

वायु प्रदूषण अब सिर्फ दिल और फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि हमारे इम्यून सिस्टम को भी कमजोर कर रहा है।
कनाडा के एक अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषित हवा में मौजूद पीएम2.5 कण शरीर में ऐसे बदलाव ला सकते हैं, जो ल्यूपस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
ऑटोइम्यून डिजीज का मतलब ऐसी बीमारियों से है जिनमें हमारे शरीर की सुरक्षा प्रणाली गलती से अपने ही शरीर पर हमला करने लगती है।
यह अध्ययन 3,500 से अधिक लोगों के रक्त के नमूनों पर आधारित है।
यूनिवर्सिटी ऑफ वेरोना द्वारा किए एक अन्य अध्ययन में सामने आया था कि लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से रूमेटाइड अर्थराइटिस यानी गठिया का जोखिम 40 फीसदी तक बढ़ सकता है।
वायु प्रदूषण अब सिर्फ दिल और फेफड़ों को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहा, यह हमारे इम्यून सिस्टम को भी चुनौती दे रहा है। एक नई वैज्ञानिक पड़ताल ने वायु प्रदूषण और शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रणाली (इम्यून सिस्टम) के बीच खतरनाक कड़ी को उजागर किया है।
अध्ययन के मुताबिक, प्रदूषित हवा में मौजूद बेहद महीन कण (पीएम2.5) शरीर में ऐसे बदलाव ला सकते हैं, जो आगे चलकर ल्यूपस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों की वजह बन सकते हैं। ऑटोइम्यून डिजीज का मतलब ऐसी बीमारियों से है जिनमें हमारे शरीर की सुरक्षा प्रणाली गलती से अपने ही शरीर पर हमला करने लगती है।
आमतौर पर हमारा इम्यून सिस्टम शरीर को बैक्टीरिया, वायरस और अन्य हानिकारक चीजों से बचाता है। लेकिन इन बीमारियों में यह सिस्टम स्वयं अपनी ही कोशिकाओं और अंगों को नुकसान पहुंचाने लगता है।
अपने इस अध्ययन में कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं ने ओंटारियो प्रांत के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उन्होंने पाया कि जिन इलाकों में हवा ज्यादा प्रदूषित थी, वहां रहने वाले लोगों के खून में एक खास बायोमार्कर 'एंटी-न्यूक्लियर एंटीबॉडी (एएनए)' की मात्रा अधिक पाई गई। यह बायोमार्कर ल्यूपस जैसी कई ऑटोइम्यून बीमारियों से जुड़ा माना जाता है।
मैकगिल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड हेल्थ की सदस्य और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर साशा बर्नैट्स्की का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “अब तक माना जाता था कि ऑटोइम्यून बीमारियों में जेनेटिक कारण अहम हैं, लेकिन यह पूरी कहानी नहीं है। नतीजे दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण इम्यून सिस्टम को इस तरह से प्रभावित कर सकता है, जो बीमारी की ओर ले जाए।“
रक्त तक पहुंच जाते हैं प्रदूषण के कण
शोध के मुताबिक, पीएम2.5 जैसे महीन कण इतने छोटे होते हैं कि वो सांस के जरिए फेफड़ों से होते हुए सीधे रक्त में पहुंच सकते हैं। एक बार रक्त प्रवाह में पहुंचने के बाद ये पूरे शरीर को प्रभावित कर सकते हैं, यानी कि वायु प्रदूषण का असर सिर्फ दिल और फेफड़ों तक सीमित नहीं है।
यह अध्ययन कैनपाथ नामक नेशनल रजिस्ट्री के तहत शामिल 3,500 से अधिक लोगों के रक्त के नमूनों पर आधारित है। इस रजिस्ट्री में कनाडा के 4 लाख से ज्यादा लोग शामिल हैं।
प्रदूषण अब सिर्फ शहरों की समस्या नहीं
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह भी चेताया है कि वायु प्रदूषण को केवल शहरों और ट्रैफिक से जोड़कर देखना गलत है। ग्रामीण इलाकों में भी हवा खराब हो सकती है, खासतौर पर जंगलों की आग से उठने वाला धुआं इसका बड़ा कारण बन रहा है।
देखा जाए तो यह अध्ययन कनाडा में रहने वाले लोगों पर किया गया है, जहां कि वायु गुणवत्ता कई देशों से बेहतर मानी जाती है, फिर भी शोधकर्ताओं का कहना है कि पीएम2.5 का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है। यही वजह है कि नीति निर्माताओं को ऐसे अध्ययनों से सीख लेकर प्रदूषण के जोखिम को और कम करने की जरूरत है।
अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि आर्थिक रूप से कमजोर समुदाय अक्सर उद्योगों या व्यस्त सड़कों के पास रहते हैं, जिसकी वजह से उनपर कहीं ज्यादा खतरा मंडरा रहा है। वहीं, ल्यूपस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियां महिलाओं और आदिवासी समुदाय को अधिक प्रभावित करती हैं।
हर सांस में खतरा
गौरतलब है कि इससे पहले भी यूनिवर्सिटी ऑफ वेरोना द्वारा किए एक अन्य अध्ययन में सामने आया था कि लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से रूमेटाइड अर्थराइटिस यानी गठिया का जोखिम 40 फीसदी तक बढ़ सकता है।
इसी तरह वायु प्रदूषण से क्रोहन रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी आंत सम्बन्धी बीमारियों का खतरा 20 फीसदी, और ल्यूपस जैसी ऊतकों को नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियों का जोखिम 15 फीसदी तक बढ़ सकता है। 2024 में की एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि लंबे समय तक दूषित हवा में सांस लेने से ल्यूपस नामक बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
ऐसे में इस अध्ययन का सन्देश स्पष्ट है, साफ हवा सिर्फ सांसों के लिए नहीं, बल्कि हमारे इम्यून सिस्टम और पूरे शरीर की सेहत के लिए भी बेहद जरूरी है। हमारे आसपास हवा में मौजूद प्रदूषण के अदृश्य कण चुपचाप हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर रहे हैं और भविष्य की गंभीर बीमारियों की जमीन तैयार कर रहे हैं।
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