120 वर्षों में दोगुना हुआ सूखे का असर, आने वाले वर्षों में और बढ़ेगा संकट: ओईसीडी रिपोर्ट

रिपोर्ट में भारत, अमेरिका, यूरोप, पूर्वी रूस और चीन में भी मिट्टी की नमी में भारी कमी आने की आशंका जताई गई है
1980 से अब तक दुनिया की 37 फीसदी जमीन में मिट्टी की नमी में भारी गिरावट आई है; फोटो: आईस्टॉक
1980 से अब तक दुनिया की 37 फीसदी जमीन में मिट्टी की नमी में भारी गिरावट आई है; फोटो: आईस्टॉक
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सूखा अब महज मौसम से जुड़ी एक अस्थाई समस्या नहीं रह गया। यह एक गहराता संकट है, जो चुपचाप धरती की नमी, लोगों की रोजी-रोटी और अर्थव्यवस्था को निगल रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 120 वर्षों में दुनिया भर में सूखे से प्रभावित जमीन का क्षेत्रफल दोगुना हो गया है।

हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि आने वाले वर्षों में हर सूखा पहले से कहीं महंगा, जानलेवा और विनाशकारी साबित होगा।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने अपनी नई रिपोर्ट में चेताया है कि आज एक औसत सूखे से होने वाला आर्थिक नुकसान 2000 की तुलना में छह गुना तक बढ़ चुका है, और 2035 तक इसमें 35 फीसदी की और बढ़ोतरी होने की आशंका जताई है। मतलब कि 2035 तक एक सामान्य सूखा आज की तुलना में कहीं ज्यादा महंगा साबित हो सकता है।

‘ग्लोबल ड्रॉट आउटलुक’ नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन ने सूखे की तीव्रता और आवृत्ति दोनों को बढ़ा दिया है। बीते दशकों में दुनिया का 40 फीसदी हिस्सा कहीं ज्यादा बार और अधिक गंभीर सूखे का सामना कर रहा है। रिपोर्ट ने आगाह किया है कि यदि सरकारें तत्काल मिलकर कदम नहीं उठाएंगी तो सूखे से होने वाला नुकसान लगातार बढ़ता जाएगा।

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1980 से अब तक दुनिया की 37 फीसदी जमीन में मिट्टी की नमी में भारी गिरावट आई है; फोटो: आईस्टॉक

जलवायु परिवर्तन की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसने न केवल सूखा प्रभावित जमीन के दायरे को बढ़ाया है, बल्कि इसका असर भी कहीं ज्यादा गंभीर बना दिया है। बारिश का पैटर्न अस्थिर हो गया है, तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे मिट्टी की नमी तेजी से खत्म हो रही है और ताजे पानी के स्रोत कहीं ज्यादा दबाव में आते जा रहे हैं।

कृषि ही नहीं, व्यापार, ऊर्जा और उद्योग भी चपेट में

आज सूखा सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं, यह व्यापार, उद्योग और ऊर्जा उत्पादन को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। ओईसीडी के विश्लेषण से पता चला है कि सूखा केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और समाज पर भी गहरा असर डालता है।

रिपोर्ट के मुताबिक 1980 से अब तक दुनिया की 37 फीसदी जमीन में मिट्टी की नमी में भारी गिरावट आई है। इसके अलावा, 2000 के बाद से ज्यादातर जगहों पर जमीन के नीचे मौजूद पानी घटता जा रहा है।

आंकड़ों के अनुसार, 2000 के बाद से 75 फीसदी वैश्विक जल निकासी में योगदान देने वाले 62 फीसदी भूजल भंडारों में जलस्तर लगातार घटता गया है।

इंसानी जीवन पर भी सूखा कहर बनकर टूटा है। इसकी वजह से बहुत से लोगों की जान गई है, इसने कई लोगों को गरीबी के भंवर जाल में धकेल दिया है और उन्हें अपने घरों को छोड़ दूसरी जगह जाना पड़ा है और गरीबी, असमानता जैसी अनगिनत मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।

