जलवायु परिवर्तन से धान में बढ़ रहा है आर्सेनिक का स्तर, भारत समेत पूरे एशिया में स्वास्थ्य को खतरा

तापमान में वृद्धि, सीओ2 के बढ़ते स्तर के साथ मिलकर धान की फसल में अकार्बनिक आर्सेनिक की मात्रा को बहुत ज्यादा बढ़ा सकता है, जो एशिया की आबादी के स्वास्थ्य के लिए के बड़ा खतरा बन सकता है।
आर्सेनिक अवशोषण को कम करने के लिए पौधों के प्रजनन में प्रयास, धान के खेतों में बेहतर मिट्टी प्रबंधन और बेहतर प्रसंस्करण प्रथाए शामिल हैं।
आर्सेनिक अवशोषण को कम करने के लिए पौधों के प्रजनन में प्रयास, धान के खेतों में बेहतर मिट्टी प्रबंधन और बेहतर प्रसंस्करण प्रथाए शामिल हैं। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, आईआरआरआई
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दुनिया भर में बढ़ते वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) की मात्रा और सतही तापमान धान की पैदावार और पोषण गुणवत्ता पर पहले ही बुरा असर डाल रहा है। अब एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन पूरे एशिया में लाखों लोगों के मुख्य भोजन चावल में आर्सेनिक के स्तर में भारी गड़बड़ी पैदा कर सकता है।

शोध से पता चलता है कि दो डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान में वृद्धि, कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के बढ़ते स्तर के साथ मिलकर धान की फसल में अकार्बनिक आर्सेनिक (आईएएस) की मात्रा को बहुत ज्यादा बढ़ा सकता है, जो 2050 तक एशिया की आबादी के स्वास्थ्य के लिए के बड़ा खतरा बन सकता है। इस चिंताजनक बात का खुलासा कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने किया है।

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आर्सेनिक अवशोषण को कम करने के लिए पौधों के प्रजनन में प्रयास, धान के खेतों में बेहतर मिट्टी प्रबंधन और बेहतर प्रसंस्करण प्रथाए शामिल हैं।

शोध के मुताबिक, अब तक चावल में आर्सेनिक के जमा होने पर बढ़ते सीओ2 और तापमान दोनों के मिले-जुले प्रभावों का गहनता से अध्ययन नहीं किया गया है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि शोध के परिणामों से पता चलता है कि आर्सेनिक के स्तर में यह बढ़ोतरी हृदय रोग, मधुमेह और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को काफी हद तक बढ़ा सकती है। क्योंकि चावल दुनिया के कई हिस्सों में आहार का मुख्य हिस्सा है, इसलिए इन बदलावों से कैंसर, हृदय संबंधी बीमारियों और आर्सेनिक से संबंधित अन्य स्वास्थ्य समस्याओं में जबरदस्त इजाफा हो सकता है।

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द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि आर्सेनिक का बहुत ज्यादा स्तर हो सकता है मिट्टी के रसायन विज्ञान में जलवायु संबंधी बदलावों के कारण है, जो आर्सेनिक को बढ़ावा देते हैं, जिसे चावल के दाने में आसानी से अवशोषित किया जा सकता है।

स्वास्थ्य के नजरिए से, क्रोनिक आईएएस जोखिम के विषैले प्रभाव अच्छी तरह से स्थापित हैं और इसमें फेफड़े, मूत्राशय और त्वचा के कैंसर के साथ-साथ इस्केमिक हृदय रोग भी शामिल हैं। साक्ष्य यह भी बताते हैं कि आर्सेनिक के खतरे मधुमेह, गर्भावस्था में समस्या, न्यूरोडेवलपमेंटल मुद्दों और प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभावों से जुड़ा हो सकता है।

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दक्षिणी चीन और दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में चावल का सेवन पहले से ही आहार आर्सेनिक और कैंसर के खतरे का एक बड़ा स्रोत बना हुआ है

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से बताया गया है कि फ्री-एयर सीओ2 जमा करने (फेस) पद्धति का उपयोग करके क्षेत्र में 10 सालों में 28 धान की किस्मों पर बढ़ते तापमान और सीओ2 के प्रभावों को मापकर और उन्नत मॉडलिंग तकनीकों को शामिल किया गया।

शोधकर्ताओं ने सात एशियाई देशों जिसमें बांग्लादेश, चीन, भारत, इंडोनेशिया, म्यांमार, फिलीपींस और वियतनाम शामिल हैं, इन देशों लिए अकार्बनिक आर्सेनिक की मात्रा और स्वास्थ्य को होने वाले खतरों का अनुमान लगाया है।

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कैंसर और बिना कैंसर वाले परिणामों के लिए स्वास्थ्य को होने वाले खतरों की गणना की गई। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) खाद्य बैलेंस शीट के अनुसार, देशों के द्वारा 2021 में चावल की उपलब्धता का अनुमान चावल के सेवन का अनुमान लगाने के लिए शुरुआती बिंदु के रूप में इस्तेमाल किया गया था।

अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के आंकड़े से प्रति किलोग्राम शरीर के वजन पर चावल के सेवन के मानक विचलन का उपयोग प्रत्येक देश के लिए एक सामान्य वितरण बनाने के लिए किया गया था।

शोध के साल 2050 तक के लिए लगाए गए अनुमानों से पता चलता है कि कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि होगी, विशेष रूप से फेफड़े और मूत्राशय के कैंसर इसमें शामिल हैं।

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चीन में सबसे अधिक मामलों के आने का अनुमान है, जहां चावल की खपत के चलते अकार्बनिक आर्सेनिक के संपर्क में आने के कारण लगभग 1.34 करोड़ कैंसर के मामले सामने आने की बात कही गई है। वहीं बढ़ते तापमान और सीओ2 के मिले-जुले असर से चीन में कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या बढ़कर 1.93 करोड़ होने की आशंका जताई गई है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि निष्कर्षों के आधार पर, हमारा मानना है कि ऐसे कई कार्य हैं जो भविष्य में आर्सेनिक के खतरे को कम करने में मदद कर सकते हैं। इनमें आर्सेनिक अवशोषण को कम करने के लिए पौधों के प्रजनन में प्रयास, धान के खेतों में बेहतर मिट्टी प्रबंधन और बेहतर प्रसंस्करण प्रथाए शामिल हैं।

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ऐसे उपाय, उपभोक्ता शिक्षा और खतरों की निगरानी पर आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों के साथ, चावल की खपत पर जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

शोध चावल में आर्सेनिक की मात्रा को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत को सामने लाता है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा पर बुरा असर डाल रहा है।

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