

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में कोयले की मांग 885 करोड़ टन तक पहुंच सकती है, लेकिन 2030 तक इसमें गिरावट के संकेत हैं।
अक्षय ऊर्जा और प्राकृतिक गैस जैसे स्वच्छ विकल्पों के चलते कोयले की मांग में कमी आ सकती है।
रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया में इस्तेमाल होने वाले कुल कोयले का आधे से अधिक हिस्सा चीन में खप रहा है। लेकिन 2030 तक चीन में कोयले की मांग में हल्की गिरावट आने की उम्मीद है।
चीन तेजी से अक्षय ऊर्जा की दिशा में बढ़ा रहा है और सरकार का लक्ष्य 2030 तक घरेलू कोयला खपत को चरम पर पहुंचाना है, ताकि इसके बाद गिरावट आ सके।
2030 तक कोयले की खपत में सबसे बड़ी वास्तविक वृद्धि भारत में होने की उम्मीद है। यहां मांग औसतन तीन फीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ सकती है, यानी कुल मिलाकर खपत में 20 करोड़ टन से ज्यादा की वृद्धि का अनुमान है।
दुनिया भर में कोयले की मांग अब अपने शिखर पर पहुंच चुकी है और इस दशक के अंत तक इसमें हल्की गिरावट आ सकती है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की ताजा रिपोर्ट 'कोल 2025' के मुताबिक ऊर्जा के सस्ते और स्वच्छ विकल्प जैसे अक्षय ऊर्जा, प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा, कोयले को कड़ी चुनौती दे रहे हैं।
आईईए का अनुमान है कि 2025 में 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ दुनिया में कोयले की मांग बढ़कर रिकॉर्ड 885 करोड़ टन तक पहुंच सकती है। हालांकि इसके बाद रफ्तार थमने लगेगी और 2030 तक दुनिया में कोयले की कुल मांग घटकर फिर से 2023 के स्तर पर लौट सकती है।
इस रिपोर्ट में जहां दुनिया भर में कोयले के बाजार की मौजूदा स्थिति पर नजर डाली गई है। साथ ही 2030 तक वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर कोयले की मांग, आपूर्ति और व्यापार के अनुमान को पेश किया गया है। इसके साथ ही रिपोर्ट में कोयला क्षेत्र में हो रहे निवेश, लागत और कीमतों से जुड़े प्रमुख रुझानों का भी विश्लेषण किया गया है।
वैश्विक तस्वीर: कहीं गिरावट, कहीं बढ़त
रिपोर्ट से पता चला है कि 2025 में कई बड़े देशों में कोयले की खपत ने पिछले रुझानों से अलग राह पकड़ी है। उदाहरण के लिए भारत में समय से पहले और तेज मानसून के कारण कोयले की सालाना खपत में गिरावट दर्ज की गई। देखा जाए तो पिछले 50 वर्षों में ऐसा केवल तीसरी बार हुआ है।
अमेरिका में प्राकृतिक गैस के दाम बढ़ने और कुछ नीतिगत फैसलों से कोयला आधारित बिजली संयंत्र जल्दी बंद नहीं हुए, जिससे कोयले की खपत बढ़ी है। हालांकि पिछले 15 वर्षों से अमेरिका में कोयले की खपत घट रही थी। इसी तरह यूरोपियन यूनियन में लगातार दो वर्षों की तेज गिरावट के बाद इस बार कोयले की खपत में मामूली कमी आई।
वहीं चीन में कोयले की खपत 2024 के स्तर के आसपास ही बनी हुई है।
बिजली क्षेत्र में बड़ा बदलाव
दुनिया में इस्तेमाल होने वाले कुल कोयले का करीब दो-तिहाई हिस्सा बिजली उत्पादन में खपता है। रिपोर्ट कहती है कि अक्षय ऊर्जा की तेज बढ़त, परमाणु ऊर्जा का विस्तार और तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की बड़ी आपूर्ति के चलते 2026 के बाद बिजली उत्पादन में कोयले की मांग घटने लगेगी। हालांकि उद्योगों में इसकी मांग अपेक्षाकृत स्थिर बनी रह सकती है।
