आर्सेनिक प्रदूषण के कारण बिहार में बढ़ रहा है पित्ताशय कैंसर: अध्ययन

भारत में पित्ताशय की थैली के कैंसर का प्रसार पूरी दुनिया के मामलों का 10 फीसदी है
फोटो साभार : सीएसई
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भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में पित्ताशय की थैली का कैंसर या गॉलब्लेडर कैंसर (जीबीसी) के मामले कई गुना बढ़ गए हैं। अध्ययन के मुताबिक, बिहार में पित्ताशय की थैली के कैंसर के सबसे अधिक मामले पाए गए हैं, इसके लिए आर्सेनिक को प्रमुख रूप से जिम्मेदार माना गया है

भारत में पित्ताशय की थैली के कैंसर का प्रसार पूरी दुनिया के मामलों का 10 फीसदी है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कैंसर अधिक पाया जाता है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, साल 2025 तक भारत में कैंसर के मामलों में पांच गुना वृद्धि होगी, जिसमें तंबाकू के कारण 2.8 गुना वृद्धि होगी जबकि उम्र बढ़ने के कारण 2.2 गुना वृद्धि होगी। 

अध्ययन के मुताबिक पित्ताशय की थैली का कैंसर बिहार में गंगा के मैदानी इलाकों में बहुत अधिक पाया गया। जिसका प्रमुख कारण यहां की आबादी में आर्सेनिक प्रदूषण का बहुत अधिक होना बताया गया है।

अध्ययन में कहा गया है कि, पित्ताशय की थैली के कैंसर के रोगियों में पित्ताशय के ऊतकों, पित्ताशय की पथरी, पित्त, रक्त और बालों के नमूनों में आर्सेनिक की भारी मात्रा पाई गई है। आर्सेनिक और पित्ताशय की थैली के कार्सिनोजेनेसिस के लंबे समय तक संपर्क का पता चलता है।

पटना के महावीर कैंसर संस्थान एंड रिसर्च सेंटर के तत्वावधान में किए गए शोध में पहली बार यह बात सामने आई है कि आर्सेनिक मानव शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं के साथ बंध जाता है। फिर अन्य यौगिकों जैसे कि सिस्टीन, टॉरिन और चेनोडॉक्सिकोलिक एसिड और पित्ताशय की थैली तक पहुंचता है और उनमें पित्त की पथरी बनाता है। लंबे समय तक अनुपचारित पित्त की पथरी इसे पित्ताशय की थैली के कैंसर रोग में बदल देती है।

इस अध्ययन के लिए, 152 पित्ताशय की थैली के रोगियों ने स्वेच्छा से भाग लिया। उनके पित्ताशय की थैली के ऊतकों में औसत स्तर के साथ आर्सेनिक की भारी मात्रा 340.6 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम, पित्त पथरी के औसत स्तर 78.41 ग्राम प्रति किग्रा, उनके पित्त के औसत स्तर 59.10  ग्राम प्रति किग्रा, उनके रक्त में औसत स्तर 52.28 ग्राम प्रति किग्रा और उनके बालों के नमूनों में औसत स्तर 649.7 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम थी।  

बिहार के बक्सर, भोजपुर, पटना, सारण, वैशाली, समस्तीपुर, गोपालगंज, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार, मुंगेर और भागलपुर में पित्ताशय की बीमारी के  सबसे अधिक मरीज पाए गए।

बिहार में गंगा के मैदानी इलाकों में इस रोग का प्रसार बहुत अधिक है। पित्ताशय की थैली का कैंसर अधिक मृत्यु दर वाला सबसे दुर्लभ पित्त के रास्ते की बीमारियों में से एक है, जिसके मरीज पांच साल से भी कम समय तक जीवित रह पाते हैं।

पित्ताशय की थैली का कैंसर का एक बहुत ही असामान्य भौगोलिक वितरण है, जिसकी अलग-अलग हिस्सों में बहुत अधिक घटनाएं देखी जाती हैं। पित्ताशय की थैली का कैंसर होने वाले देशों में चिली, भारत, जापान, पोलैंड, इजराइल, बोलीविया, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया आदि शामिल है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि लोगों को आर्सेनिक के खतरों से बचाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।

महावीर कैंसर संस्थान एंड रिसर्च सेंटर (एमसीएस) में प्रोफेसर और शोध विभाग के प्रमुख अशोक कुमार घोष ने कहा भारत में, पित्ताशय की थैली का कैंसर उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल,असम और दिल्ली जैसे राज्यों में पाया गया है।

यह अध्ययन बिहार, नई दिल्ली, पुणे, टोक्यो विश्वविद्यालय और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, डेल्फ़्ट, नीदरलैंड और कनाडा के वैज्ञानिकों की टीम ने मिलकर किया है। 

एमसीएस के वैज्ञानिक और प्रमुख अध्ययनकर्ता अरुण कुमार ने कहा, नीतियों और दिशानिर्देशों को विकसित करके पित्ताशय की थैली का कैंसर रोग के बढ़ते मामलों को नियंत्रित करने की तत्काल आवश्यकता है, जो प्रभावित आबादी के लिए आर्सेनिक के खतरों को कम करेगा। यह अध्ययन नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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