एक साल में 52 बार पड़ा भीषण सूखा, धरती ने किया तीन दुर्लभ संयोग का सामना: रिपोर्ट

ताजा ग्लोबल ड्राउट- सितंबर 2024 के मुताबिक दुनिया भर में तापमान और बारिश में भारी विसंगतियां रिकॉर्ड की गई
वर्तमान में दुनिया की 40 प्रतिशत भूमि खराब हो चुकी है, जिसका सीधा असर 3.2 अरब लोगों पर पड़ रहा है। 2050 तक दुनिया की आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा सूखे से प्रभावित हो सकता है।
वर्तमान में दुनिया की 40 प्रतिशत भूमि खराब हो चुकी है, जिसका सीधा असर 3.2 अरब लोगों पर पड़ रहा है। 2050 तक दुनिया की आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा सूखे से प्रभावित हो सकता है।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स
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साल 2023 के अगस्त माह से लेकर जुलाई 2024 के दौरान मौसम संबंधी कई ऐसी घटनाएं हुई, जिसने यह साबित कर दिया कि जलवायु परिवर्तन अनुमान से ज्यादा तेजी दिखा रहा है। यूरोपीय आयोग की एक ताजा रिपोर्ट में विचलित करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। जो बताते हैं कि धरती पर न केवल तापमान बढ़ रहा है, बल्कि बारिश में भी घोर असमानता दिखने को मिल रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2024 में वैश्विक औसत तापमान 17.16 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जो ऐतिहासिक था और इस भीषण गर्मी की वजह से मिट्टी की नमी लगभग समाप्त हो गई। इसका असर दुनिया के कई इलाकों में पेड़ पौधों व जैवविविधता पर पड़ा।

यहां तक असमान्य बारिश की वजह से अमेजन, ला प्लाटा और जाम्बेजी जैसी प्रमुख नदी घाटियों में पानी का प्रवाह सामान्य से कम हो गया।

रिपोर्ट बताती है कि इस साल के दौरान तीन प्रमुख जलवायु घटनाओं का अजब संयोग होने के कारण ऐसा हुआ। इसमें अल नीनो, हिंद महासागर डिपोल का सकारात्मक चरण और उष्णकटिबंधीय उत्तरी अटलांटिक का गर्म चरण शामिल था।

इस दुर्लभ संयोग की वजह से जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ दक्षिण अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका और भूमध्य सागर और पूर्वी यूरोप के कुछ हिस्सों में सूखे में बढ़ोतरी करने में अहम भूमिका निभाई

यूरोपीय आयोग के संयुक्त अनुसंधान केंद्र (जेआरसी) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट "ग्लोबल ड्राउट- सितंबर 2024", में तापमान और बारिश संबंधी विसंगतियों की गंभीरता को सामने लाया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के कई हिस्सों में कहीं ज्यादा बढ़ते तापमान संबंधी विसंगतियों का अनुभव किया गया। जुलाई 2024 में ये विसंगतियां उत्तर-पश्चिमी -उत्तरी अमेरिका, पूर्वी कनाडा, भूमध्यसागरीय, पूर्वी यूरोप, दक्षिण-पूर्वी और मध्य अफ्रीका, ईरान, पश्चिमी और मध्य रूस, जापान और अंटार्कटिका में तीन डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गईं।

रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के दौरान, कुल 52 लंबी अवधि की मौसम संबंधी सूखे की घटनाओं का पता चला है, जिनमें से प्रमुख और सबसे लंबे समय तक चलने वाली घटनाएं दक्षिण अमेरिका, मध्य और पूर्वी एशिया, मध्य अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका में हुई हैं।

कृषि और खाद्य सुरक्षा पर सूखे का असर

सूखे के साथ ही लू या हीटवेव ने यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, मध्य और दक्षिणी अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई हिस्सों में फसलों की उपज पर असर डाला।

लंबे समय तक सूखे से प्रभावित क्षेत्रों में किसानों को फसल की पैदावार में कमी और फसल विफलता का सामना करना पड़ रहा है, जिसका असर आय और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है। ये प्रभाव विशेष रूप से उन क्षेत्रों में साफ देखा जा सकता हैं जहां स्थायी सिंचाई प्रणाली या ताजे पानी तक सीधी पहुंच नहीं है।

दुनिया के कई हिस्सों में भयंकर सूखे ने लाखों लोगों को खाद्य संकट की ओर धकेल दिया है। खाद्यान्न की कम उपलब्धता के कारण, गरीब आबादी को भूख और कुपोषण का सामना करना पड़ेगा। दक्षिण अफ्रीका में आने वाले महीनों में लाखों लोगों को भोजन संबंधी सहायता की जरूरत पड़ेगी।

ऊर्जा और यातायात पर सूखे का असर

रिपोर्ट के मुताबिक, लंबे समय से बारिश की कमी और उच्च तापमान के कारण होने वाले भारी वाष्पीकरण के कारण नदियां, झीलें और जलाशय सूख रहे हैं। दक्षिण अमेरिका में, अमेजन जैसी नदियों में पानी का स्तर बहुत कम हो गया है, जिससे कृषि, पेयजल आपूर्ति, यातायात और जलविद्युत उत्पादन पर खतरा बढ़ गया है

