डॉल्फिन संरक्षण: प्लास्टिक प्रदूषण और शिकार से खतरे में बुद्धिमान जीव

विश्व डॉल्फिन दिवस: 12 सितंबर और पांच अक्टूबर हमें याद दिलाते हैं कि डॉल्फिन संरक्षण ही स्वस्थ नदियों और सुरक्षित समुद्र का भविष्य है।
भारत में करीब 6,327 नदी डॉल्फिन बची हैं, जिनमें से 6,324 गंगा डॉल्फिन और केवल तीन सिंधु डॉल्फिन पाई गई।
भारत में करीब 6,327 नदी डॉल्फिन बची हैं, जिनमें से 6,324 गंगा डॉल्फिन और केवल तीन सिंधु डॉल्फिन पाई गई।फोटो साभार: आईस्टॉक
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🐬 12 सितंबर विश्व डॉल्फिन दिवस : 2021 में फैरो द्वीप पर 1,428 डॉल्फिन मारी गई। यह दिन चेतावनी और संवेदनशीलता का प्रतीक है।

🐬 भारत में पांच अक्टूबर को राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस मनाया जाता है

🐬 असाधारण बुद्धिमत्ता : डॉल्फिन औजारों का इस्तेमाल करती हैं, समस्याएं सुलझाती हैं और “नाम जैसे” सीटी से संवाद करती हैं।

🐬 भारत की गंगा डॉल्फिन : भारत की नदियों में लगभग 6,327 नदी डॉल्फिन बची हैं, जिनमें से गंगा डॉल्फिन “राष्ट्रीय जलीय जीव” है।

🐬 छोटी कोशिश, बड़ा असर: प्लास्टिक कम करना, नदियों-समुद्र को साफ रखना और डॉल्फिनों को कैद से बचाना।

डॉल्फिन को दुनिया की सबसे आकर्षक और बुद्धिमान जीवों में गिना जाता है। उनकी चंचलता, खेल-खेल में तैरने की आदत और इंसानों जैसी समझदारी हमेशा से वैज्ञानिकों और आम लोगों को चौंकाती रही है। लेकिन आज डॉल्फिन के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं, प्लास्टिक प्रदूषण, मछली पकड़ने के जाल, शिकार और लगातार बिगड़ता पर्यावरण। इन्हीं मुद्दों पर ध्यान खींचने के लिए हर साल 12 सितम्बर को “विश्व डॉल्फिन दिवस” और पांच अक्टूबर को “राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस” मनाया जाता है।

क्यों खास है 12 सितंबर?

12 सितम्बर का दिन सिर्फ एक जश्न का मौका नहीं है, बल्कि यह हमें डॉल्फिन की सुरक्षा के महत्व की याद दिलाता है। साल 2021 में इस दिन फैरो द्वीप में एक दिल दहला देने वाली घटना हुई थी, जब मात्र एक दिन में 1,428 डॉल्फिनों को मार दिया गया। यह दुनिया में डॉल्फिन के सबसे बड़े सामूहिक शिकारों में से एक था। यही वजह है कि अब यह दिन सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि चेतावनी और संवेदनशीलता का प्रतीक बन गया है।

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राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस पांच अक्टूबर

दूसरी ओर पांच अक्टूबर को “राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस” मनाया जाता है। यह दिन डॉल्फिन की सुंदरता और महत्व को याद करने के साथ-साथ उनके संरक्षण का संदेश भी देता है। समुद्र और नदियों में डॉल्फिन के अस्तित्व पर खतरे लगातार बढ़ रहे हैं – प्रदूषण, आवास नष्ट होना और कैद में रखे जाने की नैतिक समस्या। यह दिन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि अगर इंसान प्रकृति को नुकसान पहुंचाता रहा, तो आने वाले समय में डॉल्फिन केवल किताबों और तस्वीरों में रह जाएंगी।

डॉल्फिन की असाधारण बुद्धिमत्ता

डॉल्फिन सिटेशियन परिवार की सदस्य हैं, जिसमें व्हेल और पोरपोइज भी शामिल हैं। लेकिन अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता और सीखने की क्षमता की वजह से डॉल्फिन सबसे अलग पहचान रखती हैं। वे समस्याओं को हल करना जानती हैं। औजारों का इस्तेमाल करती हैं, ज्ञान को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाती हैं।

