
एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया के सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में से एक में किशोरों में चिंता, अवसाद और निराशा का स्तर बहुत अधिक है।
जबकि जलवायु परिवर्तन को अक्सर एक पर्यावरणीय मुद्दे के रूप में देखा जाता है, यह शोध मानसिक स्वास्थ्य पर इसके गहरे प्रभाव को सामने लाता है, खासकर गरीब देशों में। ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन, कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ मेडागास्कर, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और सीबीएम ग्लोबल के सहयोग से किए गए इस अध्ययन में जलवायु अनुकूलन के प्रयासों में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
जर्नल ऑफ क्लाइमेट चेंज एंड हेल्थ में प्रकाशित शोध में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन तीन प्रमुख रास्तों से किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है: पहला - घरेलू संसाधनों का नुकसान, दूसरा - भविष्य के बारे में अनिश्चितता और तीसरा - पारंपरिक तरीके से मुकाबला करने के तंत्र का टूटना।
दक्षिणी मेडागास्कर में, जहां सूखा और रेत के तूफान आना आम बात हो गए हैं, युवा जीवित रहने के लिए रोजाना संघर्ष कर रहे हैं। अध्ययन में 83 किशोरों का सर्वेक्षण किया गया और मार्च 2024 में छह ग्रामीण इलाकों में 48 प्रतिभागियों को शामिल किया गया। शोध के निष्कर्ष एक कठोर तस्वीर पेश करते हैं: पिछले साल 90 फीसदी घरों में भोजन खत्म हो गया था और 69 फीसदी किशोरों ने पूरा दिन बिना खाए गुजारा।
शोध पत्र में कई प्रतिभागियों ने अपने परिवारों के संघर्षों पर गहरी पीड़ा व्यक्त की, कुछ ने समुदाय के सदस्यों को भूख से मरते हुए देखा। शोध के दौरान एक किशोर ने बताया कि "बहुत से लोग मर गए जिसमें कई बुजुर्ग भी शामिल थे, लेकिन वे कुपोषण के कारण मर गए"। दूसरे ने बस इतना कहा, "पानी नहीं है और जब सूरज तपा रहा होता है, तो हम पीड़ित होते हैं"।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि विकासशील देशों में युवा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं। इस शोध में पाया गया है कि हमें यह भी विचार करने की जरूरत है कि जलवायु परिवर्तन उनके मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि ये निष्कर्ष मानसिक स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं, जिसमें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में युवाओं पर गौर किया जाएगा।
शोध के मुताबिक, दक्षिणी मेडागास्कर में युवा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बुरी तरह प्रभावित हैं। वे जलवायु परिवर्तन के किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अहम जानकारी दे सकते हैं। यह शोध यह स्पष्ट करता है कि जलवायु परिवर्तन केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है - यह एक मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा भी है।
शोध में शिक्षा और सामुदायिक स्थिरता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर भी प्रकाश डाला गया है। फसलें खराब होने और जल स्रोत सूख जाने के कारण, कई किशोरों को जीवित रहने के लिए अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जबकि जो लोग घर पर रहते हैं, उन्हें भूख, शिक्षा में रुकावट और निराशा की गहरी भावना का सामना करना पड़ता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि दक्षिणी मेडागास्कर के एंड्रोय में किशोर अकाल, भय और सूखे तथा रेत के तूफानों से छिन रहे भविष्य की बात करते हैं। वहीं, जलवायु परिवर्तन मेडागास्कर के दक्षिण में बच्चों और किशोरों के लिए कष्ट का कारण बन रहा है। बार-बार पड़ने वाले सूखे से खाद्य संकट और निराशा छा रही है, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित विकलांग किशोर हैं।