जंगल में बढ़ते इंसानी दखल से खतरे में पूर्वी हिमालय के पक्षियों का भविष्य: स्टडी

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (बेंगलुरु) से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में खुलासा किया है कि पूर्वी हिमालय के कटते जंगलों में तापमान का उतार-चढ़ाव पक्षियों की जीवन क्षमता और वजन को प्रभावित कर रहा है
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सारांश
  • पूर्वी हिमालय के जंगलों में इंसानी दखल के कारण कीटभक्षी पक्षियों की संख्या घट रही है।

  • आईआईएससी के अध्ययन में पाया गया कि जंगलों की कटाई से तापमान और नमी में बदलाव आ रहा है, जिससे पक्षियों का वजन और जीवित रहने की क्षमता कम हो रही है।

  • संरक्षण के लिए प्राथमिक जंगलों को बचाना और माइक्रोक्लाइमेट में सुधार करना आवश्यक है।

पूर्वी हिमालय के शांत, ठंडे और घने जंगलों में एक अदृश्य संकट पनप रहा है। यहां पेड़ों की छाया और घनी झाड़ियों में रहने वाले कीटभक्षी (कीड़े खाने वाले) छोटे पक्षी तेजी से गायब हो रहे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसका सबसे बड़ा कारण जंगलों का बिगड़ता प्राकृतिक वातावरण है, जिसकी वजह से इन जीवों के आवास प्रभावित हो रहे हैं।

यह जानकारी इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (बेंगलुरु) से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे ब्रिटिश इकोलॉजिकल सोसाइटी के जर्नल ऑफ एप्लाइड इकोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

इस अध्ययन में भारतीय शोधकर्ताओं ने अरुणाचल प्रदेश के ईगल्स नेस्ट वन्यजीव अभयारण्य में दस वर्षों (2011 से 2021) तक पक्षियों के भविष्य पर मंडराते खतरे का अध्ययन किया है।

वे जानना चाहते थे कि चुनिंदा पेड़ों की काटे जाने (सेलेक्टिव लॉगिंग) के बाद जंगल के तापमान और नमी में कैसे बदलाव आते हैं और उन बदलावों का इन छोटे पक्षियों पर क्या असर पड़ता है।

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इसके लिए वैज्ञानिकों ने पक्षियों को हल्के एल्यूमिनियम के छल्लों की मदद से टैग किया, और हर साल उन्हीं जगहों पर लौटकर उनकी संख्या, वजन और जीवित रहने की दर को रिकॉर्ड किया। साथ ही प्राथमिक (प्राकृतिक) जंगल और कटे हुए जंगल, दोनों जगह तापमान और नमी को मापने के उपकरण लगाए गए।

इसका मकसद यह समझना था कि पेड़ों की घनी छाया के नीचे रहने वाले यह कीटभक्षी पक्षी, अपने माइक्रोक्लाइमेट में आने वाले बदलावों के साथ कैसे तालमेल बिठाते हैं।

दिन में अधिक गर्मी, रात सामान्य से अधिक सर्द

अध्ययन से पता चला कि जहां पेड़ों को काटा गया, वहां दिन में लगातार भीषण गर्मी पड़ती है, साथ ही मौसम में सूखापन भी अधिक होता है, जबकि रातें अधिक ठंडी होती हैं।

देखा जाए तो पेड़ों की छाया खत्म होने से यह बदलाव तापमान और नमी में बड़ा उतार-चढ़ाव पैदा करता है। पूर्वी हिमालय के पक्षी “थर्मल स्पेशलिस्ट” यानी बेहद स्थिर और ठंडे वातावरण के आदी होते हैं।

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ऐसे में यह बदलाव उनके लिए बेहद तनावपूर्ण होता है। वैज्ञानिकों ने इस बात की भी आशंका जताई है कि जलवायु परिवर्तन इस तनाव को और बढ़ा सकता है।

वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि यह खतरा जलवायु परिवर्तन के साथ और गहरा सकता है, क्योंकि पूर्वी हिमालय के पक्षी तापमान में आने वाले मामूली बदलावों के प्रति भी बेहद संवेदनशील “थर्मल स्पेशलिस्ट” होते हैं।

पक्षियों का कम हुआ वजन, घट रही लंबे समय तक जीवित रहने की क्षमता

अध्ययन में यह भी पाया गया कि, जो प्रजातियां नए बदले वातावरण में भी सुरक्षित छोटी जगहें (माइक्रो-क्लाइमेट) ढूंढ लेती हैं, वे अभी भी बच रही हैं। लेकिन जिन पक्षियों को अपने पुराने हालात नहीं मिल पाते, उनकी गिनती और वजन दोनों तेजी से घट रहे हैं। साथ ही लंबे समय में उनकी जीवित रहने की संभावना भी तेजी से कम हो जाती है।

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता अक्षय भारद्वाज ने इस बारे में कहा, “हम समझना चाहते हैं कि कुछ पक्षी कटाई के बाद भी कैसे टिक जाते हैं, जबकि क्यों कुछ तेजी से कम हो रहे हैं।”

क्या करने की है जरूरत?

अपने निष्कर्षों के आधार पर शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि संरक्षण रणनीतियों में खासकर अलग-अलग ऊंचाई वाले इलाकों में मुख्य (प्राथमिक) जंगलों को बचाना बेहद जरूरी है।

वहीं जहां जंगलों को पहले ही नुकसान हो चुका है, वहां पक्षियों के लिए माइक्रोक्लाइमेट को बेहतर बनाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं, इनके तहत छाया बनाना, पानी के छोटे स्रोतों को बढ़ाना, ताकि कमजोर प्रजातियों को उनके मूल आवास जैसे छोटे सुरक्षित ठिकाने मिल सकें।

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वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि यदि कीड़े खाने वाले पक्षी कम हो गए तो जंगलों में कीटों की संख्या बढ़ सकती है, जिससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ सकता है।

अध्ययन बताता है कि यह समझना क्यों जरूरी है कि कुछ पक्षी प्रजातियां जंगल कटने के बाद क्यों घट रही हैं, और बदले हुए आवासों के माइक्रोक्लाइमेट उनकी आबादी को कैसे प्रभावित करते हैं। साथ ही उन्हें बचाने के लिए सही रणनीति क्या हो सकती है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इसे समझने के लिए लम्बे समय तक जुटाए आंकड़े बेहद जरूरी हैं, क्योंकि जैसे जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती जाएगी, छोटे-छोटे सुरक्षित आवासों का बने रहना कई प्रजातियों के लिए जलवायु प्रभावों से बचने में बेहद महत्वपूर्ण होगा। मतलब की बढ़ते तापमान के साथ ये छोटे माइक्रो-हैबिटाट ही इन पक्षियों के लिए जीवनरेखा साबित होंगे।

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