धब्बेदार तारे बताएंगे किन ग्रहों पर हो सकता है जीवन: शोध

वैज्ञानिकों का नया मॉडल न केवल ग्रहों के अध्ययन को अधिक सटीक बनाएगा, बल्कि जीवन की संभावना वाले ग्रहों को खोजने के लिए भी नई दिशा प्रदान करेगा।
मॉडल स्टारी-स्टारी-प्रोसेस तारों की छिपी हुई धुंधली स्थिति को उजागर करता है, बाह्यग्रहों के अध्ययन में मदद करता है तथा रहने योग्य ग्रहों की खोज करने में अहम।
मॉडल स्टारी-स्टारी-प्रोसेस तारों की छिपी हुई धुंधली स्थिति को उजागर करता है, बाह्यग्रहों के अध्ययन में मदद करता है तथा रहने योग्य ग्रहों की खोज करने में अहम।फोटो साभार: नासा का गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर
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मनुष्य हमेशा से यह जानने के लिए उत्सुक रहा है कि क्या हमारी धरती के अलावा कहीं और भी जीवन मौजूद है। आधुनिक विज्ञान ने इस खोज को और भी गहराई से समझने के साधन दिए हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जो दूर-दराज के तारों पर मौजूद धब्बों का अध्ययन करने में मदद करेगी। इस तकनीक का नाम स्टारी-स्टारी-प्रोसेस रखा गया है। इस खोज से न केवल तारों की सही तस्वीर सामने आएगी बल्कि जीवन की खोज में भी महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।

तारे और धब्बे क्या हैं?

सूर्य पर आपने अक्सर काले धब्बों के बारे में सुना होगा। ये वास्तव में सूर्य की सतह पर ठंडे और अंधेरे क्षेत्र होते हैं, जो अस्थायी होते हैं और समय-समय पर बदलते रहते हैं। इन्हें देखकर वैज्ञानिक सूर्य की गतिविधियों और उसके 11 वर्षीय चक्र (सोलर साइकिल) का अध्ययन करते हैं। इसी तरह, ब्रह्मांड के अन्य तारों पर भी ऐसे धब्बे मौजूद होते हैं।

इन धब्बों को स्टार स्पॉट्स कहा जाता है। ये तारे की रोशनी और ऊर्जा पर असर डालते हैं। अगर किसी तारे पर बहुत अधिक धब्बे हों, तो उसकी रोशनी असमान हो जाती है। यही वजह है कि वैज्ञानिकों के लिए ग्रहों का सही अध्ययन करना कठिन हो जाता है।

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मॉडल स्टारी-स्टारी-प्रोसेस तारों की छिपी हुई धुंधली स्थिति को उजागर करता है, बाह्यग्रहों के अध्ययन में मदद करता है तथा रहने योग्य ग्रहों की खोज करने में अहम।

ग्रहों की खोज और धब्बों की भूमिका

जब कोई ग्रह अपने तारे के सामने से गुजरता है, तो उस तारे की रोशनी थोड़ी देर के लिए कम हो जाती है। इस घटना को ट्रांजिट कहा जाता है। ट्रांजिट से वैज्ञानिक ग्रह का आकार, वजन और दूरी का पता लगाते हैं। लेकिन अगर तारे पर धब्बे हों, तो ट्रांजिट के दौरान उसकी रोशनी में अनियमित उतार-चढ़ाव दिखाई देते हैं। इससे यह समझना मुश्किल हो जाता है कि रोशनी में बदलाव ग्रह की वजह से हुआ है या तारे के धब्बों के कारण।

यहीं पर स्टारी-स्टारी-प्रोसेस मॉडल मदद करता है। यह न केवल ग्रह के गुजरने की प्रक्रिया का अध्ययन करता है बल्कि तारे के घूमने के दौरान आने वाले उतार-चढ़ाव को भी ध्यान में रखता है। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि तारे पर कितने धब्बे हैं, वे कहां स्थित हैं और उनकी गहराई कितनी है।

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जीवन की खोज क्यों प्रभावित होती है?

