मराठवाड़ा में पानी का भीषण संकट, 100 परियोजनाएं सूखी, टैंकरों से जलापूर्ति शुरू

साल दर साल कम होती बारिश के कारण मराठवाड़ा रेगिस्तान बनने की कगार पर है
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पानी के कुंए सूखने लगे हैं। फोटो: सिध्दनाथ वैजिनाथ माने
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पानी के कुंए सूखने लगे हैं। फोटो: सिध्दनाथ वैजिनाथ माने
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महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहर में भी पानी की कमी बढ़ गई है। कई गांवों में टैंकरों से पानी दिया जा रहा है। संभाग में 100 लघु और मध्यम बांध परियोजनाएं पूरी तरह से सूख चुकी हैं और 269 परियोजनाओं से पर खेती चल रही है। बांधों में पानी का भंडारण कम होने से सिंचाई और पीने के लिए पानी की आपूर्ति करना मुश्किल हो गया है।

मराठवाड़ा के ग्रामीण इलाकों छत्रपति संभाजीनगर, जालना और बीड जिलों में टैंकरों से पानी की आपूर्ति हो रही है। जल संसाधन विभाग के 11 बड़े बांधों में 30 फीसदी जल भंडारण बचा है। जल संसाधन विभाग, लातूर के के कार्यकारी अभियंता अमर पाटिल बताते हैं कि 75 मध्यम परियोजनाओं में 13.39 प्रतिशत, 749 लघु परियोजनाओं में 13.71 प्रतिशत, गोदावरी नदी पर 15 बांधों में 27.99 प्रतिशत तथा तेरना, मांजरा, रेना नदियों पर 27 बांधों में 19 प्रतिशत जल संग्रहण है। 

कुल 877 परियोजनाओं में मात्र 25 फीसदी जल भंडारण होने से अप्रैल व मई में पानी का संकट बढ़ने की आशंका है। ज्यादातर गांव पानी के लिए बड़े बांधों पर निर्भर हैं।

जायकवाड़ी बांध में 24 फीसदी पानी उपलब्ध है. येल्दारी 41, सिद्धेश्वर 57, मांजरा 10, अपर पेंगांगा 57, लोअर तेरना 6, लोअर मनार 34, विष्णुपुरी 48, लोअर दुधाना 10 फीसदी पानी बांध में बचा है।माजलगांव और सिना कोलेगांव बांध पूरी तरह से सूखे हैं। कुएं और पुलियां सूख गई हैं।

किसान ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बागों को बचाने का अथक प्रयास कर रहे हैं। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2023 में 446944 हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन फसलें बोई गईं, जबकि 2024 में 308072 हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन फसलें बोई गईं। 2023 की तुलना में 2024 में 138872 हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन फसलें कम बोई गईं।

संभाजीनगर के दगड़ू कापसे का कहना है कि मार्च का महीना अभी खत्म नहीं हुआ है और गांव में 15 दिनों में केवल एक बार पानी आता है। कुएं और बोर कई दिनों से बंद हैं। पानी सिर्फ शिवार में मिलता था, लेकिन कुएं भी सुख गये है.अब खेतों में भी पानी मिलना मुश्किल हो गया है।

लातूर के नागरिक विनायक दिवे ने आशंका जताई है कि लातूर शहर को प्रतिदिन 5 करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन मांजरा बांध के सूखने के कारण देश के इतिहास में पहली बार 2016 में जिस तरह मिरज से 300 किलोमीटर दूर से ट्रेन द्वारा लातूर शहर में पीने का पानी से लाने की नौबत आई। इस साल फिर ऐसा ही हो सकता है। 

बारिश की कमी से बिगड़े हालात

मौसम विभाग के मुताबिक, पूरे महाराष्ट्र में जनवरी से फरवरी 2024 तक 49 फीसदी कम बारिश हुई। सबसे अधिक प्रभावित जिले मराठवाड़ा के ही थे। इस क्षेत्र के जिले लातूर, धाराशिव, बिड, हिंगोली, परबानी में सामान्य से 100 फीसदी कम बारिश हुई। जबकि नांदेड़ में 49 फीसदी, जालना में 38 फीसदी कम बारिश हुई है।

इसी तरह एक मार्च से 28 मार्च 2024 के बीच पूरे मराठवाड़ा में 87 फीसदी कम बारिश हुई है, जबकि बीड, धाराशिव, हिंगोली, जालना और पारभाानी में 100 फीसदी और लातूर में 79 फीसदी, संभाजी नगर में 99 फीसदी और नांदेड़ में 43 फीसदी कम बारिश हुई है।

कृषि अधिकारी अभिजीत पटवारी बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्र में बारिश की अनियमितता बढ़ी है। पहले की तरह लगातार बारिश नहीं हो रही है, बल्कि एक ही समय में 100 मिलीमीटर बारिश हो रही है, इस वजह से पानी जमीन के भीतर नहीं पहुंच पाता। वह कहते हैं कि मराठवाड़ा में पेड़ों की संख्या भी काफी कम हो गई है. इसका भी असर वर्षा पर पड़ा है। 

कृषि विज्ञान केंद्र, तुळजापूर कें डॉ. नकुल हरवाडीकर के मुताबिक बारिश सूखा के अलावा जल साक्षरता व जल संरक्षण योजना को लेकर सरकारी व्यवस्था का अभाव भी इस संकट को बढ़ा रहा है। 

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