कोयले की कीमत: धनबाद में जान, जमीन और जीवन दांव पर, एनजीटी ने सरकारी एजेंसियों से मांगा जवाब

एनजीटी ने गोधर कुर्मीडीह में खनन से पर्यावरण और लोगों की सेहत पर पड़ रहे असर पर रिपोर्ट तलब की है
प्रतीकात्मक तस्वीर
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सारांश
  • धनबाद के गोधर कुर्मीडीह में कोयला खनन से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। एनजीटी ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए सरकारी एजेंसियों से जवाब मांगा है।

  • आरोप है कि इस क्षेत्र में भूमिगत आग, गैस रिसाव से विस्फोट, और जमीन धंसने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।

  • कुसुंडा क्षेत्र में एनएच-32 (कटारस रोड) पर दरारें पड़ चुकी हैं, खेती की जमीन बर्बाद हो रही है और कई घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। इसके अलावा, कोयले की धूल से लोगों की सेहत पर गंभीर असर पड़ रहा है।

  • अवैध खनन के कारण कई मकान ढह चुके हैं और स्कूल तक प्रभावित हो रहे हैं।

झारखंड के धनबाद जिले के गोधर कुर्मीडीह और आसपास के इलाकों में हो रहे कोयला खनन से पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे असर को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाया है। 22 दिसंबर 2025 को अदालत ने खान सुरक्षा महानिदेशालय (डीजीएमएस) को इस मामले में अपनी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

इसके साथ ही अदालत ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, कोयला मंत्रालय, कोल इंडिया लिमिटेड, भारत कोकिंग कोल लिमिटेड और धनबाद के जिलाधिकारी से भी जवाब मांगा गया है। मामले की अगली सुनवाई 13 मार्च 2026 को होगी।

याचिकाकर्ता का कहना है कि इलाके में क्लस्टर-6 के तहत कोयला खनन तो हो रहा है, लेकिन गांवों में रहने वाले लोगों के लिए कोई भी कल्याणकारी योजना नहीं चलाई जा रही है।

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लगातार बढ़ रही हैं जमीन धंसने की घटनाएं

याचिका में आरोप लगाया गया है कि भूमिगत आग, गैस रिसाव से विस्फोट, और जमीन धंसने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। कुसुंडा क्षेत्र में एनएच-32 (कटारस रोड) पर दरारें पड़ चुकी हैं, खेती की जमीन बर्बाद हो रही है और कई घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। इसके अलावा, कोयले की धूल से लोगों की सेहत पर गंभीर असर पड़ रहा है।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि अवैध खनन के कारण कई मकान ढह चुके हैं और स्कूल तक प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने एक घटना का हवाला दिया, जब झारखंड के धनबाद स्थित एक कोयला क्षेत्र में जमीन धंसने से तीन महिलाएं जिंदा दब गई थीं।

इस मामले ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि कोयला खनन के नाम पर आखिर कब तक स्थानीय लोगों की जान, जमीन और जीवन दांव पर लगते रहेंगे।

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फ्लेयर रिटार्डेंट रसायनों से ड्राइवरों के स्वास्थ्य पर खतरा? आईसीएमआर ने एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर ) ने 22 दिसंबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सामने एक रिपोर्ट दाखिल कर बताया है कि ड्राइवरों पर फ्लेयर रिटार्डेंट के स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन करने के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। परिषद ने अदालत को भरोसा दिलाया है कि अध्ययन के लिए सभी आवश्यक तैयारियां की जा रही हैं।

आईसीएमआर रिपोर्ट के मुताबिक, प्रस्तावित अध्ययन को पूरा करने के लिए 18 महीने की समय-सीमा तय की गई है। इसके लिए स्टाफ की भर्ती हो चुकी है, जरूरी रसायनों की खरीद की जा चुकी है और प्रतिभागियों को शामिल करने के लिए फील्ड विजिट भी किए गए हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अहमदाबाद और गांधीनगर की दो वाहन एजेंसियों का दौरा किया गया है, जिन्हें गर्म और शुष्क क्षेत्र (हॉट और एरिड ज़ोन) के रूप में चिन्हित किया गया है। इसके अलावा, जरूरी एलसी-एमएस उपकरण की खरीद की प्रक्रिया भी जारी है।

गौरतलब है कि एनजीटी ने इस मामले में एनडीटीवी पर प्रकाशित एक खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया है। इस खबर में अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि जहरीले फ्लेम रिटार्डेंट रसायनों का स्तर गर्मियों में सबसे अधिक होता है, क्योंकि गर्मी से कार के सामान से ये केमिकल अधिक मात्रा में बाहर निकलते हैं।

इसके बाद 26 सितंबर 2025 को एनजीटी ने आईसीएमआर द्वारा तैयार विस्तृत प्रस्ताव पर विचार करते हुए परिषद को अध्ययन की दिशा में हुई प्रगति पर एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। 

अब आईसीएमआर की इस रिपोर्ट से उम्मीद जगी है कि जल्द ही यह पता चल सकेगा कि फ्लेयर रिटार्डेंट के संपर्क में आने से ड्राइवरों के स्वास्थ्य पर क्या और कितना खतरा है।

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