सितंबर 2023 के पहले सप्ताह में, भारत का करीब 30 फीसदी भू क्षेत्र सूखे की चपेट में था। इसकी वजह से किसानों की समस्याएं कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। इतना ही नहीं इसकी वजह से खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंताएं भी बढ़ रही हैं।
आंकड़ों से पता चला है कि देश में करीब 11.5 फीसदी हिस्सा 'गंभीर', 'अत्यधिक' या 'असाधारण' शुष्क परिस्थितियों का सामना कर रहा है। वहीं 18.9 फीसदी हिस्से में 'असामान्य' से 'मध्यम' शुष्क परिस्थितियां थी। यह जानकारी देश में सूखे के लिए बनाई प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (डीईडब्ल्यूएस) में सामने आई है। जो भारत में रियल टाइम में सूखे की निगरानी करने वाला अपनी तरह का पहला प्लेटफार्म है। इस प्लेटफार्म को आईआईटी गांधीनगर की जल और जलवायु प्रयोगशाला द्वारा संचालित किया जा रहा है।
यदि 1901 के बाद से देखें तो अगस्त 2023 अब तक का सबसे शुष्क अगस्त है। देखा जाए तो इस महीने में केवल 162 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो अपेक्षित 255 मिलीमीटर से करीब 36 फीसदी कम है। गौरतलब है कि मौजूदा समय में भारत अल नीनो का भी सामना कर रहा है।
इससे किसानों की परेशानियां बढ़ गई हैं, क्योंकि एक तरफ जहां पहले कम बारिश के चलते जून और जुलाई के दौरान बुआई में देरी हुई थी। वहीं अब वे बारिश की कमी के चलते फसलों के विफल होने या उसमें गिरावट की आशंका को लेकर चिंतित हैं। खासकर जब गर्मी के कारण मिट्टी से अधिक पानी वाष्पित हो जाता है।
मृदा नमी सूचकांक (एसएसआई), जो मिट्टी में नमी के स्तर को मापता है, इंगित करता है कि कई जिले पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर जिले छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक में हैं। एसएसआई बताता है कि पौधों के लिए कितना पानी उपलब्ध है।
मिट्टी में नमी की कमी से जूझ रहे कुछ सबसे अधिक प्रभावित जिलों में महाराष्ट्र के सतारा, रायगढ़, नासिक और कोहलापुर शामिल हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में पश्चिमी निमाड़, ओडिशा में बालांगीर, छत्तीसगढ़ में कोरबा और रायगढ़, झारखंड में हजारीबाग, उत्तर प्रदेश में चंदौली और वाराणसी, पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद और हुगली, कर्नाटक में उडुपी और चिक्कमगलुरु के साथ केरल में एर्नाकुलम और त्रिशूर शामिल हैं।
मृदा नमी सूचकांक के अनुसार देश में 6 सितंबर, 2023 तक नमी की स्थिति
स्रोत: इंडिया ड्रॉट मॉनिटर
मिट्टी में नमी का स्तर सामान्य से कितना कम-ज्यादा है यह दर्शाने के लिए इस मैप में पीले से लाल रंगों का उपयोग किया गया है।
इस साल कपास, मूंग, अरहर, उड़द जैसी दलहन फसलों के साथ मूंगफली और सूरजमुखी जैसी महत्वपूर्ण खरीफ फसलों के रकबे में 2022 की तुलना में उल्लेखनीय कमी आई है। उदाहरण के लिए, 8 सितंबर, 2023 तक कुल 119.91 लाख हेक्टेयर (एलएचए) क्षेत्र में दालों की बुवाई की गई है, जो 2022 की तुलना में 11.26 लाख हेक्टेयर कम है।
इसी तरह मानकीकृत वर्षा सूचकांक (एसपीआई) जो बारिश के आंकड़ों के आधार पर मौसम संबंधी सूखे को मापता है। वो पिछले महीने में देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों में बारिश में भारी कमी को उजागर करता है।
छह सितंबर, 2023 तक के लिए जारी मानकीकृत वर्षा सूचकांक
स्रोत: इंडिया ड्रॉट मॉनिटर
कुल मिलकर देखें तो पिछले तीन महीनों में सूखे की स्थिति बद से बदतर होती हुई है। आंकड़ों के अनुसार जहां जून में 22.1 फीसदी जमीन सूखा प्रभावित थी। वो सात अगस्त 2023 तक यह बढ़कर 24.4 फीसदी हो गई थी। वहीं 30 अगस्त 2023 तक सूखा प्रभावित क्षेत्र बढ़कर 28.8 फीसदी हो गया था जो छह सितंबर 2023 तक बढ़कर 30.4 पर पहुंच गया।