वैज्ञानिक अक्सर ग्रहों की वायुमंडल में पानी के वाष्प या अन्य रसायनों की खोज करते हैं। यह जीवन की संभावना का एक बड़ा संकेत माना जाता है। लेकिन समस्या यह है कि कभी-कभी तारे की वायुमंडल या उसके धब्बों से भी ऐसे ही संकेत मिल सकते हैं।

इसलिए जरूरी है कि पहले तारे को सही तरह से समझा जाए। तभी यह स्पष्ट हो पाएगा कि पानी या अन्य गैसों के संकेत वास्तव में ग्रह से आ रहे हैं या केवल तारे की वजह से दिखाई दे रहे हैं।

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टीओआई 3884 बी का अध्ययन

इस नई तकनीक को परखने के लिए वैज्ञानिकों ने टीओआई 3884 बी नामक ग्रह का अध्ययन किया। यह ग्रह लगभग 141 प्रकाश-वर्ष दूर कन्या या वर्गो तारामंडल में स्थित है। यहां विशाल मात्रा में गैस है, जो पृथ्वी से पांच गुना बड़ा और 32 गुना भारी है। इसके तारे टीओआई 3884 पर उत्तरी ध्रुव के पास धब्बों की बहुतायत पाई गई।

खास बात यह है कि यह तारा पृथ्वी की ओर झुका हुआ है, जिससे ग्रह का ट्रांजिट सीधे उन धब्बों के ऊपर से गुजरता है। यह अध्ययन साबित करता है कि नई तकनीक तारों के धब्बों की सही स्थिति और प्रकृति को समझने में मददगार है।

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भविष्य के मिशन और संभावनाएं

अभी तक यह मॉडल केवल दृश्य प्रकाश के आंकड़ों पर काम करता है। इसका मतलब है कि यह केवल उन्हीं डेटा सेट्स का विश्लेषण कर सकता है, जिन्हें नासा के टेस्स और पुराने केप्लर स्पेस टेलीस्कोप ने एकत्र किया है। लेकिन आने वाले समय में नासा का नया मिशन पैंडोरा इस तकनीक को और आगे बढ़ाएगा।

पैंडोरा उपग्रह विभिन्न तरंग धैर्य पर तारों और ग्रहों का लंबे समय तक अध्ययन करेगा। इसका उद्देश्य यह समझना है कि तारे की रोशनी ग्रह के वातावरण से गुजरते समय कैसे बदलती है। इससे वैज्ञानिकों को यह तय करने में मदद मिलेगी कि कौन-से संकेत ग्रह के वातावरण से हैं और कौन-से तारे की गतिविधियों के कारण है।

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द एस्ट्रोफिजिकल पत्रिका में प्रकाशित शोध हमें बताता है कि जीवन की खोज केवल ग्रहों पर आधारित नहीं हो सकती। हमें उन तारों को भी गहराई से समझना होगा जिनके चारों ओर ग्रह घूमते हैं। अगर तारे की प्रकृति सही तरीके से जानी जाएगी, तभी हम निश्चित कर पाएंगे कि कोई ग्रह वास्तव में रहने योग्य है या नहीं।

स्टारी-स्टारी-प्रोसेस जैसे मॉडल हमें यह भरोसा दिलाते हैं कि आने वाले सालों में जीवन की खोज और अधिक सटीक और प्रभावशाली होगी। यह तकनीक न केवल तारों की रहस्यमय सतहों को उजागर करेगी बल्कि हमें यह जानने में भी मदद करेगी कि हम ब्रह्मांड में अकेले हैं या नहीं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि विज्ञान की हर नई खोज हमें यह एहसास दिलाती है कि ब्रह्मांड कितना विशाल और रहस्यमय है। शायद एक दिन हम उन दूरस्थ ग्रहों पर जीवन का असली प्रमाण खोज लें।

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