
इंडोनेशिया में 60 फीसदी से अधिक व्हेल शार्क घायल हैं, जिनमें अधिकतर चोटें इंसानी कारणों से हुई हैं, जैसे बगान्स और नौकाओं से टकराव।
व्हेल शार्क की आबादी पिछले 75 सालों में 50 फीसदी से ज्यादा घट चुकी है, और ये अब संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल हैं।
अध्ययन (2010–2023) में 268 व्हेल शार्क की पहचान की गई, जिनमें ज्यादातर किशोर नर थे और लगभग सभी बगान्स के पास देखे गए।
सरल समाधान जैसे बगानों में सुधार और पर्यटन नियमों से इन चोटों को रोका जा सकता है, जिससे संरक्षण संभव है।
व्हेल शार्क दुनिया की सबसे बड़ी मछली है, जो शांत स्वभाव और विशाल आकार के लिए जानी जाती है। लेकिन आज यह प्रजाति संकट में है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने इसे लुप्तप्राय घोषित किया है। पिछले 75 सालों में इनकी वैश्विक संख्या में 50 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है, और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में यह गिरावट 63 फीसदी तक पहुंच गई है।
इनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये बहुत धीरे-धीरे प्रजनन करती हैं, इन्हें यौन परिपक्व होने में लगभग 30 साल लगते हैं। ऐसे में यदि इनकी संख्या घटती है, तो उसे वापस बढ़ने में कई दशक लग सकते हैं।
इंडोनेशिया में 60 फीसदी व्हेल शार्क घायल
हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने इंडोनेशिया के बर्ड्स हेड सीस्केप क्षेत्र में चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया। यहां 62 फीसदी व्हेल शार्कों के शरीर पर चोट या घाव के निशान पाए गए हैं और इनमें से अधिकतर चोटें मानवजनित कारणों से हुई हैं।
फ्रंटियर्स इन मरीन साइंस नामक शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि ज्यादातर चोटें ‘बगान्स’ (पारंपरिक मछली पकड़ने वाले प्लेटफार्म) और पर्यटन नौकाओं से टकराने के कारण होती हैं।
बगान्स और टूरिज्म नौकाएं कैसे बन रही हैं खतरा?
बगान्स लकड़ी से बने पारंपरिक प्लेटफॉर्म होते हैं, जिनसे मछलियां पकड़ने के लिए जाल इस्तेमाल किए जाते हैं। व्हेल शार्क अक्सर इन बगान्स के नीचे जमा हो जाती हैं, क्योंकि यहां छोटी मछलियां जैसे एंकोवी, हेरिंग और स्प्रैट्स होती हैं।
कई बार वे जाल से मछलियां सीधे चूस लेती हैं, जिससे जाल फट जाते हैं। इस प्रक्रिया में उनके शरीर पर बार-बार घर्षण होता है और उन्हें चोटें लगती हैं। इसी तरह, टूरिज्म बोट्स भी बहुत नजदीक आ जाती हैं, जिससे शार्क को प्रोपेलर या पतवार से चोट लग जाती है।
कैसे किया गया अध्ययन?
यह अध्ययन 2010 से 2023 तक चला और इसमें इंडोनेशिया के सेंडरावासी बे, काइमाना, राजा आम्पट और फाकफाक क्षेत्रों में व्हेल शार्क की गतिविधियों को ट्रैक किया गया। वैज्ञानिकों ने 268 अलग-अलग व्हेल शार्कों की पहचान की। हर एक शार्क के शरीर पर सफेद धब्बों और धारियों का अनोखा पैटर्न होता है, जिससे फोटोज और नागरिक वैज्ञानिकों की मदद से उनकी पहचान संभव हुई।
क्या कहते हैं अध्ययन के निष्कर्ष
98 फीसदी शार्क सेंडरावासी बे और काइमाना में देखी गई। 90 फीसदी नर शार्क थीं और अधिकांश चार से पांच मीटर लंबी किशोर अवस्था में थीं।
206 शार्क घायल थीं, जिनमें से 80.6 फीसदी चोटें मानवजनित कारणों से पाई गई। 58.3 फीसदी चोटें प्राकृतिक कारणों से (कुछ में दोनों प्रकार की चोटें थीं) हालांकि गंभीर चोटें (जैसे कटाव, अंग कटना या टक्कर से आंतरिक चोट) कम थीं (लगभग 17.7 फीसदी), लेकिन छोटी-छोटी सतही चोटें आम थीं।
मादा और वयस्क शार्क कहां हैं?
अध्ययन में ज्यादातर किशोर नर शार्क देखे गए, लेकिन मादा और बड़ी वयस्क शार्क दिखाई नहीं दीं। इसके पीछे वैज्ञानिकों का मानना है कि मादा और वयस्क शार्क आमतौर पर गहरे समुद्रों में रहना पसंद करती हैं, जहां वे क्रिल और झुंड में तैरने वाली मछलियां खाती हैं। जबकि युवा नर तटीय क्षेत्रों में रहते हैं।
पर्यटन से फायदा भी, खतरा भी
व्हेल शार्क पर्यटन स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक लाभ का बड़ा स्रोत बन सकता है। लेकिन यदि पर्यटन नियंत्रित तरीके से न किया जाए, तो यह शार्क के लिए खतरनाक बन सकता है।
आसान समाधान, बड़ा फर्क
वैज्ञानिकों ने कहा है कि कुछ साधारण बदलाव करके इन चोटों को काफी हद तक रोका जा सकता है। बगान्स में सुधार: जालों और नाव के हिस्सों से तेज या धारदार किनारों को हटाना।
पर्यटन नियम बनाए जाएं
नावों को शार्क से सुरक्षित दूरी पर रहने का नियम हो। स्थानीय गाइड्स और मछुआरों को प्रशिक्षित किया जाए। समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की निगरानी बढ़ाई जाए।
व्हेल शार्क न केवल समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं, बल्कि वे स्थानीय पर्यटन और अर्थव्यवस्था के लिए भी अनमोल हैं। इनकी रक्षा के लिए बड़े प्रयासों की जरूरत नहीं, कुछ छोटे सुधार, जैसे बगान डिजाइन में बदलाव और जागरूक पर्यटन, इन शांत दिग्गजों को सुरक्षित रख सकते हैं।