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गौरतलब है कि 2021 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में आए सूखे के चलते कृषि को एक अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ था। 2024 में मध्य अमेरिका में लंबे समय तक बारिश न होने से पानी की भारी कमी हो गई और पनामा नहर जैसे दुनिया के सबसे अहम व्यापारिक रास्ते पर जहाजों की आवाजाही तक रुक गई। वहां की नदियां और जलाशय इतने सूख गए कि बिजली उत्पादन बंद करना पड़ा और कई देशों को मजबूरी में कोयला आधारित बिजली संयंत्र दोबारा शुरू करने पड़े।

सबसे भयानक मानवीय असर अफ्रीका में देखा गया, जहां 2023 में गंभीर सूखे ने 2.3 करोड़ लोगों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया।

रिपोर्ट में सूखा प्रभावित क्षेत्रों के अलावा, भारत, अमेरिका, यूरोप, पूर्वी रूस और चीन में भी मिट्टी की नमी में भारी कमी आने की आशंका जताई गई है।

साझा नीति और व्यवहारिक समाधान जरूरी

इस बारे में ओईसीडी महासचिव मैथियास कॉरमैन का कहना है कि, सूखे के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए सरकारों, राज्यों और विभागों को मिलकर काम करना होगा। इससे खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, शांति और विकास जैसे क्षेत्रों पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सकता है।"

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उनका यह भी कहना है कि अगर हम पानी, जमीन और पारिस्थितिकी तंत्र का समझदारी से प्रबंधन करें, तो सूखे से होने वाले नुकसान को काफी हद तक टाला जा सकता है और संकट के लिए पहले से तैयार हुआ जा सकता है।

रिपोर्ट कहती है अगर सूखे से निपटने की तैयारी पहले ही कर ली जाए, तो इसका असर कम किया जा सकता है और समुदायों के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाया जा सकता है। इसमें यह भी बताया गया है कि सूखा किन कारणों से होता है, इसका क्या असर पड़ता है, और कौन-सी नीतियां और उपाय इस संकट से निपटने में मदद कर सकते हैं।

समाधान मौजूद, बस अपनाने की है जरूरत

रिपोर्ट में इस बारे में भी प्रकाश डाला गया है कि जल, भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र का टिकाऊ प्रबंधन सूखे से निपटने की कुंजी हो सकते हैं। ऐसे में सूखे से निपटने के लिए जरूरी है कि पहले से मौजूद समाधानों को बड़े पैमाने पर अपनाया जाए।

इसी तरह बारिश के पानी को संजोने और पानी के दोबारा उपयोग जैसे उपाय उद्योगों द्वारा किए जा रहे जल दोहन में भारी कमी कर सकते हैं।

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इसी तरह सूखा झेल सकने वाली फसलों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन और नियमों में बदलाव की जरूरत है। इसके साथ ही, बेहतर सिंचाई प्रणालियों से दुनिया भर में पानी की बर्बादी को काफी कम किया जा सकता है। भूमि का सतत उपयोग और पारिस्थितिकी तंत्र का सही प्रबंधन, प्राकृतिक रूप से सूखे का सामना करने की क्षमता को मजबूत बनाता है और पानी से जुड़ी जरूरी सेवाओं की रक्षा करता है।

रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि सूखे की चुनौती केवल जल संकट तक सीमित नहीं, बल्कि यह आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए भी खतरा है। यदि अभी से ठोस और समन्वित नीतियां न बनाई गई, तो आने वाला समय और भी मुश्किल भरा हो सकता है।

अपनी इस रिपोर्ट में ओईसीडी ने भारत में अपने गई प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) का भी जिक्र किया है। यह भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाई जा रही एक फसल बीमा योजना है। इसका उद्देश्य सूखा, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के कारण फसल के नुकसान के खिलाफ किसानों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है।

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