वायु प्रदूषण दुनिया के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जितना ज्यादा हम इसके प्रभावों को समझ रहे हैं, उतने नए खतरे हमारे सामने आते जा रहे हैं। उन्हीं खतरों में से एक है ल्यूपस। इस बारे में की गई एक नई रिसर्च से पता चला है कि लंबे समय तक दूषित हवा में सांस लेने से ल्यूपस नामक बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
गौरतलब है कि ल्यूपस एक ऑटोइम्यून डिजीज है, जो शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकती है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर को बीमारियों से बचाने वाला अपना इम्यून सिस्टम ही शरीर को नुकसान पहुंचाने लगता है।
यह बीमारी शरीर के कई हिस्सों जैसे स्किन, किडनी, ज्वाइंट्स, ब्लड सेल्स, दिमाग, दिल और फेफड़ों को प्रभावित करती है। हालांकि ल्यूपस के लक्षण दूसरी बीमारियों से काफी मिलते-जुलते हैं, ऐसे में इसकी पहचान करना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है।
अपनी इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने यूके बायोबैंक द्वारा जुटाए 459,815 लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है। करीब 12 वर्षों तक अध्ययन करने पर 399 लोग ल्यूपस से पीड़ित पाए गए।
शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में प्रदूषण के महीन कणों (पीएम 2.5), पीएम 10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और नाइट्रिक ऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के स्तर को भी मापा गया है। इनके स्तर का अनुमान लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने विशेष गणितीय मॉडल का उपयोग किया है।
क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने
साथ ही मॉडल की मदद से यह जानने का प्रयास किया है कि क्या ये वायु प्रदूषक ल्यूपस के विकास से जुड़े थे। साथ ही शोधकर्ताओं ने पॉलीजेनिक रिस्क स्कोर की भी मदद ली है कि, ताकि यह देखा जा सके कि जीन और वायु प्रदूषण एक साथ ल्यूपस के जोखिम को कैसे प्रभावित करते हैं।
शोधकर्ताओं ने रिसर्च में पुष्टि की है कि लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से इस बीमारी का आशंका बढ़ जाती है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि जिन लोगों में आनुवंशिक जोखिम अधिक था और जो वायु प्रदूषण के संपर्क में अधिक रहते हैं, उनमें ल्यूपस होने की आशंका सबसे अधिक होती है।
वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों में आनुवंशिक जोखिम कम है और जो वायु प्रदूषण के संपर्क में कम आते हैं, उनमें इस बीमारी के होने की आशंका कम रहती है। इस रिसर्च के नतीजे जर्नल आर्थराइटिस एंड रूमेटोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
चीन के हुआझोंग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता योहुआ तियान ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "हमारी रिसर्च इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती है कि वायु प्रदूषण किस प्रकार स्वप्रतिरक्षी रोगों को प्रभावित करता है। अध्ययन के निष्कर्ष हानिकारक प्रदूषकों के संपर्क को कम करने के लिए वायु गुणवत्ता से जुड़े कड़े नियमों को बनाने पर जोर देते हैं, ताकि ल्यूपस के जोखिम को सीमित किया जा सके।"
हवा में घुला यह जहर किस कदर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में पांच वर्ष से कम आयु के सात लाख से ज्यादा बच्चों की मौत के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेवार है।
मतलब कि पांच वर्ष से कम आयु के 15 फीसदी बच्चों की मौत की वजह हवा में घुला यह जहर है। इतना ही नहीं जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित एक अन्य रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि अजन्मों के गर्भावस्था में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से आगे चलकर किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
वहीं बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ ने खुलासा किया है कि वायु प्रदूषण का संपर्क बच्चों को दिमागी तौर पर कमजोर बना रहा है। इससे उनकी बौद्धिक और ध्यान लगाने की क्षमता प्रभावित हो रही है।
वहीं जर्नल प्लोस वन में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि वाहनों से होने वाला प्रदूषण बच्चों की दिमागी संरचना को बदल रहा है। वहीं एक अन्य रिसर्च ने खुलासा किया है कि वायु प्रदूषण के चलते बच्चियों में समय से पहले ही युवा होने के लक्षण सामने आ रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक है। ऐसे में इस समस्या पर गंभीरता से कार्रवाई करने की जरूरत है।
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