उदाहरण के तौर पर, बॉटलनोज डॉल्फिन समुद्र की तली में भोजन खोजते समय अपनी थूथन को बचाने के लिए समुद्री स्पंज का उपयोग करती हैं। यह आदत केवल बुद्धिमत्ता ही नहीं बल्कि “संस्कृति” के संकेत भी देती है। डॉल्फिन का मस्तिष्क इंसानों के बाद दूसरे नंबर पर सबसे बड़ा और जटिल होता है, यदि शरीर के आकार की तुलना की जाए।

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संचार और आत्म-जागरूकता

डॉल्फिन अपने वातावरण में रास्ता खोजने और शिकार पकड़ने के लिए इकोलोकेशन का इस्तेमाल करती हैं, जो एक तरह की जैविक सोनार तकनीक है। इसके अलावा वे सीटी, क्लिक और शरीर की हरकतों से आपस में संवाद करती हैं।

कुछ डॉल्फिनों के पास अपना अलग तरह की सीटी होती है, जिसे हम “नाम” जैसा समझ सकते हैं। इससे वे अपने समूह में एक-दूसरे को पहचानती हैं।

कैद में रखी गई डॉल्फिनों ने आईने में खुद को पहचानने की क्षमता दिखाई है, जो आत्म-जागरूकता का संकेत है। इसके साथ ही वे सहयोग, सहानुभूति और खेल जैसी भावनाएं भी दिखाती हैं। इन्हीं कारणों से कई वैज्ञानिक मानते हैं कि डॉल्फिन को “गैर-मानव व्यक्तित्व” का दर्जा दिया जाना चाहिए।

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भारत और गंगा डॉल्फिन

भारत की नदियां भी डॉल्फिन का घर हैं। यहां पाई जाने वाली गंगा नदी डॉल्फिन, भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित की गई है। लेकिन यह समुद्री डॉल्फिन जैसी नहीं होती। यह लगभग अंधी होती है और इकोलोकेशन पर निर्भर रहती है। इसका थूथन लंबा और पतला होता है। यह अधिकतर पानी के नीचे रहती है और ऊपर बहुत कम समय (पांच से 30 सेकंड) के लिए आती है।

साल 2021 से 2023 के बीच भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में करीब 6,327 नदी डॉल्फिन बची हैं, जिनमें से 6,324 गंगा डॉल्फिन और केवल तीन सिंधु डॉल्फिन पाई गई। आज गंगा डॉल्फिन की आबादी को प्रदूषण, पानी की धारा कम होना, बांध निर्माण और मछली पकड़ने के जाल जैसी समस्याओं से भारी खतरा है।

इन दोनों डॉल्फिन प्रजातियों को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) द्वारा "लुप्तप्राय" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

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हर छोटी कोशिश अहम

डॉल्फिन चाहे समुद्र में हों या भारत की नदियों में, वे इंसानी गतिविधियों से प्रभावित हो रही हैं। अगर हम प्लास्टिक का उपयोग कम करें, नदियों और समुद्र को स्वच्छ रखें, और डॉल्फिन को कैद में रखने का विरोध करें, तो यह उनके जीवन को बचाने की दिशा में बड़ा कदम होगा।

विश्व डॉल्फिन दिवस और राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस हमें याद दिलाते हैं कि डॉल्फिन की रक्षा करना केवल उनकी नहीं बल्कि पूरे समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना है।

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डॉल्फिन न केवल समुद्र की शोभा हैं बल्कि वे प्रकृति की अद्भुत बुद्धिमत्ता और संवेदनशीलता का प्रतीक भी हैं। 12 सितम्बर और पांच अक्टूबर, दोनों दिन हमें चेतावनी देते हैं कि अगर हमने अभी से कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियां इन चंचल और प्यारे जीवों को केवल इतिहास की किताबों में देखेंगी।

हर इंसान का छोटा कदम चाहे वह प्लास्टिक कम करना हो, पानी बचाना हो या संरक्षण अभियानों का समर्थन डॉल्फिन को सुरक्षित भविष्य देने में अहम भूमिका निभा सकता है।

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