तीन लुप्तप्राय इरावदी डॉल्फिन की मौत से इनके संरक्षण की बढ़ी चिंता

कंबोडिया में इरावदी डॉल्फिन की सबसे बड़ी आबादी रहती है, जो म्यांमार, इंडोनेशिया, भारत और थाईलैंड की नदियों और झीलों में भी पाई जाती हैं
फोटो साभार : डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, लुप्तप्राय इरावदी डॉल्फिन
फोटो साभार : डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, लुप्तप्राय इरावदी डॉल्फिन
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कंबोडिया में इरावदी डॉल्फिन की सबसे बड़ी आबादी रहती है, जो म्यांमार, इंडोनेशिया, भारत और थाईलैंड की नदियों और झीलों में भी पाई जाती हैं।

पिछले महीने, कंबोडिया के क्रेटी प्रांत से लाओस सीमा तक 190 किलोमीटर की दूरी पर मछली पकड़ने के जाल में फंसने से तीन डॉल्फिन मारे गए थे। इसको लेकर कंबोडियाई प्रधान मंत्री हुन सेन ने सोमवार को कहा कि लुप्तप्राय डॉल्फिन की रक्षा के लिए देश मेकांग नदी पर संरक्षण क्षेत्र का निर्माण करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि संरक्षण क्षेत्रों के आसपास मछली पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए तैरते बाजार भी बनाए जाएंगे।

1997 में पहली गणना के बाद से उनकी आबादी में लगातार गिरावट देखी जा रही है, जो तब 200 से घटकर लगभग 90 रह गई थी, जो वर्तमान में निवास स्थान के नुकसान और विनाशकारी तरीके से मछली पकड़ने के कारण हो रहा है।

हुन सेन ने कहा मेकांग नदी, जो लगभग विलुप्त डॉल्फिन और मछली प्रजातियों का घर है, जिसको अच्छी तरह से प्रबंधित किया जाना चाहिए ताकि डॉल्फ़िन मछली पकड़ने के जालों में उलझ कर न मरें।

तीन स्वस्थ प्रजनन-उम्र वाली डॉल्फिन पिछले महीने एक सप्ताह के भीतर मर गईं। मौतों ने संरक्षणवादियों को चिंतित कर दिया, उन्होंने शेष डॉल्फिन को अवैध मछली पकड़ने से मारने से बचाने के लिए दिन और रात-गश्त का आह्वान किया।

विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के अनुसार, 2022 में 11 डॉल्फिन की मृत्यु हो गई, पिछले तीन वर्षों में मृत डॉल्फिन की कुल संख्या 29 हो गई।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने सभी संबंधित अधिकारियों को डॉल्फिन संरक्षण क्षेत्रों में होने वाले गिलनेट्स और इलेक्ट्रो-फिशिंग के खतरों के कारण मृत्यु दर को तत्काल रोकने संबंधी उचित उपायों को लागू करने का आह्वान किया।

भारत में डॉल्फिन की स्थिति : गंगा नदी के डॉल्फिन

विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के मुताबिक गंगा नदी डॉल्फिन प्लैटेनिस्टा गैंगेटिका एक स्तनपायी है जो मुख्य रूप से भारत, बांग्लादेश और नेपाल में गंगा और ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों में पाई जाती है।

हाल ही में पंजाब में सिंधु नदी की डॉल्फिन एक निकटवर्ती प्रजाति पाई गई है। उनके पास सभी नदी डॉल्फिन की तरह लंबी, नुकीली नाक होती है। मुंह बंद होने पर भी दांत ऊपर और नीचे दोनों जबड़ों में दिखाई देते हैं। युवा जानवरों के दांत लगभग एक इंच लंबे, पतले और घुमावदार होते हैं।   

प्रजातियों में एक क्रिस्टलीय नेत्र लेंस नहीं होता है, जिससे यह प्रभावी रूप से अंधा हो जाता है। इकोलोकेशन का उपयोग करके ये यात्रा और शिकार करते हैं। उनके शरीर भूरे रंग का और बीच में गठीला होता है। प्रजातियों में पृष्ठीय पंख के स्थान पर केवल एक छोटा त्रिकोणीय गांठ होती है। फ्लिपर्स और पूंछ शरीर के आकार के संबंध में पतली और बड़ी हैं।

परिपक्व वयस्क मादा नर से बड़ी होती हैं। बच्चों को जनवरी और मई के बीच देखा जा सकता है और बच्चे अधिक समय तक मां के साथ नहीं रहते हैं। गर्भधारण लगभग नौ से दस महीने का माना  जाता है। प्रजातियां कार्प और कैटफ़िश समेत विभिन्न प्रकार के झींगा और मछली का शिकार करती हैं। डॉल्फिन आमतौर पर स्वयं या ढीले समुच्चय में पाई जाती हैं, वे तंग, स्पष्ट रूप से बातचीत करने वाले समूह नहीं बनाते हैं।

हाल ही में भारत के ओडिशा राज्य में स्थित चिल्का झील के खारे पानी में रहने वाली डॉल्फिन की वार्षिक गणना बुधवार को शुरू हुई। विशेषज्ञों के मुताबिक, चिल्का में डॉल्फिन की गणना करने के लिए राज्य वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और वन्यजीव विशेषज्ञों की 18 टीमों को शामिल किया गया।

इस साल कुछ समय पहले की गई गड़ना के मुताबिक ओडिशा के तट पर और जल निकायों में डॉल्फ़िन की आबादी में वृद्धि हुई है, लेकिन चिल्का झील में इरावदी डॉल्फिन की संख्या में कमी आई है।

विभिन्न जल निकायों और ओडिशा के तट से दूर जनगणना करने के महीनों बाद, प्रधान मुख्य संरक्षक वन (वन्यजीव) ने डॉल्फ़िन की संख्या पर राज्य के वन्यजीव प्रभागों में दर्ज आंकड़ों का खुलासा किया, जो 2021 में कुल 544 से बढ़ कर  2022 में 726 पहुंच गया है।

राज्य की डॉल्फिन आबादी में वृद्धि काफी हद तक राजनगर क्षेत्राधिकार के मैंग्रोव वन्यजीव प्रभाग में है, जहां 2021 में 342 की तुलना में 2022 में 540 डॉल्फिन की गणना की गई थी। राजनगर में, बॉटलनोज डॉल्फिन 22 से बढ़कर 135 हो गई और हंपबैक डॉल्फिन सालभर में 281 से बढ़कर 332 पहुंच गई थी।

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