शोध में पाया गया कि कीटनाशक और भारी धातु के प्रदूषण ने मिट्टी की जैव विविधता को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है।
शोध में पाया गया कि कीटनाशक और भारी धातु के प्रदूषण ने मिट्टी की जैव विविधता को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है।फोटो साभार: एफएओ

जलवायु परिवर्तन से भी खतरनाक है मिट्टी का प्रदूषण, जैव विविधता को पहुंचा रहा है भारी नुकसान: अध्ययन

मिट्टी के प्रदूषण से केंचुए, कीड़े और घुन सभी जीवों को खतरा है और वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि इससे होने वाले नुकसान के बारे में बहुत कम जानकारी है।
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एक नए शोध में पाया गया कि जमीन के अंदर रहने वाले जीवों में गिरावट आने का सबसे बड़ा कारण मिट्टी का प्रदूषण है। इस खोज ने वैज्ञानिकों को अचंभे में डाल दिया दिया है, जिन्होंने इस बात के आसार जताए थे कि अंधाधुंद खेती और जलवायु परिवर्तन इस तरह की समस्याओं को बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि भूमि के ऊपर, भूमि उपयोग, जलवायु परिवर्तन और आक्रामक प्रजातियों का जैव विविधता पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए हमने मान लिया था कि यह जमीन के नीचे भी ऐसा ही होगा।

हालांकि शोध के परिणाम बताते हैं कि ऐसा नहीं है। इसके बजाय शोध में पाया गया कि कीटनाशक और भारी धातु के प्रदूषण ने मिट्टी की जैव विविधता को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। यह चिंताजनक है, क्योंकि मिट्टी के प्रदूषण के प्रभावों पर बहुत अधिक शोध नहीं हुआ है, इसलिए इसके प्रभाव जितना हम जानते हैं, उससे कहीं ज्यादा हो सकते हैं।

मिट्टी का क्षरण को लेकर चिंता के बीच, इस बात की जांच पड़ताल करने की जरूरत है कि प्रदूषण के अन्य स्रोत, जैसे माइक्रोप्लास्टिक, हाइड्रोकार्बन और स्थायी केमिल, जमीन पर रहने वाले जीवन पर क्या असर डाल रहे हैं।

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मिट्टी में रहने वाले गुप्त जीवन पर असर

जमीन के ऊपर के जीवन की तुलना में, मिट्टी में रहने वाले जीवों के बारे में अपेक्षाकृत बहुत कम जानकारी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि, नीचे रहने वाले जीवों को खोजने में कठिनाई के अलावा, मिट्टी वास्तव में कई आवासों से बनी होती है जो एक दूसरे के ऊपर होते हैं।

शोधकर्ता ने कहा, मिट्टी केवल ढेर नहीं है। यह एक जटिल वातावरण है जिसमें कई अलग-अलग संरचनाएं, पोषक तत्व और खनिज होते हैं। जबकि ज्यादातर जीवन सतह से 10 सेंटीमीटर के भीतर पाए जाते हैं, कुछ जीव बहुत गहराई में रह सकते हैं।

इसका मतलब यह है कि जब यह पता लगाने की बात आती है कि मिट्टी में रहने वाले जीव कैसे काम कर रहे हैं, तो बहुत सारे सवाल सामने आते हैं। जबकि यह ज्ञात है कि आवास विनाश ऊपर की जैव विविधता पर सबसे बड़े प्रभावों में से कुछ एक है।

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आई-साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित इस नए शोध में इस बात को समझने के लिए, टीम ने मेटा-विश्लेषण किया। इसमें वैज्ञानिक कई मौजूदा अध्ययनों से आंकड़े लेते हैं और उनका फिर से विश्लेषण करते हैं ताकि नए सवालों के जवाब खोजे जा सकें, जिन पर मूल शोध में गौर नहीं किया गया था।

इस मेटा-विश्लेषण के लिए, शोधकर्ताओं की टीम ने 600 से अधिक अध्ययनों के आंकड़ों का फिर से उपयोग किया, जिसमें हजारों अलग-अलग डेटापॉइंट शामिल थे, ताकि यह देखा जा सके कि दुनिया भर में मिट्टी के स्वास्थ्य पर इंसानों का क्या असर पड़ रहा है।

शोध के परिणामों के आधार पर, जमीन के ऊपर और नीचे के जीव आम तौर पर एक ही मुद्दे पर बहुत अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं।

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जहां जमीन के ऊपर जंगल नष्ट हो रहा होता है वहां के पौधों और रहने वाले जानवरों के लिए यह विनाशकारी हो सकता है। शोधकर्ताओं का इस बारे में पूर्वानुमान कि जमीन के नीचे रहने वाले जीव भी प्रभावित होंगे, यह साबित नहीं हो पाया। इसके बजाय, ऐसा लगता है कि मिट्टी एक बफर प्रदान करती है, जिससे उसमें रहने वाले जीवों को कुछ बदलावों के प्रति ढलने में मदद मिलती है।

शोध में कहा गया है कि मिट्टी नमी और पोषक तत्वों को जमा कर सकती है, जो बहुत छोटी अवधि के दौरान जमीन के अंदर रहने वाले जीवों को बदलावों का सामना करने में मदद कर सकती है। उदाहरण के लिए, जबकि जलवायु परिवर्तन सतह पर अधिक से अधिक प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है, इसके जमीन के अंदर प्रभाव अभी सीमित प्रतीत होते हैं। हालांकि लंबे समय से इनका प्रभाव कम ही जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह बफरिंग प्रभाव केवल मिट्टी में रहने वाले जीवों के लिए अस्थायी राहत प्रदान कर सकता है।

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जबकि ज्यादातर बदलाव, जैसे कि बढ़ता तापमान या रासायनिक प्रदूषण, मिट्टी की जैव विविधता के लिए कुछ बुरे और कुछ अच्छे भी थे। सबसे अहम यह है कि जैविक खाद और गीली घास का उपयोग, जो मिट्टी में अधिक कार्बन के लिए जाना जाता है। यह केंचुओं के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जो पोषक तत्वों को खाते हैं और उन्हें मिट्टी में चक्रित करते हैं।

हालांकि इस अध्ययन ने मिट्टी को प्रभावित करने वाले बदलावों के बारे में गहन जानकारी दी है। शोध टीम ने शोध के हवाले से उम्मीद जताई है कि भविष्य के शोध इस बात पर गौर करेंगे कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसे कारणों और दोनों के मिले-जुले प्रभावों को कैसे बढ़ा या सीमित कर सकते हैं।

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