हर साल 50 हजार वर्ग किलोमीटर की दर से बढ़ रहा है सूखा, घातकता बढ़ने के और आसार

अध्ययन करने वालों ने 1980 से लेकर 2018 के बीच सूखे का मॉडल तैयार करने के बाद एक रिपोर्ट जारी की है
यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के संवेदनशील क्षेत्रों में कई सालों तक सूखा और तीव्र जल संकट पैदा हो रहा है।
यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के संवेदनशील क्षेत्रों में कई सालों तक सूखा और तीव्र जल संकट पैदा हो रहा है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि 1980 के बाद से लगातार हर साल सूखे की समस्या बढ़ती जा रही है, जिसके जलवायु में बदलाव के साथ और ज्यादा बढ़ने के आसार हैं। यह अध्ययन स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट, स्नो एंड लैंडस्केप रिसर्च (डब्ल्यूएसएल) की अगुवाई में किया गया है।

दुनिया भर की सार्वजनिक रूप से उपलब्ध 40 सालों की जानकारी के आधार पर यह अध्ययन किया गया है। इसमें पहले 'अनदेखी' घटनाओं का भी पता लगाया गया है।

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यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के संवेदनशील क्षेत्रों में कई सालों तक सूखा और तीव्र जल संकट पैदा हो रहा है।

पंद्रह साल तक लगातार चले विनाशकारी भीषण सूखे ने चिली के जल भंडार को लगभग सुखा दिया है, यहां तक कि देश के महत्वपूर्ण खनन उत्पादन को भी प्रभावित किया है। यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के संवेदनशील क्षेत्रों में कई सालों तक सूखा और तीव्र जल संकट पैदा हो रहा है।

अध्ययन में कहा गया है कि सूखे का पता तभी चलता है जब वह खेती को नुकसान पहुंचाता है या जिसके कारण जंगल स्पष्ट रूप से प्रभावित होते हैं। इस तरह, कुछ अहम सवाल उठते हैं, क्या हम लगातार अत्यधिक कई सालों तक बरकरार सूखे की पहचान कर सकते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र पर उनके प्रभावों का पता लगा सकते हैं? और हम पिछले चालीस सालों के सूखे के पैटर्न से क्या सीख सकते हैं?

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यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के संवेदनशील क्षेत्रों में कई सालों तक सूखा और तीव्र जल संकट पैदा हो रहा है।

अध्ययन के मुताबिक, इन सवालों के जवाब देने के लिए, स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट, स्नो एंड लैंडस्केप रिसर्च (डब्ल्यूएसएल) और इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रिया (आईएसटीए) के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में मौसम संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया है और 1980 से 2018 के बीच सूखे का मॉडल तैयार किया। उन्होंने कई सालों के सूखे में भारी वृद्धि देखी जो लंबे, अधिक लगातार और अधिक चरम होते गए और जिसने अधिक खेती की जमीन को कवर किया।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि 1980 के बाद से हर साल, सूखाग्रस्त क्षेत्र औसतन 50 हजार वर्ग किलोमीटर तक फैल गए हैं। जिससे पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि और ऊर्जा उत्पादन को भारी नुकसान हुआ है। टीम का लक्ष्य दुनिया भर में लगातार सूखे के संभावित लंबे समय के प्रभावों को सामने लाना और भविष्य में अधिक लगातार और भीषण सूखे के लिए नीति तैयार करने में मदद करना है।

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चरम सूखे का खुलासा

साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, अंतर्राष्ट्रीय टीम ने जलवायु के आंकड़ों का उपयोग किया साथ ही बारिश और वाष्पोत्सर्जन में विसंगतियों की गणना की। मिट्टी और पौधों से पानी का वाष्पीकरण और दुनिया भर में प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों पर उनके प्रभाव का आकलन किया।