रिपोर्ट की मानें तो दक्षिण अफ्रीका में, जाम्बेजी नदी का जल प्रवाह बहुत कम हो गया है, यह कई देशों के लिए जलविद्युत शक्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।बिजली की कमी और ब्लैकआउट का कारण बन रहा है, जिसके कई अप्रत्यक्ष परिणाम हैं।

मोरक्को, स्पेन, इटली और दक्षिण अफ्रीका में पानी की भारी कमी के कारण सरकारें पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने को मजबूर हैं। नील बेसिन और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में पानी के अधिकारों को लेकर विवाद पहले से ही एक गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं।

सूखे के कारण लोगों की सहायता और निपटने के लिए उपायों की तत्काल जरूरत है

मध्य अफ्रीका और उत्तरी यूरोप में आने वाले महीनों में औसत से अधिक बारिश हो सकती है, लेकिन सामान्य प्रवृत्ति से पता चलता है कि प्रभावित क्षेत्रों में से कई में शुष्क और औसत से अधिक गर्मी बनी रहेगी, जिससे नदियों का प्रवाह और कम हो जाएगा और जल संसाधनों पर दबाव पड़ेगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सूखे की बदतर होती स्थिति को देखते हुए, सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में लोगों की मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समय पर हस्तक्षेप बहुत जरूरी है। तत्काल खाद्य सहायता की जरूरत है, खास तौर पर दक्षिण अफ्रीका में, जहां अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 के बीच तीन करोड़ से अधिक लोगों को सहायता की जरूरत पड़ने का अनुमान है।

सूखे की निगरानी जैसी शुरुआती पहचान प्रणालियां, किसानों और नीति निर्माताओं को सूखे की आशंका और इससे निपटने के लिए साक्ष्य प्रदान कर सकती हैं। कम पानी का उपयोग करने वाली और गर्मी को बेहतर ढंग से झेलने वाली सूखा प्रतिरोधी फसलों का उपयोग करने से नुकसान को कम करने में मदद मिल सकती है, खासकर तब, जब कृषि वानिकी तकनीकों, संरक्षण जुताई और फसल चक्रण के साथ जोड़ा जाता है।

पानी का प्रबंधन कुशलता से करना, खासकर ग्रिड पाइपलाइनों में पानी के नुकसान पर लगाम लगाना, उन्नत टिकाऊ सिंचाई प्रणाली तथा बारिश के पानी को जमा करने में निवेश करके पानी की कमी से निपटा जा सकता है।

ड्राउट रेसिलिएंस+10 (डीआर +10) सम्मेलन

संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में सूखे से निपटने के लिए जिनेवा में तीन दिवसीय ड्राउट रेसिलिएंस+10 (डीआर +10) सम्मेलन में चर्चा की गई। यह सम्मेलन जो राष्ट्रीय सूखा नीति पर उच्च-स्तरीय बैठक के एक दशक बाद किया गया, इसमें नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों और चिकित्सकों ने 30 सितंबर से दो अक्टूबर, 2024 तक विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के मुख्यालय में सूखे की तैयारी, प्रतिक्रिया और इसके अनुकूलन में एक दशक की प्रगति पर विचार किया।

यह सम्मेलन मरुस्थलीकरण या डिसर्टिफिकेशन से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पक्षकारों के सम्मेलन के 16वें सत्र से ठीक दो महीने पहले हुआ है, जो दो से 13 दिसंबर, 2024 तक सऊदी अरब के रियाद में आयोजित किया जाएगा, जिसका विषय ‘हमारी भूमि, हमारा भविष्य’ होगा।

इससे पहले विश्व मौसम संगठन, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा राष्ट्रीय सूखा नीति पर पहली उच्च स्तरीय बैठक 2013 में आयोजित की गई थी, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय सूखा नीतियां विकसित करना था, ताकि सूखे से निपटने की प्रतिक्रिया केवल संकट प्रबंधन तक सीमित न रह जाए।

इसके बावजूद भी दुनिया के सबसे घातक और सबसे महंगे प्राकृतिक खतरों में से एक, सूखा वर्ष 2000 के बाद से 29 प्रतिशत बार अधिक हुआ, जिसका कारण मानवजनित भूमि क्षरण और जलवायु परिवर्तन हैं।

जबकि राष्ट्रीय सूखा नीति पर उच्च स्तरीय बैठक के एक दशक बाद कई देश सूखे के खतरों से निपटने के लिए नई वैश्विक व्यवस्था की मांग कर रहे हैं।

वर्तमान में दुनिया की 40 प्रतिशत भूमि खराब हो चुकी है, जिसका सीधा असर 3.2 अरब लोगों पर पड़ रहा है। 2050 तक दुनिया की आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा सूखे से प्रभावित हो सकता है।

पिछले कुछ दशकों में दुनिया भर के 70 से अधिक देशों ने बार-बार पड़ने वाले सूखे के लिए तैयारी करने और उससे निपटने के लिए राष्ट्रीय नीतियां विकसित की हैं।

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