जलवायु परिवर्तन: तेजी से कम हो रही है मिट्टी की नमी, पेड़-पौधों पर पड़ेगा असर

शोधकर्ताओं की टीम ने पता लगाया कि कैसे ऊर्जा और पानी की उपलब्धता में एक साथ आने वाले बदलाव दुनिया भर में वनस्पति के कामकाज को प्रभावित करते हैं।
जलवायु परिवर्तन: तेजी से कम हो रही है मिट्टी की नमी, पेड़-पौधों पर पड़ेगा असर
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भोजन और पानी की सुरक्षा तथा कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के अवशोषण के लिए स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक हैं। पारिस्थितिक तंत्र का कार्य मिट्टी की नमी की उपलब्धता पर निर्भर है, फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि जलवायु परिवर्तन वनस्पति पर मिट्टी की नमी की सीमा को किस तरह बदलेगा।

अब एक नए अध्ययन से पता चला है कि भविष्य में पारिस्थितिकी तंत्र का कामकाज तेजी से कम होते पानी की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। जलवायु मॉडल से हाल के सिमुलेशन का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने कई ऐसे इलाके ढूंढे हैं जहां लंबे समय तक पानी की कमी पारिस्थितिक तंत्र पर गहरा असर डाल रही है।

इनमें मध्य यूरोप, अमेजन और पश्चिमी रूस शामिल हैं। ऐसे क्षेत्रों को सामने लाना आवश्यक है जो स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र और समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि वे कई प्रमुख सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे कि भोजन और पानी की सुरक्षा, मानव गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करना तथा वाष्पीकरणीय के जरिए ठंडे होने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना।

जलवायु परिवर्तन पौधों के लिए ऊर्जा और पानी की उपलब्धता में बदलाव लाता है। जबकि ग्लोबल वार्मिंग के बाद दुनिया भर में ऊर्जा की उपलब्धता लगातार बढ़ रही है, जबकि भविष्य में क्षेत्रीय जल की उपलब्धता पर अनिश्चितता के बादल छाए हैं।

एक नए अध्ययन में जर्मनी, नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं की टीम ने पता लगाया कि कैसे ऊर्जा और पानी की उपलब्धता में ये एक साथ आने वाले बदलाव दुनिया भर में वनस्पति के कामकाज को प्रभावित करते हैं। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने 1980 से 2100 के वर्षों को शामिल करते हुए कई अत्याधुनिक अर्थ सिस्टम मॉडल से भविष्य के जलवायु सिमुलेशन का विश्लेषण किया।

अध्ययनकर्ता डॉ. जैस्पर डेनिसन ने कहा कि इस प्रकार उन्होंने वैश्विक वनस्पति की ऊर्जा और जल-सीमा में आने वाले बदलाव की गणना की। इसमें पाया कि विश्व स्तर पर पारिस्थितिक तंत्र तेजी से पानी की कमी के कारण प्यासे हो रहे हैं। डॉ. डेनिसन जर्मनी में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर बायोकेमिस्ट्री में शोधकर्ता हैं।

स्वस्थ वनस्पति को सौर विकिरण से पर्याप्त ऊर्जा और मिट्टी को पानी की आवश्यकता होती है। यह वनस्पति को प्रकाश संश्लेषण करने, बढ़ने और इस प्रकार बाष्पीकरणीय के माध्यम से ठंडक प्रदान करने में मदद करते हैं। यह प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण के दौरान होती है, पत्ती की सतह पर छोटे-छोटे छिद्र, जिन्हें रंध्र कहा जाता है, जो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) खींचने के लिए खुलते हैं।

उसी समय, पत्तियों के अंदर से पानी रंध्रों के माध्यम से वायुमंडल में वाष्पित हो जाता है, इस प्रकार एक ठंडक देने वाला प्रभाव प्रदान होता है। यह ठंडक विशेष रूप से लू या हीट वेव के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह बहुत गर्म तापमान, चरम सीमा और संबंधित गर्मी से होने वाले तनाव को कम करने में मदद कर सकता है। साथ ही यह ठंड गर्मी की वजह से होने वाली मौतों को कम कर सकती है।

पानी पर बढ़ती निर्भरता का अलग-अलग तरीकों से होने का अनुमान है। न केवल पहले से ही पानी की कमी पारिस्थितिक तंत्रों में पानी पर निर्भरता बढ़ाती है, बल्कि कई क्षेत्र जहां पारिस्थितिक तंत्र पहले ऊर्जा की कमी से जूझ रहे थे, वास्तव में पानी की सीमा के मुताबिक बदल जाते हैं। अध्ययन के अनुसार 1980 की तुलना में 2100 में हमारी भूमि की सतह का अतिरिक्त 60 लाख वर्ग किमी पानी कम हो जाएगा। यह प्रभाव न केवल अंतरिक्ष में होता है, यह समय के आधार पर भी होता है। अध्ययन किए गए क्षेत्र के लगभग आधे हिस्से में पानी की कमी की अवधि हर साल दो महीने तक बढ़ जाएगी।

अध्ययनकर्ता डॉ. रेने ऑर्थ कहते हैं कि अंतरिक्ष और समय के मुताबिक वनस्पति में पानी को लेकर आने वाले ये बदलाव बड़े इलाकों में लगातार लंबी अवधि के दौरान वनस्पति को प्यासा छोड़ देते हैं। यह वनस्पति के कामकाज को प्रभावित कर सकता है और फलस्वरूप समाज के लिए उनकी सेवाओं की गुणवत्ता और मात्रा को प्रभावित कर सकता है।

यह पारिस्थितिकी तंत्र के कामकाज और सेवाओं को बनाए रखने के लिए कृषि या वानिकी प्रबंधन प्रथाओं में ढलने हेतु  जलवायु परिवर्तन के लिए पारिस्थितिक तंत्र की प्रतिक्रिया को समझने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है।

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