इस बात को हम सब जानते हैं कि, पानी पृथ्वी पर जीवन जीने के लिए अहम है। लेकिन इस बारे में कम जानकारी है कि धरती पर हर तरह के पानी का लगभग एक फीसदी ही ताजा या मीठा पानी है जो लोगों, पौधों या जमीन में रहने वाले जानवरों के लिए उपलब्ध है।
बाकी महासागरों में है, या ध्रुवीय बर्फ की चादरों और चट्टानों में बंद है। जलवायु में हो रहे बदलाव से दुनिया में, उस एक फीसदी का वैश्विक वितरण बिल्कुल नई तरीके से महत्व रखता है।
साइंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चलता है कि, पिछले दो दशकों में उत्तरी गोलार्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्ध अधिक सूख रहा है। अध्ययनकर्ताओं का सुझाव है कि इसका मुख्य कारण मौसम संबंधी घटना है, जिसे अल नीनो के नाम से जाना जाता है। जो हर कुछ वर्षों में घटित होती है जब पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में समुद्र का पानी सामान्य से अधिक गर्म होता है।
निष्कर्ष उपग्रहों के आंकड़ों और नदी और धारा प्रवाह के माप पर आधारित हैं, जिसने अधयनकर्ताओं को पानी की उपलब्धता में बदलावों का मॉडल और गणना करने में सक्षम बनाया। पानी की उपलब्धता भूमि पर वर्षा के रूप में परिदृश्य को आपूर्ति किए गए पानी की मात्रा और सामान्य वाष्पीकरण द्वारा या पौधों द्वारा उनकी पत्तियों के माध्यम से वायुमंडल में निकाले गए पानी के बीच का कुल अंतर है।
भले ही दक्षिणी गोलार्ध में वैश्विक भूमि क्षेत्र (अंटार्कटिका को छोड़कर) का केवल एक चौथाई हिस्सा है, फिर भी उत्तरी गोलार्ध की तुलना में दुनिया भर में पानी की उपलब्धता पर इसका काफी अधिक प्रभाव पड़ता है।
नए विश्लेषण से पता चलता है कि दक्षिण अमेरिका, अधिकांश अफ्रीका और मध्य और उत्तर-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पानी की उपलब्धता में भारी कमी आई है। हालांकि, दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी भाग जैसे कुछ क्षेत्रों में अधिक पानी उपलब्ध होगा।
इसके विपरीत, क्षेत्रों के बीच महत्वपूर्ण भिन्नताओं के बावजूद, अध्ययन से पता चलता है कि उत्तरी गोलार्ध में पानी की उपलब्धता कमोबेश संतुलित है। यह आंशिक रूप से सिंचाई, बांध और खाद्य उत्पादन जैसे व्यापक मानवीय प्रभावों के कारण है। ऐसे कारण उत्तरी गोलार्ध में अधिक प्रासंगिक हैं क्योंकि दुनिया की लगभग 90 फीसदी आबादी वहीं रहती है।
लेकिन पानी की उपलब्धता और सुखाने के बारे में यह तकनीकी मॉडलिंग क्यों मायने रखती है? यदि दक्षिणी गोलार्ध उत्तरी की तुलना में अधिक सूख रहा है तो इसके कुछ कारण होंगे वे क्या हैं?
दक्षिण में जो होता है उसका प्रभाव उत्तर पर भी पड़ता है
उत्तर का एक हिस्सा उन क्षेत्रों में निहित है जहां शुष्कता बढ़ने के आसार हैं। दक्षिण अमेरिका में अमेजन वर्षावन शामिल है, जो जलवायु के लिए प्रमुख है, साथ ही प्रजातियों के लिए विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण निवास स्थान और कई स्वदेशी समुदायों का घर है।
वर्षावन के सूखने से वनस्पति कम हो जाएगी और आग का खतरा बढ़ जाएगा। यह जंगल में रहने वाले लोगों और जानवरों के लिए बुरी खबर होगी और इसमें वर्तमान में वन वनस्पति और मिट्टी में बंद अरबों टन कार्बन को छोड़ने की क्षमता है।
दक्षिण अमेरिका वैश्विक बाजार के लिए सोयाबीन, चीनी, मांस, कॉफी और फलों का एक प्रमुख कृषि निर्यातक भी है। पानी की उपलब्धता में बदलाव से दुनिया भर में खाद्य प्रणालियों पर तनाव बढ़ेगा।
अधिकांश अफ़्रीका में सुखा भी एक वास्तविक चुनौती है। इस विशाल महाद्वीप में कई जलवायु क्षेत्र और सामाजिक-आर्थिक विरोधाभास हैं, जिन्हें कम करने और अनुकूलित करने के लिए अक्सर सीमित संसाधन होते हैं।
खाद्य प्रणालियों और आवासों पर दबाव पूरे महाद्वीप में अतिरिक्त तनाव पैदा करेगा जो पहले से ही मुद्रास्फीति और यूक्रेन में युद्ध से जुड़ी वैश्विक खाद्य कीमतों में वृद्धि से लोग पीड़ित है।
सूखे के कारण मुख्य कसावा की पैदावार में गिरावट आ रही है। कॉफी और कोको जैसे निर्यात में भी कमी आ सकती है, जिससे आजीविका का नुकसान, गरीबी और भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है।
उत्तर-पश्चिम ऑस्ट्रेलिया देश के बड़े जंगलों में से एक है। लेकिन इस क्षेत्र को खाली मानना और इसलिए सुखा पड़ने के मामले में महत्वहीन मानना एक बड़ी गलती होगी।
सूखा पड़ने से वनस्पति पैटर्न बदल जाएगा और तापमान में और वृद्धि होगी, जो कि यदि उत्सर्जन दर ऊंची बनी रही तो 2100 तक वर्ष के बड़े हिस्से में 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर हो सकता है। इससे मनुष्यों और आवासों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
इसी प्रकार, मध्य ऑस्ट्रेलिया में सूखा पड़ने से तटीय क्षेत्रों के मौसम और जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जहां ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश प्रमुख शहर और आबादी स्थित हैं। देश के दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व में भी सूखे की प्रवृत्ति देखी जा रही है, जिससे आवास संबंधी तनाव और परिवर्तन, जंगल की आग, खत्म होती नदियां और लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है, खासकर शहरी क्षेत्रों में।
जलवायु के कई पहलुओं की तरह, बदलावों और प्रभावों की सटीक प्रकृति और पैमाने का पूर्वानुमान लगाना या स्थानीय या क्षेत्रीय पैमाने पर मॉडल बनाना कठिन है। लेकिन यह नया अध्ययन दक्षिणी गोलार्ध में पैटर्न और जटिल जलवायु प्रक्रियाओं में स्पष्ट बदलाव की ओर इशारा करता है जिससे अल नीनो घटनाओं के दौरान पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी।
सूखा पड़ने से प्रमुख क्षेत्रों में आवासों और प्रजातियों पर अतिरिक्त तनाव उत्पन्न होगा। यह विभिन्न अनुकूलन क्षमताओं वाली लोगों की आबादी और अंततः हमारी वैश्विक खाद्य प्रणालियों को भी प्रभावित करेगा। हालांकि दक्षिणी गोलार्ध में ज़्यादातर पानी है, लेकिन वहां जो होता है वह वास्तव में पूरी दुनिया के लिए मायने रखता है।