
हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति लंबे समय से खगोलविदों के लिए रहस्य बना हुआ है। अब एक नई खोज ने इसके "दिल" यानी कोर के बारे में हमारी पुरानी धारणाओं को बदल दिया है। पहले यह माना जाता था कि बृहस्पति के अंदर का ढांचा एक भयानक टक्कर के कारण बना होगा, लेकिन रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है।
बृहस्पति का कोर ठोस नहीं धुंधला है
नासा के जूनो यान ने जब पहली बार बृहस्पति के आंतरिक ढांचे की तस्वीरें भेजीं, तो खगोलविदों को पता चला कि ग्रह का कोर वैसा ठोस और स्पष्ट सीमाओं वाला नहीं है जैसा पहले सोचा गया था। इसके बजाय यह एक धुंधला या फैला हुआ कोर है। इसमें भारी तत्व (जैसे चट्टान और बर्फ) धीरे-धीरे हल्के तत्वों (हाइड्रोजन और हीलियम) में मिल जाते हैं।
यह ढांचा कैसे बना, यह वर्षों से खगोलविदों के लिए एक बड़ा सवाल रहा है।
क्या एक टक्कर ने बदला बृहस्पति का कोर?
पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि अरबों साल पहले एक छोटे ग्रह ने बृहस्पति से टकराकर उसके भीतर भारी और हल्के पदार्थों को मिला दिया होगा। इस विचार को परखने के लिए ब्रिटेन की डरहम यूनिवर्सिटी, नासा, सेटी और ओस्लो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सुपरकंप्यूटर की मदद से बड़े पैमाने पर सिमुलेशन किए।
उन्होंने डरहम यूनिवर्सिटी के सुपरकंप्यूटर और आधुनिक स्विफ्ट सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया, जो ऐसी खगोलीय घटनाओं को बेहद बारीकी से दिखा सकते हैं। सिमुलेशन के परिणाम चौंकाने वाले थे। शोध में पाया गया कि चाहे कितनी भी जबरदस्त टक्कर हो, उससे बृहस्पति के अंदर स्थिर और फैला हुआ कोर नहीं बनता।
इसके बजाय हुआ यह कि टक्कर से अलग हुए भारी पदार्थ (जैसे चट्टान और बर्फ) कुछ समय बाद फिर नीचे जाकर एक स्पष्ट सीमा बना लेते हैं। यानी ऐसा ढांचा बन ही नहीं सकता जैसा कि जूनो ने बृहस्पति के अंदर देखा।
🌌 धीरे-धीरे विकास की प्रक्रिया
इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि बृहस्पति का धुंधला कोर किसी टक्कर से नहीं बना, बल्कि उसके धीरे-धीरे बढ़ने और विकसित होने की प्रक्रिया से बना है। जब यह ग्रह बन रहा था, उस समय भारी और हल्के तत्व परतों के बीच धीरे-धीरे मिलते गए और आज का ढांचा बना।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि शनि का कोर भी वैसा ही धुंधला पाया गया है। इससे यह धारणा और मजबूत होती है कि यह कोई अनोखी घटना नहीं, बल्कि गैस विशाल ग्रहों की सामान्य विकास प्रक्रिया है।
🌌 क्यों है यह खोज अहम ?
यह खोज केवल बृहस्पति और शनि तक सीमित नहीं है। हमारे सौरमंडल से बाहर भी कई बृहस्पति और शनि जैसे ग्रह खोजे गए हैं। अगर धुंधला कोर एक सामान्य प्रक्रिया है, तो संभव है कि इन दूर-दराज के ग्रहों के भी जटिल और मिश्रित आंतरिक ढांचे हों। इससे वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलेगी कि आखिर ग्रह कैसे बनते और विकसित होते हैं।
🌌 क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
डरहम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक के मुताबिक, सिमुलेशन दिखाते हैं कि टक्कर ग्रह को हिला तो सकती है, लेकिन उससे वैसा ढांचा नहीं बनता जैसा आज बृहस्पति में है। शनि में भी धुंधला कोर होना यह साबित करता है कि यह ग्रहों के धीरे-धीरे बढ़ने का परिणाम है, न कि किसी दुर्लभ टक्कर का। ग्रहों की कहानियों में टक्करों का अहम रोल है, लेकिन वे सबकुछ नहीं समझा सकतीं।
बृहस्पति का रहस्य अब कुछ हद तक सुलझा है। इसका कोर किसी विशाल टक्कर से नहीं, बल्कि अरबों सालों की विकास यात्रा से बना है। यह खोज न केवल हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह को समझने में मदद करती है, बल्कि पूरे ब्रह्मांड के अनगिनत गैस वाले विशाल ग्रहों की आंतरिक संरचना पर भी नई रोशनी डालती है।
यह साबित हो गया है कि बृहस्पति का कोर एक विशाल टक्कर से नहीं बना, बल्कि उसके लंबे विकास के दौरान भारी और हल्के तत्वों के धीरे-धीरे मिल जाने से बना है। यही प्रक्रिया शायद पूरे ब्रह्मांड में आम हो।