पेयजल में आर्सेनिक कम करने से मौत का खतरा हो जाता है आधा: 20 साल के अध्ययन के नतीजे

आर्सेनिक-मुक्त पानी अपनाने से हृदय रोग, कैंसर और लंबे समय की बीमारियों से मौत का खतरा आधा होने के ठोस प्रमाण मिले।
20 साल के अध्ययन में 11,000 लोगों के स्वास्थ्य के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
20 साल के अध्ययन में 11,000 लोगों के स्वास्थ्य के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • आर्सेनिक कम करने से मौत का जोखिम 50 फीसदी तक घटा।

  • 20 साल के अध्ययन में 11,000 लोगों के स्वास्थ्य के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।

  • मूत्र परीक्षण से साबित हुआ कि शरीर में आर्सेनिक घटते ही बीमारी का खतरा कम हुआ।

  • सुरक्षित कुओं की ओर रुख करने से समुदायों में आर्सेनिक स्तर 70 फीसदी तक कम हुआ।

  • अध्ययन बताता है कि आर्सेनिक-मुक्त पानी से पुराने संपर्क का नुकसान भी धीरे-धीरे कम हो सकता है।

दुनिया के कई देशों में, खासकर एशिया में, भूजल में आर्सेनिक एक बड़ी समस्या है। आर्सेनिक एक प्राकृतिक धात्विक तत्व है जो भूजल में घुल जाता है और बिना रंग-गंध के होने के कारण लोग इसे पीते रहते हैं, जबकि यह शरीर में धीरे-धीरे गंभीर नुकसान पहुंचाता है।

हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन ने साबित किया है कि अगर लोग आर्सेनिक से दूषित पानी पीना बंद कर दें, तो उनकी मौत का खतरा 50 प्रतिशत तक कम हो सकता है, चाहे वे कई सालों तक आर्सेनिक के संपर्क में रहे हों।

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20 साल का सबसे बड़ा अध्ययन

कोलंबिया यूनिवर्सिटी, कोलंबिया मेलमैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बांग्लादेश में लगभग 11,000 वयस्कों पर 20 साल तक शोध किया। यह अध्ययन जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित हुआ है। इसे अब तक का सबसे मजबूत और लंबी अवधि वाला अध्ययन माना जा रहा है, जिसने आर्सेनिक-मुक्त पानी के स्वास्थ्य लाभों को सीधे व्यक्ति-दर-व्यक्ति स्तर पर मापा।

अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में आज भी करोड़ों लोग ऐसे भूजल पर निर्भर हैं जिसमें आर्सेनिक की मात्रा सीमा से ऊपर हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक आर्सेनिक को असुरक्षित माना है। बांग्लादेश में यह समस्या सामूहिक स्तर पर इतनी बड़ी है कि डब्ल्यूएचओ इसे “मानव इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक जहर-प्रभाव” कहता है।

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कैसे किया गया अध्ययन

अध्ययन बांग्लादेश के अराईजार क्षेत्र में किया गया, जहां हजारों परिवार पीने के लिए ट्यूबवेल पर निर्भर हैं। इन ट्यूबवेलों में आर्सेनिक का स्तर एक कुएं से दूसरे कुएं तक बहुत अलग-अलग पाया जाता है, कुछ में नगण्य मात्रा, तो कुछ में अत्यंत ज्यादा।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि 10,000 से अधिक कुओं की जांच की, प्रतिभागियों के मूत्र में आर्सेनिक स्तर को बार-बार मापा गया। हर व्यक्ति पर 20 वर्षों तक स्वास्थ्य के आंकड़े दर्ज किए गए, मौत के कारणों को दर्ज किया गया। यह तरीका बेहद विश्वसनीय माना जाता है, क्योंकि मूत्र परीक्षण शरीर में पहुंच चुके वास्तविक आर्सेनिक स्तर को दिखाता है।

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आर्सेनिक कम करने पर मौत का खतरा आधा हो जाता है, अध्ययन के सबसे बड़े और चौंकाने वाले नतीजे यह बताते हैं कि जिन लोगों ने भारी आर्सेनिक वाले पानी से कम-आर्सेनिक पानी की ओर रुख किया, उनकी मौत का खतरा 50 फीसदी तक कम हुआ।

जिन लोगों के मूत्र में आर्सेनिक की मात्रा ऊंचे स्तर से घटकर कम स्तर पर आ गई, उनकी मृत्यु दर वैसी ही हो गई जैसी उन लोगों की थी जो कभी अधिक आर्सेनिक के संपर्क में नहीं रहे थे।

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शोधकर्ताओं ने तुलना इस तरह की - जैसे धूम्रपान छोड़ने पर धीरे-धीरे बीमारी का खतरा कम होता है, वैसे ही आर्सेनिक-मुक्त पानी पीने पर भी समय के साथ जोखिम घटता जाता है।

आर्सेनिक कम क्यों हुआ? अध्ययन के सालों के दौरान बांग्लादेश में कई पहलें की गई, जिसमें कुओं की बड़े पैमाने पर जांच की गई। सुरक्षित (कम-आर्सेनिक) और असुरक्षित (भारी-आर्सेनिक) वाले कुओं को लाल व हरा रंग देकर चिन्हित करना। नए, गहरे सरकारी कुओं का निर्माण करना, लोगों का सुरक्षित कुओं की ओर स्वेच्छा से जाना अहम है।

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इन पहलों के कारण

लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुओं में आर्सेनिक की मात्रा 70 फीसदी तक कम हुई, मूत्र परीक्षण से पता चला कि मनुष्यों के शरीर में आर्सेनिक का स्तर 50 फीसदी कम हो गया। यही कमी मृत्यु दर में तेज गिरावट का प्रमुख कारण बनी।

शोध में कहा गया है कि जब लोगों को आर्सेनिक-मुक्त पानी मिलता है, तो वे न केवल भविष्य की बीमारियों से बचते हैं, बल्कि पिछले वर्षों के नुकसान से भी उबरने लगते हैं। यह अध्ययन अब तक का सबसे ठोस सबूत है कि आर्सेनिक कम करने से सीधे-सीधे मौत का खतरा घटता है।

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शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि 20 साल बाद जब उन्होंने वास्तविक जानें बचती देखीं, तो उन्हें लगा कि उनका शोध बांग्लादेश ही नहीं, दुनिया भर में लोगों की सेहत के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने बांग्लादेश सरकार के साथ मिलकर नलकूप नाम का एक ऐप भी तैयार किया है, जिसमें:

  • लाखों कुओं का आर्सेनिक के आंकड़े उपलब्ध है

  • लोग अपने आस-पास के सुरक्षित कुओं की जानकारी पा सकते हैं

  • सरकारी अधिकारी यह तय कर सकते हैं कि किन क्षेत्रों में नए गहरे कुओं की सबसे ज्यादा जरूरत है

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साफ पानी जान बचाता है

यह अध्ययन दुनिया को दो बड़ी बातें समझाता है

आर्सेनिक से बचने में कभी देर नहीं होती। कई सालों तक संपर्क में रहने वाले लोगों की भी मौत का खतरा कम हो सकता है। साफ पानी की व्यवस्था में निवेश पूरे समुदाय की जान बचा सकता है। परिणाम एक पीढ़ी के भीतर दिखाई देने लगते हैं।

बांग्लादेश जैसे देशों में, जहां करोड़ों लोग आज भी असुरक्षित कुओं पर निर्भर हैं, यह शोध नीति-निर्माण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह साबित करता है कि सही जानकारी, सही तकनीक और सुरक्षित पानी तक पहुंच, इन तीनों से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।

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