चीन की भूमिका सबसे अहम
रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया में इस्तेमाल होने वाले कुल कोयले का आधे से अधिक हिस्सा चीन में खप रहा है। लेकिन 2030 तक चीन में कोयले की मांग में हल्की गिरावट आने की उम्मीद है। चीन तेजी से अक्षय ऊर्जा की दिशा में बढ़ा रहा है और सरकार का लक्ष्य 2030 तक घरेलू कोयला खपत को चरम पर पहुंचाना है, ताकि इसके बाद गिरावट आ सके।
आईईए के ऊर्जा बाजार और सुरक्षा निदेशक कीसूके सादामोरी का इस बारे में कहना है, “कुछ देशों में 2025 के असामान्य रुझानों के बावजूद, हमारा अनुमान स्पष्ट है, वैश्विक कोयला मांग अब ठहराव पर है और 2030 तक इसमें गिरावट शुरू हो सकती है।"
हालांकि उनका यह भी कहना है कि “भविष्य में कोयले को लेकर कई अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। खासकर चीन में आर्थिक वृद्धि, नीतियां, ऊर्जा बाजार और मौसम जैसे कारक पूरी तस्वीर को प्रभावित कर सकते हैं।”
इसके अलावा, दुनिया भर में बिजली की बढ़ती मांग और अक्षय ऊर्जा से जुड़ाव की रफ्तार भी कोयले की दिशा तय करेगी।
भारत और दक्षिण–पूर्व एशिया में बढ़त
2030 तक कोयले की खपत में सबसे बड़ी वास्तविक वृद्धि भारत में होने की उम्मीद है। यहां मांग औसतन तीन फीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ सकती है, यानी कुल मिलाकर खपत में 20 करोड़ टन से ज्यादा की वृद्धि का अनुमान है। इसी तरह दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे तेज वृद्धि का अनुमान है, जहां मांग सालाना चार फीसदी की दर से ज्यादा बढ़ सकती है।
रिपोर्ट में इस बात का भी अंदेशा जताया गया है कि अगर चीन में बिजली की खपत उम्मीद से तेज बढ़ती है, अक्षय ऊर्जा का विस्तार धीमा पड़ता है, या कोयला गैसीकरण में बड़े निवेश होते हैं, तो वैश्विक कोयला मांग अनुमान से ज्यादा हो सकती है।
इसके अलावा, दुनिया भर में चाहे विकसित देश हों या विकासशील, बिजली मांग की रफ्तार, सरकारी नीतियां और कुछ क्षेत्रों में कोयले के विकल्प अपनाने की गति को लेकर भी कई अनिश्चितताएं बनी हुई हैं।
हाल के वर्षों में चीन की भारी मांग ने वैश्विक कोयला व्यापार को संभाले रखा था। लेकिन 2025 में चीन ने ज्यादा भंडार और कमजोर मांग के कारण आयात कम किया है, और यह रुझान 2030 तक जारी रह सकता है। इससे दुनिया भर में कोयला व्यापार सिमटने के आसार हैं।
भारत में बढ़ सकती है मांग
हालांकि इस्पात उद्योग में इस्तेमाल होने वाले मेटलर्जिकल कोयले की स्थिति बेहतर हो सकती है, खासकर भारत में, जहां स्टील उद्योग आयात पर निर्भर है।
कुल मिलाकर देखें तो कमजोर मांग, भरे भंडार और कम कीमतों के कारण कोयला उत्पादक देशों के मुनाफे पर दबाव बढ़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक चीन और इंडोनेशिया सहित अधिकांश बड़े उत्पादक देशों में कोयला उत्पादन घट सकता है। हालांकि भारत एक अपवाद हो सकता है, जहां कुछ अलग रुझान दिख सकता है।
भारत में आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार के प्रयासों के चलते कोयला उत्पादन बढ़ने की संभावना है। रिपोर्ट से एक बात तो पूरी तरह स्पष्ट है कि दुनिया धीरे-धीरे कोयले से आगे बढ़ रही है। हालांकि कोयला के दौर अभी खत्म नहीं हुआ, लेकिन वो अब ढलान पर जरूर है।