
ग्रहीय प्रणालियों में चुंबकीय क्षेत्र एक अहम भूमिका निभाता है, हालांकि इसे कमतर आंका जाता है। एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र के बिना, ग्रह मंगल ग्रह की तरह बंजर भूमि में बदल सकते हैं, या वे अप्रत्यक्ष रूप से विशाल तूफानों को प्रभावित कर सकते हैं, जैसा कि बृहस्पति पर देखा जा सकता है।
हालांकि ग्रहों के चुंबकीय क्षेत्रों के बारे में वर्तमान समझ हमारे सौर मंडल के आठ ग्रहों तक ही सीमित है, क्योंकि अभी तक बाह्यग्रह के चुंबकीय क्षेत्रों पर अधिक आंकड़े एकत्र नहीं किए जा सके हैं। यूरोप, अमेरिका, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार किए गए एक नए प्रीप्रिंट पेपर के अनुसार, यह स्थिति अब बदलने वाली है।
बाह्यग्रह या एक्सोप्लैनेट वे ग्रह हैं जो हमारे सौर मंडल के बाहर के तारों की परिक्रमा करते हैं। इन्हें सौरमंडल के बाहर के ग्रह भी कहा जाता है।
अरक्षिव प्रीप्रिंट सर्वर में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार, वैज्ञानिकों के द्वारा बाह्यग्रहों के चुंबकीय क्षेत्रों पर आंकड़े एकत्र करने के दो मुख्य तरीके अपनाए जा सकते हैं। पहला है हान्ले और जीमन प्रभाव नामक दो "प्रभावों" का उपयोग करके प्रत्यक्ष पता लगाना। दूसरा है अप्रत्यक्ष, जिसमें किसी तारे के वायुमंडल में "हॉट स्पॉट" का उपयोग किया जाता है।
प्रत्यक्ष पता लगाने के लिए, किसी वेधशाला को ग्रह के वायुमंडल से होकर गुजरने वाले फोटॉनों पर नजर रखनी होगी क्योंकि वह पारगमन कर रहा होता है। क्योंकि पारगमन बाह्यग्रहों का पता लगाने के शुरुआती तरीकों में से एक है, इसलिए इन घटनाओं पर पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध होने चाहिए। इन फोटॉनों के साथ, शोधकर्ता हान्ले और जीमन प्रभावों के लिए उनका विश्लेषण कर सकते हैं।
हान्ले प्रभाव तब होता है जब प्रकाश किसी चुंबकीय क्षेत्र से प्रभावित होता है, विशेष रूप से वह जो सीधी रेखा के लंबवत हो। ये ध्रुवीकृत प्रकाश की किरणें ग्रह के वायुमंडल में हीलियम परमाणुओं द्वारा अवशोषित की जा सकती हैं I
अहम बात यह है कि यह प्रभाव अपेक्षाकृत कमजोर चुंबकीय क्षेत्रों के लिए भी मौजूद है, इसलिए इसका उपयोग पृथ्वी से भी कमजोर चुंबकीय क्षेत्रों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है, हालांकि क्षेत्र का विन्यास इस बात में अहम भूमिका निभाता है कि वह किस तीव्रता को माप पाता है।
ध्रुवीकरण जीमन प्रभाव में भी एक भूमिका निभाता है, लेकिन एक निश्चित दिशा में रैखिक ध्रुवीकरण के बजाय, जीमन प्रभाव हान्ले प्रभाव में उपयोग होने वाला रैखिक ध्रुवीकरण के बजाय वृत्ताकार ध्रुवीकरण पर गौर करता है।
किसी बाह्यग्रह के चुंबकीय क्षेत्र से गुजरने वाला प्रकाश वेधशाला की दृष्टि रेखा के साथ शामिल करने वाली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा वृत्ताकार रूप से ध्रुवीकृत हो सकता है, जो हान्ले प्रभाव उत्पन्न करने वाली लंबवत चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ अच्छी तरह मेल खाता है।
इन दोनों प्रभावों के मिलने से किसी बाह्यग्रह के चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति और दिशा का अपेक्षाकृत स्पष्ट चित्र हासिल किया जा सकता है। एक अतिरिक्त फायदा यह है कि क्योंकि वे विभेदक माप का उपयोग करते हैं, इसलिए तारे से ही फोटॉन जैसे संभावित रूप से भ्रमित करने वाले आंकड़ों को निकालना आसान होता है।
हालांकि उन फोटॉनों को बाह्यग्रह के वायुमंडल से गुजरना होता है, इसलिए उनकी संख्या भी बहुत अधिक नहीं होती है, इसलिए यह तकनीक केवल उन बड़े ग्रहों के साथ काम करती है जो तारे के करीब होते हैं।
बुध भी हमारे सूर्य की आल्फवेन सतह के भीतर नहीं है, जो आमतौर पर तारे की सतह से 10 से 20 सौर त्रिज्याओं के बीच होती है। हालांकि अब तक खोजे गए अधिकांश बाह्यग्रह अपने मूल तारे के बहुत करीब परिक्रमा करते हैं, इसलिए यह कोई नुकसानदेह नहीं है।
शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि हैबिटेबल वर्ल्ड्स ऑब्जर्वेटरी (एचडब्ल्यूओ) जैसे भविष्य के मिशन इन संभावित चुंबकीय क्षेत्रों का विश्लेषण करने के लिए आवश्यक आंकड़े एकत्र करने में सफल होंगे।
इसका मतलब यह नहीं है कि वर्तमान वेधशालाएं प्रबल चुंबकीय क्षेत्रों के साथ कुछ शुरुआती कार्य नहीं कर सकतीं, लेकिन यह देखते हुए कि एचडब्ल्यूओ कम से कम अगले 15 सालों तक प्रक्षेपित नहीं होगा, हमें अपने स्वयं की प्रणाली के बाहर के ग्रहों के चुंबकीय क्षेत्रों की बेहतर समझ हासिल करने में कुछ समय लग सकता है।