भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, इस सदी के अंत तक भारत में अत्यधिक बारिश की घटनाओं में भारी वृद्धि होने के आसार हैं। खास तौर पर जिसका असर पश्चिमी घाट और मध्य भारत पर पड़ेगा।
'नेचर' नामक पत्रिका में प्रकाशित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के एक शोध में वायुमंडल में भारी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में हुई वृद्धि को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। अध्ययन ने पूर्वी तटीय क्षेत्र और हिमालय की तलहटी के लिए बढ़ते खतरों की और भी इशारा किया हैं।
लंबे समय तक चरम घटनाओं के दौरान अत्यधिक भारी बारिश का सामना करने वाले इलाकों में 1982 से 2014 की तुलना में साल 2071 से 2100 तक 18 फीसदी की वृद्धि होने का पूर्वानुमान लगाया गया है। वर्तमान में भारत के लगभग आठ फीसदी भू-भाग में ऐसी अत्यधिक बारिश होती है। भारी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन परिदृश्य के तहत अत्यधिक बारिश सीमा की तीव्रता में 58 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है।
शोध में अनुमान लगाया गया है कि लंबी अवधि की अत्यधिक बारिश की घटनाओं में दो गुना वृद्धि होगी, जो कि छोटी अवधि की घटनाओं की तुलना में तीन से छह दिनों तक चलती है। इस तरह के लंबे समय तक चलने वाले बारिश के दौर के कारण जान माल का नुकसान के बढ़ने के आसार जताए गए हैं।
एक बयान में आईटीएम के वैज्ञानिक जस्ती एस चौधरी ने कहा कि हमारा अनुमान है कि सदी के अंत तक, लंबी अवधि की घटनाओं के दौरान अत्यधिक बारिश वाले दिनों की कुल संख्या वर्तमान के चार दिनों से बढ़कर हर साल नौ दिन हो सकती है। भविष्य में मॉनसून की बारिश में मध्यम परिदृश्य के दौरान छह फीसदी और उच्च परिदृश्यों के तहत 21 फीसदी तक की वृद्धि होने का अनुमान है।
वहीं हाल ही में जारी आईपीई ग्लोबल और एसरी इंडिया के अध्ययन में हाल के दशकों में चरम मौसम की घटनाओं और गंभीरता दोनों में वृद्धि होने की बात कही गई है। भारत में पिछले 30 वर्षों में मार्च-अप्रैल-मई और जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर की अवधि के दौरान अत्यधिक लू वाले दिनों में 15 गुना वृद्धि देखी गई है, जिसमें पिछले दशक में ही 19 गुना वृद्धि देखी गई है।
अध्ययन में कहा गया है कि केरल में लगातार और अनियमित बारिश की वजह से भयंकर भूस्खलन हुआ जो इस बात का प्रमाण है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है। अध्ययन के विश्लेषण से पता चलता है कि 2036 तक 10 में से आठ भारतीय चरम घटनाओं के संपर्क में होंगे और ये संख्याएं चरम पर होंगी।
आईपीई ग्लोबल के अध्ययन के मुताबिक, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर अत्यधिक गर्मी के तनाव और भारी बारिश दोनों के प्रभाव का सामना कर रहे हैं। अध्ययन से पता चलता है कि 84 प्रतिशत से अधिक भारतीय जिलों को अत्यधिक हीटवेव हॉटस्पॉट के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इनमें से लगभग 70 प्रतिशत जिले पिछले 30 सालों से मॉनसून के मौसम (जून-सितंबर) के दौरान लगातार और अनियमित बारिश का सामना कर रहे हैं।