आईआईटी बॉम्बे का सुझाव: आर्थिक नुकसान से बचने के लिए ऐसे हो भारतीय राज्यों में आपदाओं की तैयारी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने आपदाओं के कारण भारत के 25 राज्यों में होने वाले आर्थिक नुकसान का पता लगाया है।
साल 2020 के मार्च में मध्य कोलकाता में चक्रवात 'अम्फान' चक्रवात के कारण सड़क पर बहुत सारे पेड़ टूट गए थे
साल 2020 के मार्च में मध्य कोलकाता में चक्रवात 'अम्फान' चक्रवात के कारण सड़क पर बहुत सारे पेड़ टूट गए थेफोटो साभार: आईस्टॉक
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बदलती जलवायु की वजह से आपदाएं और चरम मौसम की घटनाएं, जैसे कि लू या हीटवेव, सूखा और जंगल की आग में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र, बुनियादी ढांचे और लोगों की बस्तियों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने इन आपदाओं के कारण भारत के 25 राज्यों में होने वाले आर्थिक नुकसान का पता लगाया है।

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पिछले 23 सालों की अवधि को शामिल करने वाले इस अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इन प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानि किस तरह से राज्यों के बजट को सालाना गंभीर रूप से असर डालती है। यह शोध आपदा की बेहतर तैयारी और आर्थिक सुरक्षा के लिए समाधान भी देता है, साथ ही ऐसे संकटों से होने वाले आर्थिक नुकसान के नतीजों को कम करने में मदद करने के लिए एक रोडमैप भी प्रदान करता है।

शोध पत्र के हवाले से शोधकर्ता ने कहा कि आपदा के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान, मौतों की संख्या और प्रभावित लोगों की संख्या के मूल्यांकन के आधार पर नुकसान का अनुमान लगाया जाता है। ये मूल्यांकन अक्सर सही नहीं होते हैं। शोध में चक्रवात की ताकत और बाढ़ की गंभीरता को सटीकता से मापने के लिए मौसम और भौगोलिक स्रोतों के आंकड़ों का उपयोग किया गया।

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इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन में प्रकाशित शोध के मुताबिक, इस जानकारी के आधार पर शोधकर्ताओं ने एक आपदा तीव्रता सूचकांक (डीआईआई) बनाया, जिससे यह साफ हो गया कि सभी तरह की आपदाओं का निष्पक्ष तरीके से निपटारा किया जाए।

यह विधि विसंगतियों और पूर्वाग्रहों से बचती है और आपदा प्रभावों की स्पष्ट तस्वीर देती है, खासकर बाढ़ और चक्रवातों के लिए, जिनके कारण अध्ययन अवधि के दौरान भारत में आपदा से संबंधित 80 फीसदी तक नुकसान देखा गया।

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अध्ययन में बताया गया है कि इसमें पैनल वेक्टर ऑटो रिग्रेशन (वीएआर) नामक सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग किया गया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि एक साल से लेकर अगले कुछ सालों तक राजस्व और व्यय एक दूसरे पर किस तरह असर डालते हैं।

यह मॉडल राज्यों के बीच अंतरों को ध्यान में रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि पिछली आर्थिक स्थितियां आपदा की गंभीरता के माप को गलत तरीके से प्रभावित न करें, जिससे आपदाओं के वित्तीय प्रभावों का अध्ययन करने का एक विश्वसनीय तरीका हासिल होता है।

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अध्ययन से पता चलता है कि आपदाएं प्रभावित राज्यों पर भारी वित्तीय बोझ डालती हैं, क्योंकि इससे उनका खर्चा बढ़ जाता है और साथ ही उनका राजस्व भी कम हो जाता है। जिसके कारण राज्य तत्काल राहत प्रयासों जैसे कि निकासी, चिकित्सा सहायता, भोजन और आश्रय के लिए पर्याप्त धनराशि आवंटित करते हैं।

सरकार सड़कों, पुलों और घरों जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण में भी निवेश करती है। क्योंकि इन आपदाओं के कारण कृषि, व्यापार और व्यावसायिक को चलाने में अक्सर रुकावट आती है, इसलिए इन क्षेत्रों से कर संग्रह और आय में भी कमी आती है। अध्ययन एक ऐसे चक्र पर प्रकाश डालता है जिसमें व्यय में वृद्धि और राजस्व में गिरावट के कारण बजट में भारी घाटा होता है।

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शोध में कहा गया कि आपदा तीव्रता सूचकांक (डीआईआई) से पता चलता है कि आपदाएं राज्यों पर अलग-अलग तरीके से असर डालती हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे कम आपदा-प्रवण राज्य, जो सूखे और कभी-कभी बाढ़ का सामना करते हैं, अपने स्वयं के संसाधनों से राहत का प्रबंधन कर सकते हैं और उनकों आर्थिक नुकसान कम होता हैं।

आपदा की तीव्रता लोगों की आय या उत्पादन को प्रभावित करने के लिए काफी नहीं है, इसलिए कर या बिना-कर के राजस्व में कोई कमी नहीं है। दूसरी ओर, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे आपदा-प्रवण तटीय राज्य, जो अक्सर चक्रवात और बाढ़ का सामना करते हैं, में खर्च और राजस्व घाटा अधिक होता है। नतीजतन, उन्हें अक्सर ऋण जैसे बाहरी वित्तपोषण पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे राज्य का कर्ज बढ़ता है और अन्य विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करना मुश्किल हो जाता है।

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शोध में सुझाव देते हुए कहा गया है कि राज्यों को पूर्व चेतावनी प्रणाली, चक्रवात आश्रयों और बुनियादी ढांचे में निवेश करने और टिकाऊ भूमि उपयोग को बढ़ावा देने की जरूरत है जो जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभाव को कम कर सकता है। साथ ही आपदाओं से निपटने के लिए लंबे समय तक होने वाले खर्चों को कम कर सकता है।

शोध के मुताबिक, कई राज्यों ने पहले ही इसे लागू कर लिया है, तमिलनाडु ने उन्नत चक्रवात निगरानी प्रणाली स्थापित की है, केरल ने जलवायु-अनुकूल शहरी नियोजन को अपनाया है और ओडिशा और कई अन्य ने जलवायु-संबंधी खर्च के लिए बजट ट्रैकिंग शुरू की है।

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जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में लगातार बढ़ोतरी जारी है, इसलिए शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से चेतावनी दी गई है कि भविष्य में भारतीय राज्यों को और भी बड़ी आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। हालांकि सुझाए गए उपायों को अपनाकर भारत लंबे समय तक आर्थिक खतरों को कम किया जा सकता है।

सतत विकास, आपदा के खतरों को कम करने के लिए दुनिया भर में आम सहमति बनाने, अध्ययन में आपदा जोखिम वित्तपोषण (डीआरएफ) के अनुरूप राष्ट्रीय नीतियों को बनाने और चुनौतियों का समाधान करने का प्रयास किया है।

यह सरकारों के लिए तत्काल आपदा प्रतिक्रिया को राजकोषीय नीतियों के प्रबंधन के साथ-साथ प्रभावित आबादी की तत्काल जरूरतों का प्रबंधन करने पर जोर देता है। यह जीवन और बुनियादी ढांचे की रक्षा कर सकता है और एक मजबूत, अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ सकता है।

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