आवरण कथा: सूखे के लिए जाना जाता था यह इलाका, लेकिन लोग मिलकर बदली तस्वीर

भारत के सबसे अधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र में स्थित यह गांव पानी के लिए पूरी तरह से बरसात पर निर्भर था। लेकिन, यहां के सदियों पुराने तालाब को पुनर्जीवित करने के बाद अब हालात बदल गए हैं
सगरोली गांव में के तालाब के पुनरुद्धार के बाद आसपास के किसानों की फसल की पैदावार 30 फीसदी तक बढ़ गई
सगरोली गांव में के तालाब के पुनरुद्धार के बाद आसपास के किसानों की फसल की पैदावार 30 फीसदी तक बढ़ गई फोटो: महक पुरी / सीएसई
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डाउन टू अर्थ हिंदी मासिक पत्रिका की सितंबर माह की आवरण कथा देश के उन झीलों-तालाबों पर केंद्रित थी, जिन्हें लोगों ने सरकार व स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर पुनर्जीवन दिया। इन्हें वेबसाइट पर क्रमवार प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी यहां पढ़ें अब तक कई कहानी प्रकाशित हो चुकी है। आज पढ़ें

हाराष्ट्र का मराठवाड़ा लंबे समय से सूखे की भयंकर मार, फसलों का नुकसान और कम पैदावार झेल रहा है। इसी वजह से यह इलाका किसानों की आत्महत्या के लिए भी कुख्यात है। इस अंधियारे के बीच यहां का सगरोली गांव उम्मीद की रोशनी बिखेर रहा है। बीते कुछ सालों से यहां के किसान की रबी और खरीफ दोनों ही फसलों की पैदावार बढ़ गई है। मानो वे उस अभिशाप से एकदम अछूते हैं, जिसे वहां का बाकी क्षेत्र झेल रहा है।

लेकिन, हमेशा से ऐसा नहीं था। सगरोली के लोगों को आज भी याद है कि 2010-11 तक वहां भूजल स्तर 150 मीटर तक गिर गया था। जिससे उनके लिए धान की खेती करना असंभव हो गया, जो उनकी मुख्य फसल थी और इसमें पानी की खपत भी ज्यादा होती थी। साल 2016 में स्थानीय लोगों ने गांव के बीचों-बीच स्थित सदियों पुराने पोचम्मा तालाब में फिर पानी लाने का फैसला किया। इस फैसले ने उनकी किस्मत बदल दी।

2016 में नांदेड़ की एक गैर-लाभकारी संस्था संस्कृति संवर्धन मंडल और वहां के मृदा एवं जल संरक्षण विभाग ने पुनरुद्धार के लिए तालाब की पहचान की। संस्कृति संवर्धन मंडल के निदेशक रोहित देशमुख कहते हैं, “यह झील बारिश के पानी को स्टोर करने के साथ ही उसे धरती के अंदर पहुंचाकर भूजल स्तर भी बढ़ाती है। रखरखाव न किए जाने पर झील में गाद जमती गई। जिससे इसमें पानी संग्रह करने और रिसकर भूगर्भ में जाने की क्षमता कमजोर पड़ गई।”

प्रमुख प्रभाव
तालाब को पुनर्जीवित करने से सिंचाई व्यवस्था सुधरने के साथ ही किसानों को मिनरल्स से भरपूर खाद भी मिली। इसका इस्तेमाल खेतों में करने से खाद पर खर्च भी कम हो गया है

तालाब की सफाई की शुरुआत उसमें जमी गाद निकालने से की गई। इस दौरान उससे 3,800 टन गाद निकली। तालाब को पुनर्जीवित करने में कुल डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए। देशमुख बताते हैं कि उनकी संस्था ने पिछले 10 साल में 5 बार इस तालाब से गाद निकाली है। तालाब से निकली यह गाद मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। इसलिए लोगों ने इस गाद का इस्तेमाल अपने खेतों को समतल करने के लिए कर लिया। इससे उन्हें बाजार से खाद खरीदने की जरूरत भी खत्म हो गई।

देशमुख कहते हैं, “किस्मत से बीते 5 साल से इस इलाके में औसत से ज्यादा बारिश हो रही है। पहले जो तालाब मार्च तक सूख जाता था, अब उसमें अगले साल जून में बारिश शुरू होने तक पानी बना रहता है।” गांव वाले बताते हैं कि तालाब के आसपास के बोरवेल रिचार्ज हो गए हैं। भूजल स्तर 100 मीटर से ज्यादा बढ़ गया है। इतना ही नहीं, खरीफ के सीजन में सिंचाई वाले क्षेत्र में 32 फीसदी और रबी के सीजन में सिंचित क्षेत्र में 43 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। गांव में रहने वाले वेंकट शिंदे गैर-लाभकारी संस्था के साथ मृदा विशेषज्ञ के तौर पर काम करते हैं। वेंकट बताते हैं, “पिछले 4 सालों से माॅनसून के देर से आने के बाद भी गांव वालों को पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ा है।”

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