माण सामग्री के रूप में हो रहा रेत का वैध और अवैध खनन नदियों और आर्द्रभूमि में जल प्रवाह के पैटर्न को बदल सकता है। इसकी वजह से भारतीय स्कीमर जैसे पक्षी शिकारियों के लिए कहीं अधिक आसान शिकार बन जाते हैं।
खनन की वजह से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों, विशेष रूप से एंडीज, तटीय पश्चिम और मध्य अफ्रीका, तथा दक्षिण पूर्व एशिया में कशेरुकी प्रजातियों के लिए विशेष रूप से खतरा है। इन क्षेत्रों में खनन का कारोबार कहीं ज्यादा सघन है। उदारहण के लिए घाना में छोटे पैमाने पर होता सोने का खनन, पारे के बढ़ते प्रदूषण के साथ महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्रों को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
जैव विविधता दुनिया के कार्बन भंडार को संरक्षित रखने में भी मदद करती है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जारी जंग के लिए बेहद मायने रखता है। इस अध्ययन में केवल कशेरुकी प्रजातियों पर खनन के पड़ते प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। लेकिन शोधकर्ताओं के मुताबिक खनन की वजह से अन्य प्रजातियों और पेड़ पौधों पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
यह सही है कि हमारा पूरा समाज खनन से प्राप्त उत्पादों पर निर्भर करता है। ऐसे में इसमें कोई संदेह नहीं कि आगे भी खनन जारी रहेगा। लेकिन इसके साथ ही खनन के प्रभावों पर भी गौर करना जरूरी है। सरकारों और खनन उद्योगों को खनन से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह खनन की वजह से जैव विविधता को हो रहे नुकसान को कम करने का एक आसान तरीका है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया के कुछ क्षेत्रों में जैवविविधता, अन्य क्षेत्रों की तुलना में खनन के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील है। ऐसे में खनन को कहां किया जाए, जिससे जैवविविधता पर कम से कम प्रभाव पड़े, इस पर ध्यान देना जरूरी है। भविष्य की नीतियों में भी ज्यादा से ज्यादा खनन की जगह इन खनिजों के पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।