एक नए शोध में पाया गया है कि उच्च गुणवत्ता वाली कृषि भूमि की मिट्टी गर्म जलवायु के जवाब में नुकसान को सीमित करके पैदावार बढ़ाने में मदद करती है।
एबरडीन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीट स्मिथ सहित विशेषज्ञों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया कि मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार से फसल उत्पादन में जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाली कमी को 20 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
अध्ययन में चीन, ब्रिटेन और जर्मनी के अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि कैसे मिट्टी की गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन के परस्पर क्रिया से कृषि भूमि की उपज पर असर पड़ता है।
चीन के कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और मुख्य अध्ययनकर्ता मिंगशेंग फैन ने बताया कि भोजन की मांग को पूरा करने के लिए 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन में अनुमानित 60 से 100 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है।
हालांकि कृषि को पहले से कहीं अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन और मिट्टी का क्षरण सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है, यह न केवल फसल उत्पादन की क्षमता को रोकता है, बल्कि बड़ी अस्थिरता भी पैदा करता है।
टीम का सुझाव है कि मिट्टी की गुणवत्ता, जिसे फसल को पोषक तत्व और पानी प्रदान करने के लिए जाना जाता है, इसे मिट्टी की क्षमता के रूप में भी परिभाषित किया गया है। मिट्टी की गुणवत्ता जलवायु परिवर्तन के अनुरुप ढलना और भविष्य की खाद्य सुरक्षा दोनों का समाधान है।
अध्ययनकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि मिट्टी की गुणवत्ता पर सही जानकारी न होने और जलवायु परिवर्तन के परस्पर प्रभाव बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के सामने खाद्य सुरक्षा की चुनौती को बढ़ाएगी।
प्रोफेसर मिंगशेंग फैन ने कहा कि फसलों और पर्यावरणीय परिस्थितियों में, उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी ने जलवायु परिवर्तनशीलता के लिए फसल की उपज की संवेदनशीलता को कम किया है, जिससे अधिक स्थिर फसल की पैदावार हुई। निम्न-गुणवत्ता वाली मिट्टी की तुलना में जलवायु परिवर्तन के तहत पैदावार के परिणाम में भी सुधार हुआ।
रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के प्रोफेसर टिम बेंटन ने कहा मिट्टी की गुणवत्ता को बहाल करने और बढ़ाने के लिए, कृषि के विकास के साथ हाल ही में मिट्टी की गुणवत्ता पर बहुत ध्यान दिया गया है।
यह अध्ययन इस बारे में जानकारी प्रदान करता है कि मिट्टी के बेहतर प्रबंधन से पैदावार में वृद्धि होगी, साथ ही कार्बन अनुक्रम में सुधार, जल धारण क्षमता और मिट्टी की जैव विविधता में भी सुधार होगा।
पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च और सह-अध्ययनकर्ता डॉ क्रिस्टोफ मुलर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन अनुसंधान में, मिट्टी को अक्सर कार्बन पूल माना जाता है जो जलवायु परिवर्तन और प्रबंधन का जवाब देता है। हालांकि मिट्टी की गुणवत्ता का महत्व भूमि उत्पादकता के लिए और इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन को अलग करने की क्षमता पर अब तक बहुत अधिक ध्यान नहीं किया गया है।
एबरडीन विश्वविद्यालय से पौधे और मिट्टी विज्ञान में अध्यक्ष प्रोफेसर पीट स्मिथ ने समझाया कि इस अध्ययन से पता चलता है कि मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने और बढ़ते तापमान के बुरे प्रभावों से बचने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति होगी। यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है।