अध्ययन किए गए और कम सुलभ क्षेत्रों में कई सालों तक चलने वाली सूखे की चटनाओं का पता चला, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय जंगलों और एंडीज जैसे क्षेत्रों में, जहां अवलोकन के लिए बहुत कम आंकड़े उपलब्ध है।

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पिछले चालीस सालों में समशीतोष्ण घास के मैदान सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, बोरियल और उष्णकटिबंधीय जंगल सूखे का अधिक प्रभावी ढंग से सामना करते दिखाई दिए और यहां तक कि सूखे की शुरुआत के दौरान विरोधाभासी प्रभाव भी दिखाई दिया। लेकिन ये जंगल जलवायु परिवर्तन के कठोर प्रहार का कितने समय तक सामना कर सकते हैं?

पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव

लगातार बढ़ते तापमान, लंबे समय तक सूखा और भारी वाष्पोत्सर्जन के कारण आखिर कार पारिस्थितिकी तंत्र शुष्क और भूरे हो जाते हैं, जबकि इसके कारण भारी बारिश भी होती है। इस प्रकार, वैज्ञानिक समय के साथ वनस्पति की हरियाली में होने वाले बदलावों पर नजर रख कर सूखे के प्रभाव की निगरानी के लिए उपग्रह चित्रों का उपयोग कर सकते हैं।

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उष्णकटिबंधीय जंगल सूखे के अपेक्षित प्रभावों को कम कर सकते हैं जब तक कि उनके पास बारिश में कमी को कम करने के लिए पर्याप्त जल भंडार हो, बोरियल जंगल और टुंड्रा अपने अलग तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं। यह पता चला है कि गर्म होती जलवायु बोरियल विकास के मौसम को बढ़ाती है, क्योंकि इन क्षेत्रों में वनस्पति विकास पानी की उपलब्धता के बजाय कम तापमान से सीमित होता है।

सूखा समय और स्थान के साथ विकसित होते हैं

अध्ययन के परिणामों से पता चलता है कि भयंकर सूखे के तीव्र होने की प्रवृत्ति स्पष्ट है, टीम ने सूखे और वनस्पति पर उनके प्रभाव की पहली वैश्विक और वैश्विक रूप से सुसंगत तस्वीर उच्च रिज़ॉल्यूशन पर तैयार की गई है। हालांकि धरती और उसके पारिस्थितिकी तंत्र पर लंबे समय के प्रभाव काफी हद तक अनजान हैं।

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यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के संवेदनशील क्षेत्रों में कई सालों तक सूखा और तीव्र जल संकट पैदा हो रहा है।

लेकिन लंबे समय तक अत्यधिक पानी की कमी की स्थिति में, उष्णकटिबंधीय और बोरियल क्षेत्रों में पेड़ खत्म हो सकते हैं, जिससे इन पारिस्थितिकी तंत्रों को लंबे समय तक नुकसान हो सकता है।

विशेष रूप से, बोरियल वनस्पति को इस तरह की जलवायु आपदा से उबरने में सबसे अधिक समय लगेगा। शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई हैं कि टीम के परिणाम सूखे के बारे में हमारी धारणा को बदलने और उनके लिए तैयारी करने के तरीके में मदद करेंगे।

वर्तमान में, सूखे को कम करने की रणनीतियां बड़े पैमाने पर सूखे को वार्षिक या मौसमी घटनाओं के रूप में मानती हैं, जो भविष्य में हमारे सामने आने वाले लंबे और अधिक गंभीर भारी सूखे के विपरीत है।

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यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के संवेदनशील क्षेत्रों में कई सालों तक सूखा और तीव्र जल संकट पैदा हो रहा है।

अध्ययन के मुताबिक, सूखे की सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूची जारी की जा रही हैं, उससे नीति निर्माताओं को अधिक गहन तैयारी और रोकथाम के उपायों में मदद मिलेगी।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि वे पेलिसियोटी पहाड़ों में भारी सूखे के प्रभावों और ग्लेशियर इनसे कैसे निपट सकते हैं, इसकी भी जांच करना चाहती हैं।

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