गुजरात में बाढ़ की विभीषिका के लिए मौसम में बदलाव व अंधाधुंध शहरी विकास दोषी: आईआईटी - गांधीनगर

भारत के पश्चिमी तट पर "असामान्य मौसम की घटनाएं" फिर से देखी जा रही हैं, इसलिए शहरी विकास और बुनियादी ढांचे का दोबारा आकलन करने की तत्काल जरूरत है
गुजरात के मोरबी, देवभूमि द्वारका और राजकोट में तो इतनी बारिश हुई कि जो पिछले 50 सालों में भी नहीं हुई।
गुजरात के मोरबी, देवभूमि द्वारका और राजकोट में तो इतनी बारिश हुई कि जो पिछले 50 सालों में भी नहीं हुई। प्रतीतात्मक चित्र, फोटो साभार: आईस्टॉक
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गांधीनगर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-जीएन) के शोधकर्ताओं ने कहा है कि गुजरात के कुछ हिस्सों में हाल ही में आई बाढ़ के विश्लेषण से पता चला है कि यह बाढ़ चरम मौसम के कारण आई थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा बेतहाशा शहरी विकास, जल निकासी में खामियों ने स्थिति को और भी बदतर कर दिया।

20 से 29 अगस्त के बीच भारी बारिश के कारण गुजरात के कई हिस्सों में बाढ़ आ गई थी। आईआईटी के विश्लेषण से पता चलता है कि गुजरात के 33 में से 12 जिलों में 24 घंटों में हुई बारिश बीते 10 साल में हुई बारिश से अधिक थी। मोरबी, देवभूमि द्वारका और राजकोट में तो इतनी बारिश हुई कि जो पिछले 50 सालों में भी नहीं हुई। गुजरात के अन्य 17 जिलों में दो दिन में इतने बरसे बादल कि जितने पिछले 10 सालों में भी नहीं बरसे थे

अध्ययन में सुझाव देते हुए कहा गया है कि भारत के पश्चिमी तट पर "असामान्य मौसम की घटनाएं" फिर से देखी जा रही हैं, जैसा कि 20 से 29 अगस्त के बीच देखा गया था, इसलिए शहरी विकास और बुनियादी ढांचे का दोबारा आकलन करने की तत्काल जरूरत है।

शोध के हवाले से आईआईटी गांधीनगर की मशीन इंटेलिजेंस एंड रेजिलिएंस लैबोरेटरी (एमआईआर लैब) के शोधकर्ताओं ने कहा कि इस तरह की परिस्थितियों के लिए मजबूत आपातकालीन रणनीतियों की जरूरत पड़ती है जो चरम घटनाओं की जटिलताओं से निपट सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा, क्योंकि तेजी से बढ़ता शहरीकरण क्षेत्रीय और स्थानीय जल विज्ञान को बदलता है, जिससे जल निकासी प्रणालियों पर अधिक दबाव पड़ता है, इसलिए शहरी विकास रणनीतियों में जल विज्ञान पर गौर करना जरूरी है।

आईआईटी-जीएन के शोध में कहा गया है कि वडोदरा में बीते सप्ताह भीषण शहरी बाढ़ आई। तीन दिनों में ही 10 साल में बरसने वाले पानी से ज्यादा पानी बरसा। हालांकि बारिश जितनी सोची गई थी उतनी नहीं हुई, लेकिन वडोदरा में बाढ़ आने के कारणों की बात करें तो वहां बाढ़ के प्रभावित इलाकों में बहुत ज्यादा शहरी विकास हुआ है। इससे ऊंचाई का भी स्तर बदल गया है। तेजी से हुए शहरीकरण के कारण जल निकासी पैटर्न की भी अनदेखी की गई है। इसके अलावा जल निकासी प्रणालियों का अवरुद्ध होना भी मुख्य कारण माना जा सकता है।

अध्ययन में कहा गया है, यह स्थिति चरम मौसम की घटनाओं का एक सबसे अच्छा उदाहरण है, जहां कई इलाके एक साथ चरम मौसम का अनुभव करते हैं। इस तरह के कारण आपातकालीन प्रतिक्रिया और निकासी प्रयासों को और जटिल बनाते हैं, क्योंकि निकासी प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले संसाधन कई प्रभावित इलाकों में फैल जाते हैं।

अध्ययन के मुताबिक, ऐसी स्थिति में बचाव, राहत और निकासी कार्यों की मांग आपातकालीन सेवाओं पर भारी पड़ सकती है, जिससे बाढ़ से प्रभावित लोगों की जरूरतों को तेजी से पूरा करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

अध्ययन में आईआईटी गांधीनगर के सिविल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर ने कहा कि आंकड़ों की मदद से शहरी बाढ़ के कारणों को पूरी तरह से समझना कठिन है, क्योंकि इसकी अवधि कम है। अक्सर भारी बारिश के कारण शहर की जल निकासी प्रणालियों के प्रभावित होने के आशंका बनी रहती है।

अध्ययन के मुताबिक, जब अधिक समय तक बारिश का होना जारी रहता है तो शुरुआती समय में ही मिट्टी गीली हो जाती है। इससे जमीन के पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है और ऐसे में जलजमाव की स्थिति बनती है। इसका अन्य मुख्य कारण जल निकासी प्रणालियों की क्षमता का कम होना या फिर उनका अवरुद्ध होना भी हो सकता है।

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